अररियाः इतिहास की किताबों में झांसी की रानी की जंग तो सबने पढ़ी हैं, लेकिन बिहार की एक ऐसी मर्दानी है, जिसकी लड़ाई के बारे में शायद आपने नहीं सुना होगा. इसने जंग तो लड़ी लेकिन हथियारों के बल पर नहीं अपने हौंसले और सूझबूझ के बल पर. आज ये मर्दानी पूरे देश में महिला सशक्तीकरण की मिसाल बन गई है. महिला दिवस के मौके पर पेश है एक खास रिपोर्ट.
जिले के फारबिसगंज के रेड लाइट एरिया में चंद पैसों के लिए 9 साल की उम्र में बेची गई फातिमा खातून की कहानी बड़ी ही दर्दनाक है. उनकी ये दर्दनाक दास्तां 2014 में KBC के हॉट सीट पर सबके सामने आई. उस वक्त फातिमा के ऊपर बनाई गई फिल्म मर्दानी की नायिका रानी मुखर्जी भी हॉट सीट पर उनका साथ देने के लिए मौजूद थीं. तब से लेकर आज तक कई तरह के इनाम से उन्हें पुरस्कृत किया जा चुका है. इस साल भी 8 मार्च को महिला दिवस के मौके पर उन्हें बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार के जरिए लखनऊ में पुरस्कार दिया जाएगा.
9 साल की उम्र में हुई शादी
दरअसल, नेपाल की रहने वाली फातिमा खातून की शादी उनके मां-बाप ने चंद पैसों की खातिर फारबिसगंज के रेड लाइट इलाके में कर दी थी. जिस घर में उनकी शादी हुई, वह पूरा परिवार देह व्यपार के धंधे से जुड़ा था. 9 साल की बच्ची फातिमा की शादी 35 साल के लड़के शोएब के साथ हुई. खेलने कूदने की उम्र में जब फातिमा इस माहौल में आई तो कुछ समझ ना पाई. धीरे-धीरे सब कुछ समझ में आने लगा. फिर क्या था यहीं से शुरू हो गई अपने ही घर वालों के साथ फातिमा की जंग.
सुसराल वालों से लड़ी जंग
ये जंग किसी देश की आजादी के लिए नहीं थी, बल्कि लड़कियों पर हो रहे ऐसे जुल्म के खिलाफ थी, जो आज भी लड़कियों और महिलाओं के लिए अभिशाप बनी हुई है. जिस दलदल में फंस कर आज भी ना जाने कितनी लड़कियां और महिलाएं सिसकियां ले रहीं है. इस लड़ाई में फतिमा को उसके ससुराल वालों ने हर रोज प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. कई बार भुखा रखा गया, कमरे में बंद कर दिया गया. मजबूर किया गया कि वह वह अपने ससुराल वालों की बात मान ले. लेकिन फतिमा जरा भी नहीं झुकी. अपनी लड़ाई जारी रखी. अपने ससुराल से सबसे पहले फतिमा 5 लड़कियों को भगाने में कामयाब रही.
महिला सशक्तीकरण की मिसाल
उसके बाद एक दिन मौका देखकर किसी तरह फातिमा अपने ससुराल से निकल गई. अब वह जिस्मफरोशी के धंधे में धकेली जा रही लड़कियों को नई जिंदगी देने की राह पर चल पड़ीं. इसी राह में उन्हें एक एनजीओ का सहारा मिला. तब से अब तक उन्होंने सैकड़ों लड़कियों को उस दलदल से निकाला. साथ ही साथ इन लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एनजीओ द्वारा सिलाई, कढ़ाई के साथ-साथ कंप्यूटर की भी शिक्षा दी जाती है. आज गरीब यतीम और मजबूर बच्चों को मुफ्त शिक्षा खुद फातिमा देती हैं. कई बार उन्हें जान से मारने की कोशिश भी की गई. लेकिन वो हिम्मत कभी नहीं हारी और आगे बढ़ती गईं.
क्या है फतिमा की अपील
उन्होंने ने इस महिला दिवस के मौके पर सारे भारतवासियों सेनिवेदन किया है कि हमें आप लोग सहयोग करें और लड़कियों को आत्म निर्भर बनाया जाए. मेरी लड़ाई में आप सब सहयोग करें. आज भी उनका मकसद सामाज में लड़कियों के साथ हो रहे भेद भाव को खत्म करना है चाहे उसकी कोई भी कीमत चुकानी पड़े.