पटना: टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (Tata Institute of Social Sciences) की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में अभी भी कटे होंठ और कटे तालु के 35000 से अधिक मामले हैं. ये ऐसे मामले हैं जो अब तक अनऑपरेटेड हैं. पटना (Patna) के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (IGIMS) में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत लगभग 1 वर्ष पूर्व कटे होंठ और कटे तालु के लिए स्पेशल ट्रीटमेंट केयर सेंटर की शुरुआत की गई. यहां कटे होंठ और कटे तालु की सर्जरी और मेडिसिन की निःशुल्क सुविधा शुरू की गई है लेकिन यहां मरीजों का फुटफॉल काफी कम है.
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अब तक सेंटर में लगभग 100 सर्जरी हुई है. सर्जरी के लिए लगभग 350 की संख्या में रजिस्ट्रेशन हुए हैं. आईजीआईएमएस (IGIMS) अर्धसरकारी अस्पताल है और यहां मरीजों को इलाज के लिए पैसे खर्च करने होते हैं लेकिन आरबीएसके के तहत यह सुविधा अस्पताल में निशुल्क शुरू की गई.
आईजीआईएमएस पटना (IGIMS Patna) के क्लेफ्ट लिप एंड पैलेट (Cleft lip and cleft palate) सेंटर के प्रभारी चिकित्सक डॉ. प्रियंकर सिंह ने बताया कि कटे होंठ और कटे तालु एक अनुवांशिक बीमारी है. यह आम तौर पर जन्मजात बीमारी है. इसमें बच्चे कटे हुए होंठ और कटे हुए तालू के साथ पैदा होते हैं. इस बीमारी के कई कारण है. सबसे प्रमुख है गर्भावस्था के समय मां को सही पोषण नहीं मिले या फिर कोई गलत दवा का सेवन किया जाये.
इसके अलावा अगर ब्लड रिलेशन या करीबी रिश्तों में शादी होती है तो ऐसे दंपत्ति के बच्चों में इस बीमारी के चांसेस बढ़ जाते हैं. कई मामलों में बच्चे एनवायरमेंटल फैक्टर के कारण भी इस बीमारी के शिकार होते हैं. यह बीमारी बच्चे के जन्म के समय ही देखने को मिल जाती है.
डॉ. प्रियंकर सिंह ने बताया कि इस बीमारी का स्थाई निदान संभव है. वह ऑपरेशन के द्वारा ही किया जा सकता है. ऐसे केसेज में जरूरी है कि बच्चे के जन्म के तुरंत बाद डॉक्टर से कंसल्ट किया जाए. बच्चे के जन्म के 4 माह बाद उसका कटे होंठ की सर्जरी की जा सकती है. कटे तालु के मामले में बच्चे के जन्म के 12 से 14 माह के बाद सर्जरी कर ठीक किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि यह बहुत ही छोटी और आसान सर्जरी है.
डॉ प्रियंकर सिंह ने कहा कि अभी के समय दिक्कत यही आ रही है कि यह केसेज अधिकांश गरीब और पिछड़े लोगों के बच्चों में देखने को अधिक मिलती है. उनमें जानकारी का काफी अभाव है. उन्हें जानकारी भी नहीं होती कि इसे सर्जरी से ठीक किया जा सकता है. अभी भी उन इलाकों में ऐसी भ्रांतियां हैं कि यह सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का प्रभाव होता है. गर्भावस्था में मां अगर सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के समय घर से बाहर निकल जाए तो बच्चे इस प्रकार की विकृति के साथ पैदा होते हैं.
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उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है. इन भ्रांतियों को दूर करने के लिए चिकित्सा जगत लगातार जागरुकता कार्यक्रम चला रहा है. उन्होंने बताया कि इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत आईजीआईएमएस में निशुल्क सर्जरी की सुविधा शुरू की गई. उन्होंने कहा कि अब तक पिछले 1 वर्षों में लगभग 100 सर्जरी हुई है जबकि प्रदेश में अभी भी 30,000 से अधिक ऐसे मामले हैं जो अब तक ऑन ऑपरेटेड हैं. ऐसे में आईजीआईएमएस कि जो उपलब्धि है वह ऊंट के मुंह में जीरा की तरह है. आईजीआईएमएस लगातार बेहतर कार्य कर रहा है. उनका यह प्रयास रहता है कि अधिक से अधिक बच्चे आकर इस सेंटर से लाभान्वित हो और लोगों को भी यह पता चले कि यह सुविधा पूरी तरह निशुल्क हैं.
डॉ प्रियंकर सिंह ने बताया कि सेंटर पर कटे होंठ और कटे तालु के अलावा बच्चे अगर और भी किसी चेहरे की विकृति के साथ पैदा होते हैं तो उसका भी ट्रीटमेंट किया जाता है और यह पूरी तरह निशुल्क है. भारत सरकार के उपक्रम राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत यह सेवाएं प्रदान की जाती हैं. इसके तहत मरीज को यहां रहना, दवाई, सर्जरी, खाना-पीना सब निशुल्क होता है. जरूरत पड़ने पर एंबुलेंस से लाने और ले जाने की सुविधा भी निशुल्क दी जाती है.
उन्होंने कहा कि प्रदेश में आरबीएसके से जुड़े जितने कर्मी है, या फिर आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ता हों. सभी के सहयोग से मलिन बस्ती में जाकर इस बीमारी को लेकर जागरुकता कार्यक्रम किए जाते हैं. बैनर पोस्टर के माध्यम से उन्हें समझाया जाता है. उन्होंने कहा कि बिहार के कुछ एरिया हैं जिसे क्लेफ्ट बेल्ट माना जाता है. जहां कटे होंठ और कटे तालु के साथ पैदा होने वाले बच्चों की संख्या अधिक रहती है. यह जिले हैं- सुपौल, नवादा, गोपालगंज, किशनगंज, कटिहार.
इन इलाकों के कई गांवों में जाकर उन लोगों के द्वारा छोटे-छोटे जागरुकता कैंप आयोजित किए गए हैं. आशा के माध्यम से सभी को जागरूक करने का प्रयास किया गया है. उन्होंने कहा कि आज भी लोगों को यह पता नहीं है कि आईजीआईएमएस में कटे होंठ और कटे तालु की सर्जरी होती है. लोग इसके लिए बनारस और साउथ के राज्यों का रुख करते हैं. हम चाहते हैं कि ऐसे बच्चों के माता-पिता को आईजीआईएमएस के बारे में जानकारी मिले. इससे उनके बच्चे पूरी तरह स्वस्थ, सुंदर और सामान्य दिखने लगेंगे.
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