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बिहार में संगीन जुर्म के केसों से कोई भी दल अछूता नहीं, सालों से मिल रही है बस 'तारीख पर तारीख' - आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन

बिहार में कई माननीयों पर केस दर्ज (Case filed against Honorable People in Bihar) हैं, जिनमें धरना प्रदर्शन, शांति भंग और कई गंभीर केस हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एमपी एमएलए कोर्ट (MP MLA Court) बनाया गया है, लेकिन माननीय पर लंबित केस 40 साल से भी अधिक समय के पुराने हैं. हालांकि अब कोर्ट की सख्ती से इन मामलों की सुनवाई में तेजी आई है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

बिहार में माननीयों पर केस दर्ज
बिहार में माननीयों पर केस दर्ज
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Published : Apr 3, 2022, 8:55 PM IST

पटना: वैसे तो सभी दल शुचिता की बात करते हैं और यह भी कहते हैं कि आपराधिक चरित्र वाले लोगों को चुनाव में टिकट नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन शायद ही कोई उस पर अमल करता है. बिहार में माननीय पर कई गंभीर मामले दर्ज हैं. बिहार में 598 केस जनप्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज (Case Filed against Public Representatives in Bihar) हैं, जिसमें से 520 पर चार्जशीट हो चुकी है. अनुसंधान के लिए 78 और 7 केस संज्ञान के स्तर पर लंबित हैं. वहीं, 268 सबूत के लिए लंबित हैं. कुछ मामले फैसले के स्तर पर भी लंबित हैं. इसमें पूर्व मंत्री विजय प्रकाश और अन्य का मामला शामिल है. लेकिन, पूरे मामले में पटना हाईकोर्ट का रुख अब सख्त दिख रहा है.

ये भी पढ़ें- 'सुशासन' में ताबड़तोड़ मर्डर से दहशत, डरे सहमे लोगों ने की बिहार में योगी मॉडल लागू करने की मांग

माननीयों पर गंभीर मामलों में केस दर्ज: कई माननीय रेपकांड से लेकर हत्या तक के मामलों में कईयों को तो पहले भी सजा हो चुकी है. राजवल्लभ यादव उम्रकैद की सजा काट रहे हैं, वहीं आनंद मोहन डीएम हत्या मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे हैं. बलिया के पूर्व विधायक सूरजभान सिंह को भी हत्याकांड में सजा हो चुकी है. पूर्व विधायक सुनील पांडे को भी आपराधिक मामले में सजा हो चुकी है. वहीं, कृष्ण वल्लभ यादव को भी हत्या के मामले में सजा मिल चुकी है. सीतामढ़ी गोलीकांड में राजद के पूर्व सांसद अनवारूल हक, नवल किशोर राय और बीजेपी के पूर्व विधायक राम नरेश यादव को सजा मिल चुकी है.

कईयों को घोटालों में मिल चुकी सजा: अलकतरा घोटाले में पूर्व मंत्री इलियास हुसैन को भी सजा मिल चुकी है और चारा घोटाला के मामले में लालू प्रसाद यादव अभी भी जेल में है. उससे पहले जगन्नाथ मिश्रा, आरके राणा, जगदीश शर्मा को भी सजा मिल चुकी है. खगड़िया के पूर्व विधायक रणवीर यादव और पूर्व विधायक राजेंद्र यादव को भी सजा मिल चुकी है. पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को भी सजा मिली है और पूर्व सांसद शहाबुद्दीन को भी सजा मिली है. इनमें से कई नेताओं की अब मौत भी हो चुकी है तो कई अभी भी जेल में हैं, लेकिन सच्चाई यह भी है कि बड़ी संख्या में ऐसे मामले भी हैं जो लंबित हैं.

सभी मामलों पर कोर्ट की कड़ी नजर: ऐसे तो पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट से लेकर पटना हाईकोर्ट तक की कड़ी नजर है और इसके कारण सुनवाई के मामलों में तेजी आई है. कोरोना का भी असर पड़ा है. बिहार में अभी 598 मुकदमे जनप्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज हैं, इसमें से 520 में चार्ज शीट हो चुकी है. 78 केस अनुसंधान के लिए जबकि 7 केस संज्ञान के स्तर पर लंबित है. वहीं, 268 केस साक्ष्य के लिए लंबित है और पटना हाईकोर्ट ने इसमें प्रतिदिन सुनवाई करने का निर्देश दिया है. एमपी एमएलए विशेष कोर्ट में लगातार ऐसे मामलों की सुनवाई हो रही है.

माननीयों के कोर्ट में लंबित केस: सबसे अधिक 102 केस पटना सिविल कोर्ट में लंबित है और सबसे कम एक केस जहानाबाद सिविल कोर्ट में है. पिछले 42 वर्षों से जनप्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे में अब तक सुनवाई के लिए निचली अदालतों में लंबित मामले कुछ जिलों में इस प्रकार से है. पटना कोर्ट में 102, गया कोर्ट में 34, मुजफ्फरपुर कोर्ट में 31, सिवान कोर्ट में 30, कटिहार कोर्ट में 22, रोहतास कोर्ट में 22, बेगूसराय कोर्ट में 22, बक्सर कोर्ट में 22, खगड़िया कोर्ट में 22, आरा कोर्ट में 22, भागलपुर कोर्ट में 18, मोतिहारी कोर्ट में 18, छपरा कोर्ट में 18, पूर्णिया कोर्ट में 18, नवादा कोर्ट में 15 मामले लंबित हैं.

पटना हाईकोर्ट कर रही मॉनिटरिंग: कई ऐसे मामले हैं जो 1993 में दर्ज मुकदमे में साक्ष्य के लिए लंबित है तो 1991 में दर्ज मुकदमे में अभियुक्त की गवाही तक नहीं हो सकी है. 1994 में दर्ज मुकदमों में बचाव पक्ष की गवाही नहीं हुई है. 1981 में दर्ज मुकदमे अन्य कारणों से भी लंबित है तो बिहार में जनप्रतिनिधियों पर गंभीर अपराध के मामलों की सुनवाई भी हो रही है. वहीं, राजनीतिक कारणों से भी कई मामले में दर्ज कर दिए जाते हैं. हालांकि, सभी की सुनवाई में अब तेजी आई है. पटना हाईकोर्ट लगातार इसकी मॉनिटरिंग कर रहा है.

''सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जितने भी माननीय हैं, चाहे वो वार्ड सदस्य हो, मुखिया हो, विधायक हो या एमपी हो इनके जो केस हैं उनको स्पीडी ट्रायल करके समाप्त किया जाए. उस पर तो काम हो रहा है. जैसी करनी वैसी भरनी. अगर इसमें मैं भी रहा तो मेरे साथ भी यही होगा. कोर्ट का आदेश सर्वोपरि है. न्यायालय के आदेश पर कोई टीका टिप्पणी नहीं.''- प्रमोद कुमार, विधि मंत्री, बिहार सरकार

''माननीयों पर जो मुकदमे होते हैं वो ज्यादातर पहले के होते हैं. जब वो विधायक होते हैं तब उन पर मुकदमे कम होते हैं. इसलिए जो पहले घटनाएं घट गई हैं उनमें कई संगीन मामले भी है. ये तो सभी पार्टियों को ध्यान देना है कि हम किसी अपराधी को टिकट ना दें. किसी अपराधी को हम सार्वजनिक संस्था में ना भेजें. इनमें से ज्यादा से ज्याद सत्ता में बैठे माननीय या पहले सत्ता में थे ऐसे माननीय हैं. वामपंथ के ऊपर तो ऐसा कोई मुकदमा होता नहीं है.''- अजय कुमार, सीपीआईएम विधायक

''जो कानून है उसका पालन होना चाहिए. जो अधिकार है वो होना चाहिए. आप चाहते हैं कि गलत लोग नहीं आए तो हम उसके पक्षधर हैं. सभी दलों में जो गलत लोग हैं उन पर कार्रवाई होना चाहिए. हम इसके पक्षधर हैं, लेकिन ये पारदर्शी तौर पर होना चाहिए. इस तरह से नहीं होना चाहिए कि एक पर कार्रवाई हो और एक पर कार्रवाई ना हो.''-विजय मंडल, आरजेडी विधायक

''यही ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों को ये आदेश दिया कि आप अपने राज्य मुख्यालय में फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन करें. जो इस तरह के मामलों को संपादित करे. आप खुद देखिए कि किस तरह कई भूतपूर्व माननीयों को सजा हुई है. विशेष कोर्ट में सुनवाई में तेजी आई है और पहले भी कई को सजा हो चुकी है इसलिए ऐसा नहीं है कि अब किसी तरह की ढिलाई हो रही है.''- अरविंद निषाद, जदयू प्रवक्ता


ऐसे तो हर चुनाव में आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन (violation of Model Code of Conduct) के बड़े पैमाने पर मामले दर्ज किए जाते हैं और उसकी भी सुनवाई लंबे समय से अटकी हुई है. पिछले लोकसभा चुनाव में ही 1142 मामले दर्ज किए गए थे, इसमें से 1105 मामले कोर्ट में सुनवाई के लिए अभी तक लंबित हैं. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से लेकर बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, जेडीयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा, पप्पू यादव और पक्ष विपक्ष के सभी बड़े-बड़े चेहरे आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में एमपी एमएलए कोर्ट में हाजिरी देते रहे हैं, तो वहीं गंभीर मामले भी काफी हैं और उसके निष्पादन में भी अब कोर्ट लगातार मॉनिटरिंग कर रहा है.

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पटना: वैसे तो सभी दल शुचिता की बात करते हैं और यह भी कहते हैं कि आपराधिक चरित्र वाले लोगों को चुनाव में टिकट नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन शायद ही कोई उस पर अमल करता है. बिहार में माननीय पर कई गंभीर मामले दर्ज हैं. बिहार में 598 केस जनप्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज (Case Filed against Public Representatives in Bihar) हैं, जिसमें से 520 पर चार्जशीट हो चुकी है. अनुसंधान के लिए 78 और 7 केस संज्ञान के स्तर पर लंबित हैं. वहीं, 268 सबूत के लिए लंबित हैं. कुछ मामले फैसले के स्तर पर भी लंबित हैं. इसमें पूर्व मंत्री विजय प्रकाश और अन्य का मामला शामिल है. लेकिन, पूरे मामले में पटना हाईकोर्ट का रुख अब सख्त दिख रहा है.

ये भी पढ़ें- 'सुशासन' में ताबड़तोड़ मर्डर से दहशत, डरे सहमे लोगों ने की बिहार में योगी मॉडल लागू करने की मांग

माननीयों पर गंभीर मामलों में केस दर्ज: कई माननीय रेपकांड से लेकर हत्या तक के मामलों में कईयों को तो पहले भी सजा हो चुकी है. राजवल्लभ यादव उम्रकैद की सजा काट रहे हैं, वहीं आनंद मोहन डीएम हत्या मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे हैं. बलिया के पूर्व विधायक सूरजभान सिंह को भी हत्याकांड में सजा हो चुकी है. पूर्व विधायक सुनील पांडे को भी आपराधिक मामले में सजा हो चुकी है. वहीं, कृष्ण वल्लभ यादव को भी हत्या के मामले में सजा मिल चुकी है. सीतामढ़ी गोलीकांड में राजद के पूर्व सांसद अनवारूल हक, नवल किशोर राय और बीजेपी के पूर्व विधायक राम नरेश यादव को सजा मिल चुकी है.

कईयों को घोटालों में मिल चुकी सजा: अलकतरा घोटाले में पूर्व मंत्री इलियास हुसैन को भी सजा मिल चुकी है और चारा घोटाला के मामले में लालू प्रसाद यादव अभी भी जेल में है. उससे पहले जगन्नाथ मिश्रा, आरके राणा, जगदीश शर्मा को भी सजा मिल चुकी है. खगड़िया के पूर्व विधायक रणवीर यादव और पूर्व विधायक राजेंद्र यादव को भी सजा मिल चुकी है. पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को भी सजा मिली है और पूर्व सांसद शहाबुद्दीन को भी सजा मिली है. इनमें से कई नेताओं की अब मौत भी हो चुकी है तो कई अभी भी जेल में हैं, लेकिन सच्चाई यह भी है कि बड़ी संख्या में ऐसे मामले भी हैं जो लंबित हैं.

सभी मामलों पर कोर्ट की कड़ी नजर: ऐसे तो पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट से लेकर पटना हाईकोर्ट तक की कड़ी नजर है और इसके कारण सुनवाई के मामलों में तेजी आई है. कोरोना का भी असर पड़ा है. बिहार में अभी 598 मुकदमे जनप्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज हैं, इसमें से 520 में चार्ज शीट हो चुकी है. 78 केस अनुसंधान के लिए जबकि 7 केस संज्ञान के स्तर पर लंबित है. वहीं, 268 केस साक्ष्य के लिए लंबित है और पटना हाईकोर्ट ने इसमें प्रतिदिन सुनवाई करने का निर्देश दिया है. एमपी एमएलए विशेष कोर्ट में लगातार ऐसे मामलों की सुनवाई हो रही है.

माननीयों के कोर्ट में लंबित केस: सबसे अधिक 102 केस पटना सिविल कोर्ट में लंबित है और सबसे कम एक केस जहानाबाद सिविल कोर्ट में है. पिछले 42 वर्षों से जनप्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे में अब तक सुनवाई के लिए निचली अदालतों में लंबित मामले कुछ जिलों में इस प्रकार से है. पटना कोर्ट में 102, गया कोर्ट में 34, मुजफ्फरपुर कोर्ट में 31, सिवान कोर्ट में 30, कटिहार कोर्ट में 22, रोहतास कोर्ट में 22, बेगूसराय कोर्ट में 22, बक्सर कोर्ट में 22, खगड़िया कोर्ट में 22, आरा कोर्ट में 22, भागलपुर कोर्ट में 18, मोतिहारी कोर्ट में 18, छपरा कोर्ट में 18, पूर्णिया कोर्ट में 18, नवादा कोर्ट में 15 मामले लंबित हैं.

पटना हाईकोर्ट कर रही मॉनिटरिंग: कई ऐसे मामले हैं जो 1993 में दर्ज मुकदमे में साक्ष्य के लिए लंबित है तो 1991 में दर्ज मुकदमे में अभियुक्त की गवाही तक नहीं हो सकी है. 1994 में दर्ज मुकदमों में बचाव पक्ष की गवाही नहीं हुई है. 1981 में दर्ज मुकदमे अन्य कारणों से भी लंबित है तो बिहार में जनप्रतिनिधियों पर गंभीर अपराध के मामलों की सुनवाई भी हो रही है. वहीं, राजनीतिक कारणों से भी कई मामले में दर्ज कर दिए जाते हैं. हालांकि, सभी की सुनवाई में अब तेजी आई है. पटना हाईकोर्ट लगातार इसकी मॉनिटरिंग कर रहा है.

''सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जितने भी माननीय हैं, चाहे वो वार्ड सदस्य हो, मुखिया हो, विधायक हो या एमपी हो इनके जो केस हैं उनको स्पीडी ट्रायल करके समाप्त किया जाए. उस पर तो काम हो रहा है. जैसी करनी वैसी भरनी. अगर इसमें मैं भी रहा तो मेरे साथ भी यही होगा. कोर्ट का आदेश सर्वोपरि है. न्यायालय के आदेश पर कोई टीका टिप्पणी नहीं.''- प्रमोद कुमार, विधि मंत्री, बिहार सरकार

''माननीयों पर जो मुकदमे होते हैं वो ज्यादातर पहले के होते हैं. जब वो विधायक होते हैं तब उन पर मुकदमे कम होते हैं. इसलिए जो पहले घटनाएं घट गई हैं उनमें कई संगीन मामले भी है. ये तो सभी पार्टियों को ध्यान देना है कि हम किसी अपराधी को टिकट ना दें. किसी अपराधी को हम सार्वजनिक संस्था में ना भेजें. इनमें से ज्यादा से ज्याद सत्ता में बैठे माननीय या पहले सत्ता में थे ऐसे माननीय हैं. वामपंथ के ऊपर तो ऐसा कोई मुकदमा होता नहीं है.''- अजय कुमार, सीपीआईएम विधायक

''जो कानून है उसका पालन होना चाहिए. जो अधिकार है वो होना चाहिए. आप चाहते हैं कि गलत लोग नहीं आए तो हम उसके पक्षधर हैं. सभी दलों में जो गलत लोग हैं उन पर कार्रवाई होना चाहिए. हम इसके पक्षधर हैं, लेकिन ये पारदर्शी तौर पर होना चाहिए. इस तरह से नहीं होना चाहिए कि एक पर कार्रवाई हो और एक पर कार्रवाई ना हो.''-विजय मंडल, आरजेडी विधायक

''यही ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों को ये आदेश दिया कि आप अपने राज्य मुख्यालय में फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन करें. जो इस तरह के मामलों को संपादित करे. आप खुद देखिए कि किस तरह कई भूतपूर्व माननीयों को सजा हुई है. विशेष कोर्ट में सुनवाई में तेजी आई है और पहले भी कई को सजा हो चुकी है इसलिए ऐसा नहीं है कि अब किसी तरह की ढिलाई हो रही है.''- अरविंद निषाद, जदयू प्रवक्ता


ऐसे तो हर चुनाव में आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन (violation of Model Code of Conduct) के बड़े पैमाने पर मामले दर्ज किए जाते हैं और उसकी भी सुनवाई लंबे समय से अटकी हुई है. पिछले लोकसभा चुनाव में ही 1142 मामले दर्ज किए गए थे, इसमें से 1105 मामले कोर्ट में सुनवाई के लिए अभी तक लंबित हैं. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से लेकर बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, जेडीयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा, पप्पू यादव और पक्ष विपक्ष के सभी बड़े-बड़े चेहरे आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में एमपी एमएलए कोर्ट में हाजिरी देते रहे हैं, तो वहीं गंभीर मामले भी काफी हैं और उसके निष्पादन में भी अब कोर्ट लगातार मॉनिटरिंग कर रहा है.

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