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'पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे' के भरोसे नीतीश: बिहार में खिसकी तैयार जमीन, यूपी में मांग रहे 18 सीट - 'पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे' के भरोसे नीतीश

बिहार की सत्ता में भाजपा की साझीदार जेडीयू उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ताल ठोकने की तैयारी कर रही है. इसके लिए पार्टी की ओर से काफी पहले से दावा किया जा रहा है. सवाल यह उठता है कि जदयू जिन मुद्दों को लेकर उत्तर प्रदेश के चुनाव में जाना चाह रही है, उसमें कौन सा चेहरा और किस मुद्दे को उत्तर प्रदेश की जनता का समर्थन मिलेगा.

(Purvanchal Expressway
(Purvanchal Expressway
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Published : Nov 22, 2021, 1:16 PM IST

पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) यूपी के दौरे पर हैं. यूपी में पीएम की पहली प्राथमिकता पूर्वांचल की तैयारी है. सबसे बड़ा काम प्रधानमंत्री ने पूर्वांचल एक्सप्रेस वे (Purvanchal Expressway) को जनता को समर्पित कर के दे दिया जो बक्सर में बिहार को भी जोड़ती है. दूरी सिर्फ 18 किलोमीटर की है. अगर इस 18 किलोमीटर की दूरी को पाट दिया जाए तो पूर्वांचल एक्सप्रेस वे पर बिहार वाली राजनीति भी आते ही रफ्तार पकड़ने लगेगी. हालांकि इस रास्ते के बनने में में अभी थोड़ा वक्त है. चर्चा में बात राजनीति की भी है और विकास की भी. जिसमें सियासी गठबंधन का वह समीकरण कहीं न कहीं जगह बनाए हुए हैं कि सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) वाली जदयू उत्तर प्रदेश में योगी वाली भाजपा के साथ गठबंधन कैसे करेगी. यहीं से शुरू हो रही है बिहार और यूपी के मॉडल की चर्चा जिसमें कई चीजें गठजोड़ की भी हैं और विभेद की भी.

ये भी पढ़ें: चारा घोटाला केस: 23 नवंबर को स्पेशल कोर्ट में लालू यादव की पेशी, आज आ सकते हैं पटना

मुद्दा और चेहरे की जद्दोजहद
दरअसल, 2022 की सत्ता की हुकूमत की जंग के लिए (UP Assembly Elections) उत्तर प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों ने ताल ठोक दिया है. बिहार से भी जो राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश में चुनावी लड़ाई में हिस्सेदार होना चाह रहे हैं, उसमें सबसे बड़ी दावेदारी जदयू की है. राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए नीतीश कुमार की पार्टी को वहां पर कम से कम 13 सीटों पर चुनाव लड़ना होगा. 15 सीटों की दावेदारी की बात पहले कही गई थी लेकिन अब 18 सीटों की दावेदारी की चर्चा शुरू हो गई है. बीजेपी (BJP) से जेडीयू (JDU) कम से कम 18 सीटें उत्तर प्रदेश में मांगेगी. लेकिन सवाल यह उठता है कि जदयू जिन मुद्दों को लेकर उत्तर प्रदेश के चुनाव में जाना चाह रही है, उसमें कौन सा चेहरा और कौन सी हनक उत्तर प्रदेश की जनता मानेगी. इस विषय को लेकर बीजेपी में मंथन है. जदयू भी चिंता में डूबी हुई है कि आखिर इसका किया क्या जाए.

2014 में बिहार विधानसभा चुनाव में जब पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार (Bihar CM Nitish Kumar) के बीच राजनीतिक विवाद चल रहा था तो चर्चा बहुत जोरों से थी गुजरात के विकास का मॉडल और नीतीश कुमार का बिहार मॉडल की. अब यूपी के मॉडल को जिस तरीके से खड़ा किया गया और बिहार की जिस मॉडल को लेकर नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश जाना चाह रहे हैं उसमें विभेद थोड़ा बड़ा होता दिख रहा है.

ये भी पढ़ें: पप्पू यादव का नीतीश सरकार पर बड़ा हमला, कहा- 4 माफियाओं के सहारे बिहार

हवा निकाल रहे चिराग
पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के लोकार्पण समारोह के बाद जमुई के सांसद चिराग पासवान (MP Chirag Paswan) ने नीतीश कुमार पर हमला बोल दिया और कहा कि बिहार को पूर्वांचल एक्सप्रेसवे जैसा कोई रास्ता नीतीश कुमार कब देंगे. अब सवाल उठ रहा है कि जिस पूर्वांचल में जदयू चुनाव लड़ने की तैयारी करने जा रही है, उस तैयारी की हवा चिराग पासवान यहीं से निकाल रहे हैं कि कोई एक पूर्वांचल एक्सप्रेसवे जैसा रास्ता तो दे दीजिए बताने के लिए कि बिहार में हमने भी एक्सप्रेसवे बनाया है. हालांकि चुनाव में रफ्तार भरने के लिए जदयू ने पूरी तैयारी कर ली है. मुद्दों की जब तैयारी की जाती है तो जदयू के नेता भी अगल-बगल झांकने लगते हैं. सोचने लगते हैं कि यूपी के चुनाव में जाने का सबसे बड़ा मुद्दा हम लोग क्या बना सकते हैं.

बिहार में सबसे बड़ी तैयारी अगर सत्ता पक्ष और विपक्ष की रही है जिसमें बीजेपी को घेरने की कवायद हाल के दिनों में रही तो उसमें जाति जनगणना बड़ा मुद्दा रहा. बिहार के उजियारपुर से सांसद और देश के गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय (Minister Nityanand Rai) ने कह दिया कि सरकार जाति जनगणना (Caste Census) नहीं करवाएगी. लोकसभा में उनके उस बयान के बाद बिहार की सियासत में भूचाल आ गया.

नरेंद्र मोदी वाली सरकार को यह बताने के लिए कि बिहार में जाति जनगणना होनी चाहिए, नीतीश कुमार तमाम विपक्षी दलों के साथ दिल्ली पहुंच गए. बात भी रख दिए लेकिन कोई फलाफल निकलता नहीं दिख रहा है क्योंकि जिस जाति जनगणना को सियासत में मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही है, उसकी पूरी बानगी ही भटक गई. ऐसे में बिहार में जाति जनगणना वाली राजनीति को उत्तर प्रदेश में ले जाकर बजाने का कोई फायदा मिलेगा, यह सभी राजनीतिक दल बेहतर तरीके से जानते हैं कि उत्तर सिफर ही रहेगा.

शराब का ट्रंप कार्ड भी फेल
नीतीश ने बिहार में सबसे बड़ा ट्रंप कार्ड शराबबंदी (Liquor Ban in Bihar) का खेला था. हालांकि नीतीश की कई बड़ी योजनाएं केंद्र सरकार ने अडॉप्ट की हैं. चाहे जल जीवन हरियाली मिशन का मामला हो, सात निश्चय का मामला हो, महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 33 से अधिक आरक्षण और पंचायतों में 50 फीसदी के आरक्षण का मामला हो, साइकिल, पोशाक योजना का मामला हो, बेटियों के सैनेटरी नैपकिन का मामला हो, यह तमाम मामले केंद्र सरकार ने खूब सराहे. लेकिन बिहार में इनकी बानगी जिस तरीके से देखी है, वह भी बेपटरी हो गई है. बिहार में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए योजनाएं तो कई बनाई गईं, लेकिन 2018 के बाद से उन्हें पैसा ही नहीं दिया गया. बिहार में सबसे बड़ा कानून शराबबंदी जो नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट बन गया है, उसकी भी हवा निकल गई है. उत्तर प्रदेश के सटे जिले गोपालगंज में जिस तरीके से शराब पीने से लोगों की मौत हुई, पूरे उत्तर प्रदेश को यह पता है कि शराबबंदी नीतीश कुमार ने जरूर लागू कर दी लेकिन उसे जमीन पर उतारने में पूरे तौर पर फेल रह गए हैं.

ये भी पढ़ें: शराबबंदी पर कांग्रेस का नीतीश सरकार पर तंज, कहा- सभी जानते हैं बिहार पुलिस कितनी ईमानदार

रोजगार पर भी फेल बिहार
नीतीश कुमार की पार्टी 16 साल का जश्न मनाने जा रही है. इस जश्न के भरोसे एक संदेश देने की भी कोशिश है कि नीतीश कुमार ने 16 सालों में पूरे बिहार की रंगत ही बदल दी लेकिन इसका भी कोई मजबूत मजमून नीतीश खड़ा नहीं कर पा रहे हैं. रोजगार के मामले पर जिस तरीके से बिहार से पलायन जारी है, वह उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल को भी उसी तरह से दर्द देता है. बिहार में फैक्ट्री के नाम पर पिछले 16 सालों में कुछ आया नहीं और पलायन रोकने के लिए नीतीश सरकार ने कोई नीति बनाई नहीं.

मिट्टी काट कर जिंदगी को मनरेगा के कार्ड में सीमेंट देने से अलग जाकर कुछ करने के लिए बिहार के पास है नहीं और यह करने के लिए बिहार का कोई भी व्यक्ति तैयार नहीं है. ऐसे में रोजगार के मुद्दे पर भी नीतीश कुमार जिस तरीके से फेल हुए हैं, वह भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में रख पाना उनके कुवत के बाहर की बात है.

हर साल आने वाली बाढ़ से बिहार तबाह होता है. लोग अपना सब कुछ गंवा देते हैं. फाइलों में गिनती हो जाती है लेकिन उसे मिलता क्या है. यह बिहार और बिहार से सटे यूपी के जिले के सभी लोग जानते हैं. ऐसे में योजनाओं के नाम पर जितनी चीजें चल रही हैं, उसमें बिहार ने बहुत कुछ ऐसा बेहतर नहीं किया है जो उत्तर प्रदेश में चल रही सरकार से आगे जाकर हो. अब जदयू के नेताओं की चिंता भी यही है और चिंतन भी कि उनकी बात पर यूपी की जनता भरोसा कितना करेगी. नीतीश कुमार ऐसा चेहरा जरूर हैं जिनके काम की हर जगह चर्चा तो होती है. बस काम नहीं होता है, चर्चा सबसे ज्यादा होती है.

खिसक गयी तैयार राजनीतिक जमीन
बहरहाल उत्तर प्रदेश की सत्ता के जंग के लिए दुंदुभी बज गई है. सभी राजनीतिक दल अपने मुद्दों की दुकान लेकर जनता के बीच उतर गए हैं. जो लोग बचे हैं, नयी-नयी आकृति में बेचे जाने वाले सामानों को चुनावी बाजार के लिए सजा रहे हैं. अब देखने वाली बात यह है कि किस के मुद्दे में कितनी मजबूत चमक होती है कि जनता उस पर भरोसा करे. लेकिन एक बात अभी भी जदयू साफ तौर पर जानती है कि उसके पास जो मुद्दे हैं, उससे उत्तर प्रदेश में उसे कुछ हासिल होगा, यह नामुमकिन जैसा है क्योंकि उत्तर प्रदेश के ही कभी प्रदेश अध्यक्ष रहे जदयू के निरंजन भैया ने कहा कि जितनी मजबूत तैयारी जदयू को जमीन पर करनी चाहिए थी वह बिहार के आगे बढ़ी नहीं.

यूपी में जितना किया गया वह भी खत्म हो गया. बहरहाल वर्तमान में निरंजन भैया जदयू के साथ तो नहीं हैं लेकिन यह भी तय है कि जिस जमीन को उस समय जदयू ने तैयार किया था, वह भी जदयू के साथ नहीं है. अब देखना यही होगा कि राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए जिस जमीन और जनाधार की खोज जनता दल यूनाइटेड कर रही है, उसकी सफलता के लिए मुद्दों पर और दिए जाने वाले नेताओं की बातों पर भरोसा करके कितना वोट बैंक यूनाइट होता है, यह तो वक्त के हवाले है.

ये भी पढ़ें: बिहार में शराबबंदी का हाल: पटना में नशे की हालत में मिले रेलवे के गार्ड, होटल मैनेजर समेत 55 गिरफ्तार

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पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) यूपी के दौरे पर हैं. यूपी में पीएम की पहली प्राथमिकता पूर्वांचल की तैयारी है. सबसे बड़ा काम प्रधानमंत्री ने पूर्वांचल एक्सप्रेस वे (Purvanchal Expressway) को जनता को समर्पित कर के दे दिया जो बक्सर में बिहार को भी जोड़ती है. दूरी सिर्फ 18 किलोमीटर की है. अगर इस 18 किलोमीटर की दूरी को पाट दिया जाए तो पूर्वांचल एक्सप्रेस वे पर बिहार वाली राजनीति भी आते ही रफ्तार पकड़ने लगेगी. हालांकि इस रास्ते के बनने में में अभी थोड़ा वक्त है. चर्चा में बात राजनीति की भी है और विकास की भी. जिसमें सियासी गठबंधन का वह समीकरण कहीं न कहीं जगह बनाए हुए हैं कि सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) वाली जदयू उत्तर प्रदेश में योगी वाली भाजपा के साथ गठबंधन कैसे करेगी. यहीं से शुरू हो रही है बिहार और यूपी के मॉडल की चर्चा जिसमें कई चीजें गठजोड़ की भी हैं और विभेद की भी.

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मुद्दा और चेहरे की जद्दोजहद
दरअसल, 2022 की सत्ता की हुकूमत की जंग के लिए (UP Assembly Elections) उत्तर प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों ने ताल ठोक दिया है. बिहार से भी जो राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश में चुनावी लड़ाई में हिस्सेदार होना चाह रहे हैं, उसमें सबसे बड़ी दावेदारी जदयू की है. राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए नीतीश कुमार की पार्टी को वहां पर कम से कम 13 सीटों पर चुनाव लड़ना होगा. 15 सीटों की दावेदारी की बात पहले कही गई थी लेकिन अब 18 सीटों की दावेदारी की चर्चा शुरू हो गई है. बीजेपी (BJP) से जेडीयू (JDU) कम से कम 18 सीटें उत्तर प्रदेश में मांगेगी. लेकिन सवाल यह उठता है कि जदयू जिन मुद्दों को लेकर उत्तर प्रदेश के चुनाव में जाना चाह रही है, उसमें कौन सा चेहरा और कौन सी हनक उत्तर प्रदेश की जनता मानेगी. इस विषय को लेकर बीजेपी में मंथन है. जदयू भी चिंता में डूबी हुई है कि आखिर इसका किया क्या जाए.

2014 में बिहार विधानसभा चुनाव में जब पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार (Bihar CM Nitish Kumar) के बीच राजनीतिक विवाद चल रहा था तो चर्चा बहुत जोरों से थी गुजरात के विकास का मॉडल और नीतीश कुमार का बिहार मॉडल की. अब यूपी के मॉडल को जिस तरीके से खड़ा किया गया और बिहार की जिस मॉडल को लेकर नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश जाना चाह रहे हैं उसमें विभेद थोड़ा बड़ा होता दिख रहा है.

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हवा निकाल रहे चिराग
पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के लोकार्पण समारोह के बाद जमुई के सांसद चिराग पासवान (MP Chirag Paswan) ने नीतीश कुमार पर हमला बोल दिया और कहा कि बिहार को पूर्वांचल एक्सप्रेसवे जैसा कोई रास्ता नीतीश कुमार कब देंगे. अब सवाल उठ रहा है कि जिस पूर्वांचल में जदयू चुनाव लड़ने की तैयारी करने जा रही है, उस तैयारी की हवा चिराग पासवान यहीं से निकाल रहे हैं कि कोई एक पूर्वांचल एक्सप्रेसवे जैसा रास्ता तो दे दीजिए बताने के लिए कि बिहार में हमने भी एक्सप्रेसवे बनाया है. हालांकि चुनाव में रफ्तार भरने के लिए जदयू ने पूरी तैयारी कर ली है. मुद्दों की जब तैयारी की जाती है तो जदयू के नेता भी अगल-बगल झांकने लगते हैं. सोचने लगते हैं कि यूपी के चुनाव में जाने का सबसे बड़ा मुद्दा हम लोग क्या बना सकते हैं.

बिहार में सबसे बड़ी तैयारी अगर सत्ता पक्ष और विपक्ष की रही है जिसमें बीजेपी को घेरने की कवायद हाल के दिनों में रही तो उसमें जाति जनगणना बड़ा मुद्दा रहा. बिहार के उजियारपुर से सांसद और देश के गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय (Minister Nityanand Rai) ने कह दिया कि सरकार जाति जनगणना (Caste Census) नहीं करवाएगी. लोकसभा में उनके उस बयान के बाद बिहार की सियासत में भूचाल आ गया.

नरेंद्र मोदी वाली सरकार को यह बताने के लिए कि बिहार में जाति जनगणना होनी चाहिए, नीतीश कुमार तमाम विपक्षी दलों के साथ दिल्ली पहुंच गए. बात भी रख दिए लेकिन कोई फलाफल निकलता नहीं दिख रहा है क्योंकि जिस जाति जनगणना को सियासत में मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही है, उसकी पूरी बानगी ही भटक गई. ऐसे में बिहार में जाति जनगणना वाली राजनीति को उत्तर प्रदेश में ले जाकर बजाने का कोई फायदा मिलेगा, यह सभी राजनीतिक दल बेहतर तरीके से जानते हैं कि उत्तर सिफर ही रहेगा.

शराब का ट्रंप कार्ड भी फेल
नीतीश ने बिहार में सबसे बड़ा ट्रंप कार्ड शराबबंदी (Liquor Ban in Bihar) का खेला था. हालांकि नीतीश की कई बड़ी योजनाएं केंद्र सरकार ने अडॉप्ट की हैं. चाहे जल जीवन हरियाली मिशन का मामला हो, सात निश्चय का मामला हो, महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 33 से अधिक आरक्षण और पंचायतों में 50 फीसदी के आरक्षण का मामला हो, साइकिल, पोशाक योजना का मामला हो, बेटियों के सैनेटरी नैपकिन का मामला हो, यह तमाम मामले केंद्र सरकार ने खूब सराहे. लेकिन बिहार में इनकी बानगी जिस तरीके से देखी है, वह भी बेपटरी हो गई है. बिहार में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए योजनाएं तो कई बनाई गईं, लेकिन 2018 के बाद से उन्हें पैसा ही नहीं दिया गया. बिहार में सबसे बड़ा कानून शराबबंदी जो नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट बन गया है, उसकी भी हवा निकल गई है. उत्तर प्रदेश के सटे जिले गोपालगंज में जिस तरीके से शराब पीने से लोगों की मौत हुई, पूरे उत्तर प्रदेश को यह पता है कि शराबबंदी नीतीश कुमार ने जरूर लागू कर दी लेकिन उसे जमीन पर उतारने में पूरे तौर पर फेल रह गए हैं.

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रोजगार पर भी फेल बिहार
नीतीश कुमार की पार्टी 16 साल का जश्न मनाने जा रही है. इस जश्न के भरोसे एक संदेश देने की भी कोशिश है कि नीतीश कुमार ने 16 सालों में पूरे बिहार की रंगत ही बदल दी लेकिन इसका भी कोई मजबूत मजमून नीतीश खड़ा नहीं कर पा रहे हैं. रोजगार के मामले पर जिस तरीके से बिहार से पलायन जारी है, वह उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल को भी उसी तरह से दर्द देता है. बिहार में फैक्ट्री के नाम पर पिछले 16 सालों में कुछ आया नहीं और पलायन रोकने के लिए नीतीश सरकार ने कोई नीति बनाई नहीं.

मिट्टी काट कर जिंदगी को मनरेगा के कार्ड में सीमेंट देने से अलग जाकर कुछ करने के लिए बिहार के पास है नहीं और यह करने के लिए बिहार का कोई भी व्यक्ति तैयार नहीं है. ऐसे में रोजगार के मुद्दे पर भी नीतीश कुमार जिस तरीके से फेल हुए हैं, वह भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में रख पाना उनके कुवत के बाहर की बात है.

हर साल आने वाली बाढ़ से बिहार तबाह होता है. लोग अपना सब कुछ गंवा देते हैं. फाइलों में गिनती हो जाती है लेकिन उसे मिलता क्या है. यह बिहार और बिहार से सटे यूपी के जिले के सभी लोग जानते हैं. ऐसे में योजनाओं के नाम पर जितनी चीजें चल रही हैं, उसमें बिहार ने बहुत कुछ ऐसा बेहतर नहीं किया है जो उत्तर प्रदेश में चल रही सरकार से आगे जाकर हो. अब जदयू के नेताओं की चिंता भी यही है और चिंतन भी कि उनकी बात पर यूपी की जनता भरोसा कितना करेगी. नीतीश कुमार ऐसा चेहरा जरूर हैं जिनके काम की हर जगह चर्चा तो होती है. बस काम नहीं होता है, चर्चा सबसे ज्यादा होती है.

खिसक गयी तैयार राजनीतिक जमीन
बहरहाल उत्तर प्रदेश की सत्ता के जंग के लिए दुंदुभी बज गई है. सभी राजनीतिक दल अपने मुद्दों की दुकान लेकर जनता के बीच उतर गए हैं. जो लोग बचे हैं, नयी-नयी आकृति में बेचे जाने वाले सामानों को चुनावी बाजार के लिए सजा रहे हैं. अब देखने वाली बात यह है कि किस के मुद्दे में कितनी मजबूत चमक होती है कि जनता उस पर भरोसा करे. लेकिन एक बात अभी भी जदयू साफ तौर पर जानती है कि उसके पास जो मुद्दे हैं, उससे उत्तर प्रदेश में उसे कुछ हासिल होगा, यह नामुमकिन जैसा है क्योंकि उत्तर प्रदेश के ही कभी प्रदेश अध्यक्ष रहे जदयू के निरंजन भैया ने कहा कि जितनी मजबूत तैयारी जदयू को जमीन पर करनी चाहिए थी वह बिहार के आगे बढ़ी नहीं.

यूपी में जितना किया गया वह भी खत्म हो गया. बहरहाल वर्तमान में निरंजन भैया जदयू के साथ तो नहीं हैं लेकिन यह भी तय है कि जिस जमीन को उस समय जदयू ने तैयार किया था, वह भी जदयू के साथ नहीं है. अब देखना यही होगा कि राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए जिस जमीन और जनाधार की खोज जनता दल यूनाइटेड कर रही है, उसकी सफलता के लिए मुद्दों पर और दिए जाने वाले नेताओं की बातों पर भरोसा करके कितना वोट बैंक यूनाइट होता है, यह तो वक्त के हवाले है.

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