पटना: पिछले डेढ़ से दो दशक में बिहार में कुलपतियों पर भ्रष्टाचार के केस (Corruption cases on VC in Bihar) सबसे अधिक सामने आए हैं. हाल के कुछ सालों में तो यह मामला लगातार बढ़ता जा रहा है. अभी मगध विश्वविद्यालय के कुलपति राजेंद्र प्रसाद (Magadha University VC) और ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र प्रताप सिंह (Lalit Narayan Mithila University VC) पर भ्रष्टाचार के गंभीर मामले आरोप लग रहे हैं. मगध विश्वविद्यालय के कुलपति के यहां तो निगरानी का छापा भी हो चुका है और एक करोड़ से अधिक की संपत्ति मिली है.
ये भी पढ़ें- VC विवाद को लेकर बिहार सरकार और राजभवन के बीच बढ़ी दूरी, पुरानी है तकरार की ये कहानी
कुल मिलाकर भ्रष्टाचार को लेकर बिहार सरकार और राजभवन के बीच टकराव (Conflict between Bihar Government and Raj Bhavan) भी बढ़ता जा रहा है लेकिन, बिहार के विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार (Corruption in Universities of Bihar) के मामले कोई नए नहीं है. जेपी विश्वविद्यालय से लेकर आरा विश्वविद्यालय और मगध विश्वविद्यालय के कुलपति पर पहले भी आरोप लगते रहे हैं.
''भ्रष्टाचार के मामले में कुलपति जेल तक गए हैं और इससे उच्च शिक्षा पर जबरदस्त असर पड़ा है. जहां तक जिम्मेवारी की बात है तो राजभवन जितना जिम्मेवार है, मुख्यमंत्री उससे कम जिम्मेवार नहीं है. मुख्यमंत्री की सहमति के बाद ही कुलपति की नियुक्ति होती है और हिस्सेदारी मिलने के बाद मुख्यमंत्री के स्तर से कोई कार्रवाई नहीं की जाती है. कॉलेजों में शिक्षक की काफी कमी है और शिक्षक नियुक्ति सरकार ही करती है इसमें राजभवन की कोई भूमिका नहीं होती है.''- प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी, पूर्व प्राचार्य, पटना कॉलेज
ये भी पढ़ें- VC पर भ्रष्टाचार को लेकर राजभवन और सरकार में टकराव, शिक्षा मंत्री बोले- जांच तो होनी ही चाहिए
''कुलपति पर भ्रष्टाचार का मामला हो तो विश्वविद्यालयों की शिक्षा पर असर पड़ेगा ही, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है. एक समय पटना विश्वविद्यालय सहित बिहार के प्रमुख विश्वविद्यालयों की गरिमा हुआ करती थे, लोग सभी विश्वविद्यालयों का नाम बड़े गर्व से लिया करते थे. ऐसी जगहों पर जो लोग इसके योग्य हो उन्हें ही वीसी के पद पर होना चाहिए.''- संजय झा, मंत्री, बिहार सरकार
''कुलपतियों पर भ्रष्टाचार के मामले में सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है. आखिर यूपी के ही कुलपति क्यों बन रहे हैं, यह तो जांच का विषय है और यूपी के ही फर्म से ही सारे माल का सप्लाई का ऑर्डर क्यों दिया जाता है. बिना टेंडर के क्यों काम हो रहा है.''- प्रेमचंद्र मिश्रा, राष्ट्रीय प्रवक्ता और एमएलसी, कांग्रेस
''कुलपतियों पर भ्रष्टाचार के मामले के कारण उच्च शिक्षा की चिंताजनक स्थिति बनी हुई है. एक तरफ कॉलेजों में छात्रों के लिए कोई सुविधा नहीं है, तो दूसरी तरफ छापे में लोग पकड़े जा रहे हैं और हमारे नेता तेजस्वी यादव इसी को लेकर लगातार अपनी आवाज उठा रहे हैं. बिना चढ़ावा के नियुक्ति होती ही नहीं है.''- मृत्युंजय तिवारी, प्रवक्ता, आरजेडी
''सवाल उठाना विपक्ष का काम हैं, वो उठाते रहे, लेकिन राजभवन से जुड़ा कोई भी मामला बिहार राज्य सरकार के अधीन नहीं होता है. राजभवन एक अलग बॉडी है और बिहार सरकार एक अलग बॉडी है. उसके अधीन वो काम होता है. पूरा मामला राजभवन का है, सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है. जो कुछ भी होना है वह राजभवन ही करेगा''- निखिल मंडल, प्रवक्ता, जदयू
ये भी पढ़ें- बिहार में यूनिवर्सिटी घोटाला को लेकर विपक्ष के निशाने पर नीतीश सरकार, निष्पक्ष जांच की मांग
बता दें कि पिछले कुछ सालों में विवादों के कारण कई कुलपति अपना टर्म भी पूरा नहीं कर सके हैं और बीच में ही कई कुलपतियों को अपना पद छोड़ना पड़ा है जिसमें पूर्णिया विश्वविद्यालय के राजेश कुमार, भागलपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता, नालंदा खुला विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एसएन प्रसाद, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गिरीश चंद्र जायसवाल शामिल हैं. जब कुलपतियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर मामले हो, निगरानी की छापेमारी हो, एफआईआर हो और कुलपति जेल जा रहे हो और कई पर निगरानी की जांच चल रही हो तो आसानी से समझा जा सकता है कि बिहार की उच्च शिक्षा का क्या हाल हो रहा है.
फिलहाल, कुलपतियों के भ्रष्टाचार के मामले में बिहार सरकार यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि वह गंभीर है. विश्वविद्यालय में जो कुछ भी हो रहा है उसके लिए राजभवन ही दोषी है और राजभवन को ही कार्रवाई करना चाहिए, लेकिन सच्चाई यह भी है कि कुलपति की नियुक्ति में राजभवन की अहम भूमिका है. मुख्यमंत्री की सहमति के बाद ही नियुक्ति होती है और विश्वविद्यालयों के वित्तीय मामलों को लेकर राज्य सरकार ही फैसला लेती है.
ऐसी ही विश्वसनीय खबरों को देखने के लिए डाउनलोड करें ETV BHARAT APP