पटना: बिहार में बीजेपी विधानसभा में अभी बड़े भाई की भूमिका में है. बीजेपी 77 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन इसके बावजूद अब तक बीजेपी अपने लिए मुख्यमंत्री का कोई बड़ा चेहरा नहीं खोज पाई है. इसको लेकर लगातार सवाल भी खड़े होते रहे हैं. वहीं लालू यादव के वोट बैंक एमवाई को तोड़ने में भी सफल नहीं हो पाई है. खासकर यादव वोट बैंक (Yadav vote bank in Bihar) में सेंधमारी करने में सफल नहीं हुई है, जबकि बीजेपी ने एक के बाद एक कई यादव नेताओं को पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेवारी दी है. नंदकिशोर यादव से लेकर भूपेंद्र यादव और नित्यानंद राय उसके बावजूद यादव वोट को ट्रांसफर कराने में सफल नहीं हो पा रही है.
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यादव वोट बैंक पर लालू का एकतरफा राज: बिहार में लालू यादव यादव वोट बैंक पर एकतरफा राज कर रहे हैं. सत्ता से बाहर रहने के बाद भी यादव वोट बैंक उनसे अलग नहीं हुआ है. बिहार में मुसलमानों का वोट प्रतिशत 15% के आसपास है, उसके बाद हिंदू में सबसे अधिक यादव वोट बैंक माना जाता है जो 14% से 15% के आसपास है. यादव के साथ मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण लालू यादव के साथ शुरू से है. बीच में जरूर नीतीश कुमार के साथ मुस्लिम वोट बैंक आ गया था, लेकिन अब वह फिर तेजस्वी के साथ दिख रहा है. लोकसभा चुनाव में जरूर नरेंद्र मोदी के नाम पर यादव वोट बैंक आरजेडी से छिटका था और इसका असर भी दिखा था, जब आरजेडी का खाता तक नहीं खुला था. लेकिन उसके बावजूद अधिकांश वोट आरजेडी को ही मिले थे.
बीजेपी की यादव वोट बैंक पर नजर: यादव वोट बैंक बिहार में सबसे अधिक होने के कारण इस पर बीजेपी की भी नजर (BJP eye on Yadav vote bank) शुरू से रही है. पार्टी की ओर से कई यादव चेहरे का इस्तेमाल इस वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए किया गया है. नंदकिशोर यादव को बीजेपी ने अपना प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया था, वो लंबे समय तक मंत्री भी रहे. भूपेंद्र यादव को बिहार का प्रभारी बनाया गया, अभी केंद्रीय मंत्री भी हैं. आरजेडी से तोड़कर रामकृपाल यादव को बीजेपी में शामिल कराया गया और अब नित्यानंद राय पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आ रहे हैं, पहले प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि बड़े चेहरे के तौर पर पेश करने के बाद भी सभी नेता बड़े स्तर पर यादव वोट बैंक को ट्रांसफर करने में अब तक सफल नहीं हुए हैं.
''यादव वोट बैंक बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण है, क्योंकि संख्या उनकी ज्यादा है और उसके कारण सीट भी अधिक जीतते हैं. बीजेपी को लगता है कि यादव वोट बैंक के सहारे अधिक सीट जीत पाएंगे और इसलिए प्रयास कर रही है, लेकिन सफलता नहीं मिल रही है. विधानसभा चुनाव में 21 यादव को बीजेपी ने टिकट दिया था, लेकिन जीते केवल 6 और वह भी जहां यादव बहुल इलाका था. ऐसे में बीजेपी लगातार प्रयोग कर रही है, लेकिन सफलता नहीं मिल रही है. इसका बड़ा कारण लालू यादव जिस प्रकार से लोगों से सेंटीमेंटल रूप में जुड़ते हैं, बीजेपी के यादव नेता उस प्रकार से जुड़ नहीं पाते हैं. यही कारण है कि यादव उन पर विश्वास नहीं करते हैं. एक तरह से उन्हें यादवों का नेता मानते ही नहीं है.''- वीरेंद्र यादव, पत्रकार
बीजेपी नहीं कर सकी यादव वोट बैंक में सेंधमारी: वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि नित्यानंद राय को बीजेपी ने एक्सपेरिमेंट के तौर पर प्रदेश अध्यक्ष बनाया था और उसमें कुछ सफलता भी मिली. एनडीए की उस समय सरकार भी बनी. लेकिन उसके बाद लालू यादव का जो कोर वोट बैंक है उसमें सेंधमारी नहीं कर सके. उसी के कवायद में बीजेपी लगी है कि 2024 और 2025 के चुनाव में किस प्रकार से यादव वोट बैंक में सेंधमारी की जा सकें. भूपेंद्र यादव की तिकड़ी इस काम में लगी है और नित्यानंद राय को उसी के तहत प्रोजेक्ट भी किया जा रहा है. नित्यानंद राय तेजी से उभरकर भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के प्रबल दावेदार रूप में आगे भी आ रहे हैं.
''आरजेडी के यादव वोट बैंक को अपने पाले में करने की बीजेपी कवायद कर रही है. यदि यादव वोट बैंक का कुछ हिस्सा भी बीजेपी सेंधमारी करने में सफल रहती है तो बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी. अब तक यादव वोट बैंक में सेंधमारी नहीं होने के पीछे बड़ा कारण लालू यादव जिस प्रकार से वन टू वन लोगों से संवाद करते हैं, वह बीजेपी के यादव नेता नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन हाल के दिनों में नित्यानंद राय ठेठ देसी अंदाज में गाय का दूध दुहते हुए फोटो जारी किया है, लेकिन यह सही है कि लालू के कद का बीजेपी में अब तक कोई यादव नेता उभर कर सामने नहीं आया है.''- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
बिहार विधानसभा में 52 यादव विधायक: 2020 विधानसभा चुनाव में कुल 52 यादव विधायक जीत कर आए हैं. इसमें सबसे अधिक 36 विधायक आरजेडी के हैं. उसके बाद 7 विधायक बीजेपी के और 5 विधायक जदयू के हैं. बिहार विधानसभा में यादव विधायकों की स्थिति इस प्रकार है:
- राजद- 36
- बीजेपी- 07
- जदयू- 05
- कांग्रेस- 01
- माले- 02
- सीपीएम- 01
यादव वोट बैंक को लेकर बीजेपी की रणनीति: बिहार में पिछड़ा, अति पिछड़ा का वोट प्रतिशत 52% के आसपास है और उसमें सबसे बड़ा हिस्सा यादव वोट बैंक है. बीजेपी उसे साधने की लगातार कोशिश कर रही है. नित्यानंद राय जो अभी केंद्रीय मंत्री हैं, पहले प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं और आजकल मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में उनकी चर्चा हो रही है. इसलिए तेजस्वी यादव के निशाने पर भी हैं ऐसे में देखना है कि नित्यानंद राय के चेहरे पर बीजेपी आरजेडी के यादव वोट बैंक में कितना सेंधमारी कर पाती है.
PK की रणनीति पर भी सबकी नजर: इस बीच चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानी पीके भी बिहार से राजनीति में एंट्री करने जा रहे हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि यादव वोट बैंक को लेकर जो काम भारतीय जनता पार्टी नहीं कर सकी वो काम पीके अपनी राजनीतिक पार्टी बनाकर कर सकते हैं. मूल रूप से बिहार के रहने वाले प्रशांत किशोर बीजेपी, फिर कांग्रेस, जेडीयू, टीएमसी समेत अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के चुनावी रणनीतिकार रह चुके हैं. किशोर अब दूसरों के लिए रणनीति नहीं बनाएंगे बल्कि राजनीति की नई शुरूआत करेंगे. ऐसे में देखने वाली बात ये होगी कि वो वोट बैंक की राजनीति करते हैं या फिर राज्य में अपनी पकड़ मजबूत करने की कुछ और तैयारी कर रहे हैं.
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