पटना: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) को लेकर वैसे तो बीजेपी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है, लेकिन बिहार की भी कुछ पार्टियां वहां जोर आजमाइश कर रही हैं. दरअसल बिहार की तरह यूपी में भी जातिगत समीकरणों के सहारे सभी दल चुनाव में जीत के लिए अपनी रणनीति साधते रहे हैं. ऐसे में जब बीजेपी ने बिहार की अपनी सहयोगी जेडीयू (JDU), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को यूपी में भाव नहीं दिया तो तीनों ने 'जाति के हथियार' के बूते उत्तर प्रदेश की रण में उतरने का ऐलान कर दिया.
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यूपी चुनाव को लेकर इन दिनों बिहार एनडीए में घमासान (Dispute in Bihar NDA) मचा हुआ है. अभी हाल में ही बीजेपी से समझौता नहीं होने के कारण बिहार में उसकी अहम सहयोगी जेडीयू ने यूपी में अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया. 26 सीटों की पहली सूची और 20 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान भी कर दिया. जबकि पहले से ही वीआईपी चीफ मुकेश सहनी (VIP Chief Mukesh Sahani) के साथ खटपट चल रही है. वहीं हम प्रमुख जीतनराम मांझी (HAM Chief Jitan Ram Manjhi) भी यूपी में चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर चुके हैं. उनके बेटे और बिहार सरकार में मंत्री संतोष सुमन तो पिछले साल योगी से मिलकर भी आए थे
बीजेपी ने भले ही बिहार की अपनी तीनों सहयोगियों में से किसी के साथ यूपी में गठबंधन नहीं किया हो, लेकिन ये तीनों ही दल अकेले ही चुनावी मैदान में कूद चुके हैं. हालांकि इनमें से किसी का वहां न तो जनाधार है और न ही मजबूत संगठन है. ये सिर्फ और सिर्फ अपनी-अपनी जाति को अपना आधार मानकर ताल ठोक रहे हैं. वास्तव में कुर्मी वोट बैंक पर जेडीयू की नजर (JDU Eyeing on Kurmi Vote Bank) है, दलित वोट बैंक पर हम की नजर (HAM Eyeing on Dalit Vote Bank) और और निषाद वोट बैंक पर वीआईपी की नजर (VIP Eyeing on Nishad Vote Bank) है. इन्हें लगता है कि जिस तरह बिहार में इन आधार वोटों की बदौलत सियासत करते रहे हैं, यूपी में भी नैया पार लग जाएगी.
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कुर्मी वोट बैंक पर जेडीयू की नजर
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Bihar CM Nitish Kumar) की नजर उत्तर प्रदेश के कुर्मी वोट बैंक वाली सीटों पर है. उत्तर प्रदेश के 16 जिलों में कुर्मी और पटेल वोट बैंक 6 से 12 फीसदी तक है. इनमें मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और बस्ती जिले प्रमुख हैं. बिहार से सटे हुए पूर्वांचल पर नीतीश कुमार की विशेष नजर है.
यूपी की राजनीति में कुर्मी का दबदबा
नीतीश कुमार सोशल इंजीनियरिंग के मास्टर माने जाते हैं. इसलिए यूपी में भी कुर्मी वोटों पर नजर है. जेडीयू अब तक कई राज्यों में चुनाव लड़ी है, अभी हाल में बंगाल में भी चुनाव लड़ी है, जिसमें उम्मीदवारों का खाता तक नहीं खुला. नीतीश कुमार सोशल इंजीनियरिंग के मास्टर माने जाते हैं, ऐसे में जेडीयू को उम्मीद है कि कुर्मी वोट बैंक का साथ उन्हें मिल सकता है. यूपी में कुर्मी का कुल वोट प्रतिशत 9 से 10 फीसदी के आसपास है. ऐसे में कुर्मी का दबदबा भी यूपी की राजनीति में है.
यूपी की रण में अकेले उतरा जेडीयू
जेडीयू ने वैसे तो बीजेपी के साथ गठबंधन की काफी कोशिश की. केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को तालमेल की जिम्मेदारी दी गई थी. वे पिछले साल से ही इस कोशिश में लगे थे, लेकिन बात नहीं बन पाई. आखिरी वक्त तक इंतजार करने के बावजूद भी जब बीजेपी ने कोई भाव नहीं दिया, तब आखिरकार पार्टी ने 26 सीटों की पहली सूची जारी कर दी. चर्चा है कि 50 सीटों पर जेडीयू चुनाव लड़ सकता है.
खास बात ये है कि जेडीयू ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है उनमें से 19 पर 2017 के चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार जीते थे और 3 पर बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) को मिली थी. इस तरह से 26 में से 22 सीटों पर बीजेपी गठबंधन के विधायक हैं. सिर्फ चार सीटें ऐसी हैं, जहां दूसरी पार्टियों के विधायक हैं. इनमें से 3 समाजवादी पार्टी की तो एक पर कांग्रेस का विधायक है.
निषाद वोट बैंक पर वीआईपी की नजर
बिहार एनडीए की एक और सहयोगी विकासशील इंसान पार्टी भी यूपी में ताल ठोक रही है. वीआईपी चीफ मुकेश सहनी तो पिछले साल से ही बड़े स्तर पर तैयारियों में जुटे हुए हैं. इस वजह से उनकी बीजेपी से जबर्दस्त अदावत चल रही है. मुकेश सहनी अभी तक 30 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार चुके हैं, जबकि कुल 165 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर रखा है. सहनी का फोकस खासकर पूर्वांचल और बुंदेलखंड की उन सीटों पर है, जहां पर निषाद वोटर अहम भूमिका में है. उत्तर प्रदेश की करीब 5 दर्जन विधानसभा सीटों पर इनकी अच्छी-खासी आबादी है. इसलिए निषाद समुदाय उत्तर प्रदेश की राजनीतिक में काफी महत्वपूर्ण है.
पूर्वांचल के जिलों में अच्छी-खासी आबादी
यूपी के गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, संतकबीर नगर, मऊ, मिर्जापुर, वाराणसी, भदोही, इलाहाबाद, फतेहपुर और पश्चिम के कुछ जिलों में निषादों की अच्छी खासी आबादी है. कई सीटों पर ये जीत-हार तय करते हैं. इसलिए सभी दलों की नजर निषाद वोटों पर रहती है. मुकेश सहनी को उम्मीद है कि जिस तरह बिहार में उनको मल्लाहों का साथ मिला, उसी तरह यूपी में भी निषाद आरक्षण की मांग पर इस समाज के लोग उनको वोट करेंगे. हालांकि बीजेपी ने वहां सहनी की बजाय संजय निषाद को तरजीह दी और उनकी निषाद पार्टी के साथ गठबंधन किया है.
दलित वोट बैंक पर हम की नजर
नीतीश कुमार और मुकेश सहनी की तरह ही जीतनराम मांझी भी बिहार में बीजेपी के अलायंस पार्टनर हैं, लेकिन यूपी में दलित वोट बैंक के सहारे अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहते हैं. पिछले साल मांझी के बेटे और बिहार सरकार में मंत्री संतोष सुमन ने लखनऊ में योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी, लेकिन गठबंधन में इन्हें भी जगह नहीं मिल पाई. लिहाजा अब हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा भी अकेले ही मैदान में उतरने की तैयारी में है.
यूपी में दलित जातियां और प्रभाव
उत्तर प्रदेश में दलित वोटरों का प्रतिशत करीब 21.1 हैं, जो जाटव और गैर जाटव दलित में बंटा हुआ है. अगर जाटव दलित की बात करें तो वो 11.70 प्रतिशत हैं और मायावती का कोर वोटर माना जाता है. उसके बाद 3.3 प्रतिशत पासी हैं, अगर बात कोरी, बाल्मीकी की करें तो वो 3.15 प्रतिशत हैं, वही धानुक, गोंड और खटीक 1.05 प्रतिशत हैं, अन्य दलित जातियां भी 1.57% हैं. उत्तर प्रदेश में कुल 403 सीटों में 84 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित विधानसभा सीटें हैं.
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आपको बताएं कि उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है. इस बार चुनाव में अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल को 17 से 18 सीटें मिल रही हैं, जिनमें 7 सीटें सुरक्षित हैं. इसके अलावा गठबंधन में संजय निषाद की पार्टी निषाद पार्टी को 14 से 15 सीटें मिल सकती हैं, जिनमें से 5 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार होंगे. 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए गठबंधन यानी बीजेपी प्लस को 403 में से कुल 325 सीटें मिली थी. इसमें से अकेले बीजेपी ने 384 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें 312 सीटों पर जीत दर्ज की.
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