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न्यायालय ने 25 साल जेल में बिताने वाले हत्या के दोषी को अपराध के समय नाबालिग पाया, रिहाई का आदेश दिया - TRIPLE MURDER CONVICT JUVENILE

सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दिया. कोर्ट ने पाया कि अपराध करते समय उसकी उम्र 14 साल थी.

Triple Murder Convict Juvenile
प्रतीकात्मक तस्वीर. (फाइल फोटो.)
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By Sumit Saxena

Published : 13 hours ago

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को फैसला सुनाया कि हत्या के एक मामले में 25 साल जेल में बिता चुका और राष्ट्रपति के क्षमादान सहित अपने सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल कर चुका व्यक्ति अपराध के समय किशोर था इसलिए उसे रिहा किया जाए.

न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि दोषी ओम प्रकाश उर्फ राजू पिछले 25 साल से जेल में बंद है, जबकि उसने सजा सुनाए जाने के समय निचली अदालत में अपने नाबालिग होने का दावा किया था, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया था.

शीर्ष अदालत ने कहा कि हम केवल यह कहेंगे कि यह एक ऐसा मामला है, जिसमें अपीलकर्ता अदालतों द्वारा की गई गलती के कारण पीड़ित है. हमें बताया गया है कि जेल में उसका आचरण सामान्य है और उसके खिलाफ कोई प्रतिकूल रिपोर्ट नहीं है. उसने समाज में फिर से घुलने-मिलने का अवसर खो दिया. उसने जो समय बिना किसी गलती के गंवाया है, उसे कभी वापस नहीं लाया जा सकता.

उच्चतम न्यायालय ने याचिका को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता को रिहा करने का आदेश दिया लेकिन साथ ही कहा कि उसकी दोषसिद्धि बरकरार रहेगी. दोषी को हत्या के लिए पहले मौत की सजा सुनाई गई थी और उच्चतम न्यायालय ने भी उसकी सजा बरकरार रखी थी. इसके बाद उसने राष्ट्रपति से क्षमादान की अपील की और आठ मई, 2012 को उसे उस समय आंशिक राहत मिली उसके मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया.

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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को फैसला सुनाया कि हत्या के एक मामले में 25 साल जेल में बिता चुका और राष्ट्रपति के क्षमादान सहित अपने सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल कर चुका व्यक्ति अपराध के समय किशोर था इसलिए उसे रिहा किया जाए.

न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि दोषी ओम प्रकाश उर्फ राजू पिछले 25 साल से जेल में बंद है, जबकि उसने सजा सुनाए जाने के समय निचली अदालत में अपने नाबालिग होने का दावा किया था, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया था.

शीर्ष अदालत ने कहा कि हम केवल यह कहेंगे कि यह एक ऐसा मामला है, जिसमें अपीलकर्ता अदालतों द्वारा की गई गलती के कारण पीड़ित है. हमें बताया गया है कि जेल में उसका आचरण सामान्य है और उसके खिलाफ कोई प्रतिकूल रिपोर्ट नहीं है. उसने समाज में फिर से घुलने-मिलने का अवसर खो दिया. उसने जो समय बिना किसी गलती के गंवाया है, उसे कभी वापस नहीं लाया जा सकता.

उच्चतम न्यायालय ने याचिका को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता को रिहा करने का आदेश दिया लेकिन साथ ही कहा कि उसकी दोषसिद्धि बरकरार रहेगी. दोषी को हत्या के लिए पहले मौत की सजा सुनाई गई थी और उच्चतम न्यायालय ने भी उसकी सजा बरकरार रखी थी. इसके बाद उसने राष्ट्रपति से क्षमादान की अपील की और आठ मई, 2012 को उसे उस समय आंशिक राहत मिली उसके मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया.

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