नई दिल्ली/पटना: बिहार के विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. कई वाइस चांसलर विवादों में हैं. खबरें यहां तक आ रही है कि राजभवन और बिहार सरकार के बीच की दूरियां बढ़ती जा रही है. इन सबके बीच बिहार के राज्यपाल फागू चौहान ( Bihar Governor Fagu Chauhan ) को पीएमओ से कॉल आया और उनको दिल्ली बुलाया गया है. वह दिल्ली पहुंच गए हैं. वह दिल्ली में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ( Dharmendra Pradhan ) एवं राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ( President Ramnath Kovind ) से मुलाकात कर सकते हैं.
दिल्ली पहुंचने पर राज्यपाल ने तमाम आरोपों पर कहा कि जो लोग सवाल उठा रहे हैं, वही लोग इस पर जवाब दे सकते हैं. मैं कुछ नहीं कहना चाहता. बता दें पिछले दिनों मगध विश्वविद्यालय के वीसी प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद के गया और गोरखपुर के ठिकानों पर स्पेशल विजिलेंस यूनिट ने छापे मारे थे. इसके बाद निगरानी इकाई ने विश्वविद्यालय से किताब खरीद के बारे में ब्यौरा मांगा. यह सब विवाद विश्वविद्यालय से ही जुड़े हैं. कई प्रकार की अनिमियता के मद्देनजर निगरानी इकाई के रडार पर चढ़ चुके राजेंद्र प्रसाद मेडिकल लीव पर चले गए हैं.
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बिहार सरकार और राजभवन के बीच की दूरियां तभी दिखी थी जब मंगलवार को राजभवन में आयोजित एक सम्मान समारोह में बिहार के शिक्षा मंत्री एवं जदयू नेता विजय चौधरी शामिल नहीं हुए थे. इस कार्यक्रम में एक वीसी, विद्यार्थियों व प्राचार्य को चांसलर अवार्ड दिया गया था.
उधर, मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर मोहम्मद कुदुस ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है. उन्होंने पत्र में विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति रहे प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह की भूमिका की जांच की मांग की थी. कुदुस ने पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि कर्मचारियों और कॉपी के फर्जी भुगतान के लिए उन पर दबाव बनाया जा रहा है.
उन्होंने उत्तर पुस्तिका खरीद मामले का खुलासा करते हुए कहा है कि पहले 7 रुपये प्रति कॉपी की दर से लखनऊ के बीके ट्रेडर्स के यहां से छपाई होती थी. कार्यकारी कुलपति एसपी सिंह ने इसे बढ़ाकर 16 रुपये प्रति कॉपी कर दिया और 1 लाख 60 हजार कॉपी का ऑर्डर दे दिया गया. जब कॉपी छपकर आई तो 28 रुपया प्रति कॉपी का बिल भेजा गया.
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आरोप तो अब ये भी लग रहे हैं कि बिहार के सभी विश्वविद्यालयों में अनियमितताओं की बाढ़ आयी हुई है. उत्तर पुस्तिका से लेकर अवैध नियुक्ति, किताब खरीद का बड़ा खेल चल रहा है. ताजा संस्करण की बजाए करोड़ों रुपए की पुरानी किताबों की खरीदारी विश्वविद्यालयों में हुई है.
बता दें बिहार में कुलपति की नियुक्ति लंबे समय से विवादों में है. पहले मुख्यमंत्री की ओर से कुलपतियों की नियुक्ति की सूची राजभवन को भेजी जाती थी. उसी में से राजभवन को चयन करना होता था लेकिन अब स्क्रीनिंग कमेटी और सिलेक्शन कमिटी के माध्यम से कुलपति का चयन होता है. उसके बाद राज्यपाल और मुख्यमंत्री की सहमति से नियुक्ति होती है.
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राजभवन की ओर से संबंधित विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला जाता है. आवेदक की पहले पांच सदस्य स्क्रीनिंग कमेटी स्क्रीनिंग करती है, तब सेलेक्शन कमेटी उनमें से कुलपति के नाम का चयन करता है. स्क्रीनिंग कमेटी और सलेक्शन कमेटी में पांच-पांच सदस्य होते हैं जो राजभवन और सरकार की ओर से नॉमिनेटेड होते हैं. पिछले कुछ सालों में राजभवन की भूमिका कई मामलों में बढ़ी है.
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