नालंदा: मिठाइयों का राजा 'खाजा' के बिना बिहार में कोई मांगलिक कार्य होने की कल्पना नहीं की जा सकती. शादी के बाद जब नई नवेली दुल्हन पिया के घर आती है, तब भी वह अपने साथ सौगात के रूप में खाजा जरूर लाती है और उस खाजे को पूरे मुहल्ले में बांटा जाता है.
विदेश में भी प्रसिद्ध है सिलाव का खाजा
बात जब खाजा की हो रही है तो राजगीर और नालंदा के बीच स्थित सिलाव की चर्चा न हो, ऐसा हो नहीं सकता. सिलाव का खाजा बिहार और देश में ही नहीं, विदेश में भी प्रसिद्ध है. यही कारण है कि अब सिलाव के खाजे की बिक्री ऑनलाइन हो रही है, जिससे देश और विदेश के लोग भी घर बैठे सिलाव के खाजा का लुत्फ उठा रहे हैं.
खाजा के बिना नहीं संपन्न होते मांगलिक कार्य
दरअसल, खाजा एक ऐसी मिठाई जिसके बगैर बिहार में कोई मांगलिक कार्य संपन्न ही नहीं होता है. शादी के बाद जब नई नवेली दुल्हन अपने पिया के घर जब आती है तो अपने साथ में खाजा मिठाई जरूर लाती है और इसी खाजा को आसपास में बांटा जाता है. ऐसे में खाजा के व्यवसाय के लिए अब ऐप बनाया गया है, जिससे ऑनलाइन बुकिंग शुरू हो गई है. खाजा को पहले ही जीआई टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) दिया जा चुका है.
'श्रीकाली शाह' नाम के ऐप से लोगों को मिल रहा ऑनलाइन खाजा
खाजा व्यवसायी संदीप लाल बताते हैं कि वह विदेश के लोगों को ऑनलाइन खाजा पहुंचाने के लिए 'श्रीकाली शाह' नाम से ऐप बनाया गया है. डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट एसआरआईकेएएल आईएसएएच डॉट कॉम को लॉग इन कर खाजा का ऑर्डर दिया जा सकता है. विदेशों में आपूर्ति के लिए एयर कूरियर और देश के विभिन्न प्रदेशों के लिए साधारण कूरियर सेवा बहाल की गई है.
सिलाव में खाजा की है चार किस्में
व्यापारियों के मुताबिक, कई स्थानों से खाजा का ऑर्डर आ चुका है. व्यापारी बताते हैं कि सिलाव में खाजा बनने के चार प्रकार हैं. जल्द खराब नहीं होने वाली इस खास मिठाई के यहां चार प्रकार- मीठा खाजा, नमकीन खाजा, देशी घी का खाजा और सादा खाजा बनाए जाते हैं.
राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन कार्यक्रमों में बनाई पहचान
यह मिठाई दिखने में पैटीज जैसी होती है, जो खाने में कुरकुरा और स्वाद में मीठी होती है. इसके लिए आटे, मैदा, चीनी तथा इलायची का प्रयोग किया जाता है. सिलाव खाजा विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन कार्यक्रमों में अपनी पहचान बनाने में भी कामयाब रहा है.
सिलाव के खाजे को मॉरीशस में मिल चुका है अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार
व्यवसायी छोटे लाल बताते हैं कि वर्ष 1987 में मॉरीशस में हुए अंतर्राष्ट्रीय मिठाई महोत्सव में सिलाव के खाजे को अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. इसके अलावा दिल्ली, पटना, जयपुर व इलाहाबाद में लगी प्रदर्शनियों में भी खाजा को स्वादिस्ट मिठाई का पुरस्कार मिल चुका है.
प्रतिदिन एक क्विंटल खाजा बनाए जाता है
हर खाने वाला 52 परतों वाले यहां के खाजे का मुरीद हो जाता है. सिलाव औद्योगिक स्वावलंबी सहकारी समिति के अध्यक्ष अभय शुक्ला बताते हैं कि सिलाव में खाजा की करीब 75 दुकानें हैं. प्रति दुकान में प्रतिदिन एक क्विंटल खाजा बनाए जाते हैं। यहां आने वाले पर्यटक अपने साथ खाजा ले जाना नहीं भूलते.
सेलिब्रिटी को भी पसंद है सिलाव का खाजा
खासकर पर्यटन के मौसम में तो सिलाव का खाजा बाजार सैलानियों से गुलजार रहता है. शादी विवाह व अन्य अवसरों पर इसकी मांग काफी बढ़ जाती है. यहां आने वाले सेलिब्रेटी भी यहां का खाजा ले जाना नहीं भूलते.
2015 में खाजा निर्माण को मिला उद्योग का दर्जा
वर्ष 2015 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खाजा निर्माण को उद्योग का दर्जा दिया था. साथ ही इस उद्योग को सरकार की क्लस्टर विकास योजना से भी जोड़ा गया है. यहां के व्यापारी इस व्यापार को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश की तारीफ करते हैं. नीतीश भी जब कभी अपने गृह जिला नालंदा आते हैं तो सिलाव का खाजा जरूर चखते हैं.
सैकड़ों साल से चली आ रही है सिलाव में खाजा बनाने की परंपरा
दुकानदार अशोक कुमार गुप्ता ने बताया कि सिलाव में खाजा बनाने की परंपरा सैकड़ों साल से है. काली शाह का परिवार लंबे अर्से से इस कारोबार से जुड़ा हुआ है. इस वजह से इन दोनों के नाम से सिलाव में आज भी कई दुकानें चलती हैं. हालांकि पिछले कुछ दशकों में खाजा के कई कारोबारियों ने इस कारोबार को छोड़ दिया, लेकिन काली शाह के वंशज आज भी इस विरासत को संभाले हुए हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं तारीफ
बता दें कि पटना-राजगीर मार्ग पर स्थित सिलाव बाजार के करीब 200 दुकानों में एक-चौथाई दुकानें खाजा की हैं. पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद ने इसे रेलवे के मेन्यू में भी शामिल किया था. यही नहीं, मॉरिशस में आयोजित सागर महोत्सव में खाजा की सराहना की गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसकी तारीफ कर चुके हैं.
ऐसे बनता है 'खाजा'
खाजा बनाने में मैदा, चीनी और रिफाइन तेल का इस्तेमाल करते हैं. सबसे पहले मैदा को पानी में गूंथते हैं. फिर गूंथे मैदे को रिफाइन में फ्राई करते हैं. उसके बाद छानते हैं. फिर ट्रे पर रखकर उसके ऊपर से चीनी का पतला शीरा डालते हैं जबकि नमकीन खाजा में गूंथने के समय नमक डाल दिया जाता है. अब बिना चीनी और नमक का खाजा भी बनाए जाने लगा है.
दो से तीन टन खाजे की होती है खपत
बता दें कि पर्यटक सीजन में सिलाव में प्रतिदिन 2 से 3 टन खाजा की खपत होती है. यहां 60 से 70 दुकान हैं. और प्रति दुकान करीब 50 किलो खाजा की खपत है.