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लोकसभा चुनाव: नीतीश के मजबूत गढ़ नालंदा में दिखेगा 'हम' का दम? - NDA

सीएम नीतीश कुमार के अभेद्य गढ़ नालंदा में आखिरी चरण में चुनाव होने हैं. यहां इस बार राजनीतिक समीकरण अलग है, जो इस सीट पर लड़ाई को दिलचस्प बना रहे हैं.

नालंदा लोसकभा चुनाव
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Published : May 18, 2019, 6:14 PM IST

नालंदा: विश्‍व के प्राचीनतम विश्‍वविद्यालय के अवशेषों को अपने आंचल में समेटे बुद्ध और महावीर की धरती नालंदा सूबे के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. राजनीतिक दृष्टिकोण से भी बिहार का यह संसदीय क्षेत्र काफी प्रभावशाली माना जाता है. नालंदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला भी है.

नालंदा संसदीय क्षेत्र में कुल सात विधानसभा अस्थावां, बिहारशरीफ़, राजगीर (सु), इस्लामपुर, हिलसा, नालंदा और हरनौत शामिल है. पहले चंडी और हरनौत विधानसभा भी बाढ़ संसदीय क्षेत्र में आते थे, लेकिन परिसीमन के बाद चंडी को हरनौत विधानसभा में शामिल कर दिया गया. इसके बाद हरनौत विधानसभा को बाढ़ संसदीय क्षेत्र से हटाकर नालंदा में शामिल किया गया. हरनौत ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विधानसभा क्षेत्र है.

21 लाख से ज्यादा मतदाता
इस बार के आम चुनाव में कुल 21 लाख 7 हज़ार 71 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. इनमें 11 लाख 14 हज़ार 6 पुरुष वोटर्स, 9 लाख 88 हज़ार 325 महिला वोटर्स, 79 थर्ड जेंडर के वोटर्स शामिल हैं.

नालंदा लोसकभा चुनाव

कुर्मी बहुल जिला है नालंदा
बात करें जातीय समीकरण की तो नालंदा कुर्मी बहुल जिला है. यहां करीब 4 लाख 12 हज़ार कुर्मी मतदाता है. दूसरे नंबर पर यादव मतदाता आते हैं जिनकी संख्या करीब 3 लाख 8 हज़ार है. इसके अलावा कई दूसरी जातियां भी चुनाव परिणामों में अपनी भूमिका अदा करते हैं.

पिछली बार जेडीयू ने दर्ज की थी जीत
2014 में इस सीट पर जेडीयू के कौशलेंद्र कुमार जीते थे. कौशलेंद्र कुमार ने एलजेपी उम्मीदवार सत्यानंद शर्मा को हराया था. कुमार को 34.93% के साथ 3 लाख 21 हजार 982 वोट मिले जबकि सत्यानंद शर्मा को 33.88% के साथ 3,12,355 वोट मिले थे. गौरतलब यह है कि इस हार का अंतर 10 हजार से भी कम था और महज 1 फीसदी से भी कम वोट शेयर पर जीत-हार का फैसला हुआ. जेडीयू ने 2009 के जीत की लय बरकरार रखते हुए 2014 में भी यह सीट अपने नाम की

संतोषजनक है सांसद का रिपोर्ट कार्ड
संसद में कौशलेंद्र कुमार की हाजिरी 96 प्रतिशत तक रही. उन्होंने संसद की 174 बहसों में हिस्सा लिया और कुल 334 सवाल पूछे हैं. अपने 5 साल के कार्यकाल में उन्होंने 2 प्राइवेट मेंबर बिल पास कराए हैं. पिछले दो सालों लगभग सभी सत्रों में उन्होंने संसद में सौ फीसदी हाजिरी दर्ज की. कौशलेंद्र कुमार को भारत सरकार की ओर से 19 करोड़ 50 लाख रुपए आवंटित किए गए. उन्होंने आवंटित राशि से भी ज्यादा लगभग 22 करोड़ 9 लाख रुपए अपने संसदीय क्षेत्र में खर्च किए.

आदर्श गांव में हुए कुछ काम तो कुछ बाकी
सांसद कौशलेंद्र कुमार ने नानंद गांव को गोद लिया है. लोगों का मानना है कि विकास के काम तो हुए लेकिन समस्याएं अब भी है. हालांकि विकास के लिए नाली, गली, पेयजल, बिजली की समस्या तो दूर हुई है लेकिन ग्रामीणों को शौचालय निर्माण के बावजूद उसकी राशि नही मिल पाई है. हालांकि जनता की नाराजगी से सांसद ने इनकार करते हुए गोल-मोल जवाब देते हुए कहा कि मेरी समझ से जनता में नाराजगी नहीं है. वैसे तो महात्मा गांधी के भी कई विरोधी थे,मैनें ऐसा कोई काम नहीं किया है,जिससे हमारे नेता या हमारी जनता अपमानित महसूस करें

नीतीश का अभेद्य गढ़ है नालंदा
नालंदा संसदीय सीट के लिए इस बार भी जदयू ने मौजूदा सांसद कौशलेंद्र कुमार को ही चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं महागठबंधन की ओर से हम कैंडीडेट अशोक कुमार आजाद ताल ठोक रहे हैं. नालंदा सीएम नीतीश का अभेद्य गढ़ माना जाता है. पिछले चुनावों में कभी कांग्रेस तो कभी लोजपा ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं लेकिन किसी पार्टी को सफलता नहीं मिली हैं. इस बार के सीट बंटवारे में एनडीए खेमे में यह सीट जदयू के खाते में गयी है. पार्टी ने अपने वर्तमान सांसद कौशलेंद्र कुमार पर दांव लगाया है. नामांकन के बाद सांसद ने कहा इस बार भी वे विकास के मुद्दे को लेकर चुनावी मैदान में हैं. उन्होंने पूरे बिहार में एनडीए लहर का दावा किया.

महागठबंधन से 'हम' उम्मीदवार मैदान में
वहीं, दूसरी ओर हम प्रत्याशी महागठबंधन के उम्मीदवार अशोक कुमार आजाद ने जीत का दावा करते हुए नालंदा में किसी भी तरह की लड़ाई से इनकार किया. उन्होंने समाज के सभी तबकों के समर्थन मिलने की बात कही.

नए राजनीतिक समीकरणों में दिलचस्प मुकाबला
पिछली बार जेडीयू एनडीए से अलग थी,और चुनाव में जेडीयू ने बाजी मारी. मौजूदा समय में तस्वीर बदली है. कल तक विरोधी रही पार्टियां आज साथी है. इन नए राजनीतिक समीकरणों के मुताबिक देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसे अपना नेता चुनती है.

नालंदा: विश्‍व के प्राचीनतम विश्‍वविद्यालय के अवशेषों को अपने आंचल में समेटे बुद्ध और महावीर की धरती नालंदा सूबे के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. राजनीतिक दृष्टिकोण से भी बिहार का यह संसदीय क्षेत्र काफी प्रभावशाली माना जाता है. नालंदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला भी है.

नालंदा संसदीय क्षेत्र में कुल सात विधानसभा अस्थावां, बिहारशरीफ़, राजगीर (सु), इस्लामपुर, हिलसा, नालंदा और हरनौत शामिल है. पहले चंडी और हरनौत विधानसभा भी बाढ़ संसदीय क्षेत्र में आते थे, लेकिन परिसीमन के बाद चंडी को हरनौत विधानसभा में शामिल कर दिया गया. इसके बाद हरनौत विधानसभा को बाढ़ संसदीय क्षेत्र से हटाकर नालंदा में शामिल किया गया. हरनौत ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विधानसभा क्षेत्र है.

21 लाख से ज्यादा मतदाता
इस बार के आम चुनाव में कुल 21 लाख 7 हज़ार 71 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. इनमें 11 लाख 14 हज़ार 6 पुरुष वोटर्स, 9 लाख 88 हज़ार 325 महिला वोटर्स, 79 थर्ड जेंडर के वोटर्स शामिल हैं.

नालंदा लोसकभा चुनाव

कुर्मी बहुल जिला है नालंदा
बात करें जातीय समीकरण की तो नालंदा कुर्मी बहुल जिला है. यहां करीब 4 लाख 12 हज़ार कुर्मी मतदाता है. दूसरे नंबर पर यादव मतदाता आते हैं जिनकी संख्या करीब 3 लाख 8 हज़ार है. इसके अलावा कई दूसरी जातियां भी चुनाव परिणामों में अपनी भूमिका अदा करते हैं.

पिछली बार जेडीयू ने दर्ज की थी जीत
2014 में इस सीट पर जेडीयू के कौशलेंद्र कुमार जीते थे. कौशलेंद्र कुमार ने एलजेपी उम्मीदवार सत्यानंद शर्मा को हराया था. कुमार को 34.93% के साथ 3 लाख 21 हजार 982 वोट मिले जबकि सत्यानंद शर्मा को 33.88% के साथ 3,12,355 वोट मिले थे. गौरतलब यह है कि इस हार का अंतर 10 हजार से भी कम था और महज 1 फीसदी से भी कम वोट शेयर पर जीत-हार का फैसला हुआ. जेडीयू ने 2009 के जीत की लय बरकरार रखते हुए 2014 में भी यह सीट अपने नाम की

संतोषजनक है सांसद का रिपोर्ट कार्ड
संसद में कौशलेंद्र कुमार की हाजिरी 96 प्रतिशत तक रही. उन्होंने संसद की 174 बहसों में हिस्सा लिया और कुल 334 सवाल पूछे हैं. अपने 5 साल के कार्यकाल में उन्होंने 2 प्राइवेट मेंबर बिल पास कराए हैं. पिछले दो सालों लगभग सभी सत्रों में उन्होंने संसद में सौ फीसदी हाजिरी दर्ज की. कौशलेंद्र कुमार को भारत सरकार की ओर से 19 करोड़ 50 लाख रुपए आवंटित किए गए. उन्होंने आवंटित राशि से भी ज्यादा लगभग 22 करोड़ 9 लाख रुपए अपने संसदीय क्षेत्र में खर्च किए.

आदर्श गांव में हुए कुछ काम तो कुछ बाकी
सांसद कौशलेंद्र कुमार ने नानंद गांव को गोद लिया है. लोगों का मानना है कि विकास के काम तो हुए लेकिन समस्याएं अब भी है. हालांकि विकास के लिए नाली, गली, पेयजल, बिजली की समस्या तो दूर हुई है लेकिन ग्रामीणों को शौचालय निर्माण के बावजूद उसकी राशि नही मिल पाई है. हालांकि जनता की नाराजगी से सांसद ने इनकार करते हुए गोल-मोल जवाब देते हुए कहा कि मेरी समझ से जनता में नाराजगी नहीं है. वैसे तो महात्मा गांधी के भी कई विरोधी थे,मैनें ऐसा कोई काम नहीं किया है,जिससे हमारे नेता या हमारी जनता अपमानित महसूस करें

नीतीश का अभेद्य गढ़ है नालंदा
नालंदा संसदीय सीट के लिए इस बार भी जदयू ने मौजूदा सांसद कौशलेंद्र कुमार को ही चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं महागठबंधन की ओर से हम कैंडीडेट अशोक कुमार आजाद ताल ठोक रहे हैं. नालंदा सीएम नीतीश का अभेद्य गढ़ माना जाता है. पिछले चुनावों में कभी कांग्रेस तो कभी लोजपा ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं लेकिन किसी पार्टी को सफलता नहीं मिली हैं. इस बार के सीट बंटवारे में एनडीए खेमे में यह सीट जदयू के खाते में गयी है. पार्टी ने अपने वर्तमान सांसद कौशलेंद्र कुमार पर दांव लगाया है. नामांकन के बाद सांसद ने कहा इस बार भी वे विकास के मुद्दे को लेकर चुनावी मैदान में हैं. उन्होंने पूरे बिहार में एनडीए लहर का दावा किया.

महागठबंधन से 'हम' उम्मीदवार मैदान में
वहीं, दूसरी ओर हम प्रत्याशी महागठबंधन के उम्मीदवार अशोक कुमार आजाद ने जीत का दावा करते हुए नालंदा में किसी भी तरह की लड़ाई से इनकार किया. उन्होंने समाज के सभी तबकों के समर्थन मिलने की बात कही.

नए राजनीतिक समीकरणों में दिलचस्प मुकाबला
पिछली बार जेडीयू एनडीए से अलग थी,और चुनाव में जेडीयू ने बाजी मारी. मौजूदा समय में तस्वीर बदली है. कल तक विरोधी रही पार्टियां आज साथी है. इन नए राजनीतिक समीकरणों के मुताबिक देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसे अपना नेता चुनती है.

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nalanda witness interesting fight in last phase of election


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