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बड़ी संख्या में फिर बिहार आया साइबेरियन पक्षियों का झुंड, किसानों को होता है नुकसान

साइबेरियन पक्षी बिहार में गया, नवादा, जहानाबाद, औरंगाबाद, पटना के दानापुर, मुजफ्फरपुर और भागलपुर के इलाकों में हजारों के झुंड में आकर घोंसला बनाते और ब्रीडिंग करते हैं.

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Published : Jul 17, 2019, 4:32 PM IST

साइबेरियन पक्षियों का झुंड

गया: जुलाई की पहली बरसात के साथ ही गया में साइबेरियन पक्षी अपना डेरा डाल रहे हैं. इन पक्षियों को सामान्य भाषा में जांघिल कहा जाता है. लगभग 40 वर्षों से ये पक्षी भारत के अन्य राज्यों में ब्रीडिंग करने आते हैं.

संरक्षित जाति है एशियन ओपन बिल
इन पक्षियों को भारत सरकार ने संरक्षित घोषित किया है. इनका शिकार करना या पकड़कर रखना गैरकानूनी है. लेकिन ये संरक्षित पक्षी हमारे खेत और किसानों के लिए नुकसानदायक हैं. थाईलैंड और यूनाइटेड किंगडम सहित कई देशों में इस पक्षी को प्रतिबंधित रखा गया है.

बिहार के कई इलाकों में डालते हैं डेरा
साइबेरियन पक्षी बिहार में गया, नवादा, जहानाबाद, औरंगाबाद, पटना के दानापुर, मुजफ्फरपुर और भागलपुर के इलाकों में हजारों के झुंड में आकर घोंसला बनाते और ब्रीडिंग करते हैं. यह पक्षी 2 से चार अंडे तक देते हैं. इनका मुख्य भोजन घोंघा, मछली और केंचुआ है.

ब्रीडिंग करने गया पहुंचा साइबेरियन पक्षियों का झुंड

एशियन ओपन बिल है पक्षी का नाम
मगध विश्वविद्यालय के शोधकर्ता मो.दानिश बताते हैं कि इनका नाम एशियन ओपन बिल है. ये जुलाई महीने में पहली बरसात के साथ बिहार आते हैं और फरवरी तक बिहार में रहते हैं. इस पक्षी की आबादी 2005 के बाद तेजी से बढ़ते हुए देखा गया है. इसकी आबादी 13 साल में बहुत तेजी से बढ़ी है.

खेतों और किसानों के लिए नुकसानदायक
यह पक्षी मुक्ता, घोंगा, मछली और केंचुआ खाता है खेत और किसान के मित्र घोंघा और केंचुआ होते हैं और यह बड़ी आबादी और झुंड में खेत में उतर करे घोंघा और केचुआ खा जाते हैं जो खेत के लिए काफी नुकसानदेह होता है. ऐसे ही बिहार में यूरिया के चलते केंचुआ और घोंघा खेतों से गायब हो चुके हैं, इसलिए किसानों के लिए और खेत के लिए नुकसानदायक है.

गया: जुलाई की पहली बरसात के साथ ही गया में साइबेरियन पक्षी अपना डेरा डाल रहे हैं. इन पक्षियों को सामान्य भाषा में जांघिल कहा जाता है. लगभग 40 वर्षों से ये पक्षी भारत के अन्य राज्यों में ब्रीडिंग करने आते हैं.

संरक्षित जाति है एशियन ओपन बिल
इन पक्षियों को भारत सरकार ने संरक्षित घोषित किया है. इनका शिकार करना या पकड़कर रखना गैरकानूनी है. लेकिन ये संरक्षित पक्षी हमारे खेत और किसानों के लिए नुकसानदायक हैं. थाईलैंड और यूनाइटेड किंगडम सहित कई देशों में इस पक्षी को प्रतिबंधित रखा गया है.

बिहार के कई इलाकों में डालते हैं डेरा
साइबेरियन पक्षी बिहार में गया, नवादा, जहानाबाद, औरंगाबाद, पटना के दानापुर, मुजफ्फरपुर और भागलपुर के इलाकों में हजारों के झुंड में आकर घोंसला बनाते और ब्रीडिंग करते हैं. यह पक्षी 2 से चार अंडे तक देते हैं. इनका मुख्य भोजन घोंघा, मछली और केंचुआ है.

ब्रीडिंग करने गया पहुंचा साइबेरियन पक्षियों का झुंड

एशियन ओपन बिल है पक्षी का नाम
मगध विश्वविद्यालय के शोधकर्ता मो.दानिश बताते हैं कि इनका नाम एशियन ओपन बिल है. ये जुलाई महीने में पहली बरसात के साथ बिहार आते हैं और फरवरी तक बिहार में रहते हैं. इस पक्षी की आबादी 2005 के बाद तेजी से बढ़ते हुए देखा गया है. इसकी आबादी 13 साल में बहुत तेजी से बढ़ी है.

खेतों और किसानों के लिए नुकसानदायक
यह पक्षी मुक्ता, घोंगा, मछली और केंचुआ खाता है खेत और किसान के मित्र घोंघा और केंचुआ होते हैं और यह बड़ी आबादी और झुंड में खेत में उतर करे घोंघा और केचुआ खा जाते हैं जो खेत के लिए काफी नुकसानदेह होता है. ऐसे ही बिहार में यूरिया के चलते केंचुआ और घोंघा खेतों से गायब हो चुके हैं, इसलिए किसानों के लिए और खेत के लिए नुकसानदायक है.

Intro:जुलाई के पहले बरसात के साथ ही गया शहर में साइबेरियन पक्षी बिहार के अन्य जिला के साथ गया में आते हैं, साइबेरिया पक्षी को सामान्य भाषा में जांघिल कहा जाता है डेढ़ सौ पेड़ो पर अपना आश्रय बनाया है। लगभग 40 वर्षो ये पक्षी भारत के अन्य राज्यो में ब्रीडिंग करने आते हैं। शोधकर्ता बताते हैं इस पक्षी से खेत और किसान को नुकसान है।


Body:बड़े आकार का पक्षी को भारत सरकार ने संक्षिरत करके रखा हैं, बड़े आकार के पक्षी में जांघिल भी आता है। जांघिल का शिकार करना या इसे पकड़कर रखना गैरकानूनी हैं। लेकिन ये संरक्षित पक्षी हमारे खेत और किसान के नुकसान दायक हैं। थाईलैंड और यूनाइटेड किंगडम सहित कई देशों में इस पक्षी को प्रतिबंधित रखा गया है।

साइबेरियन पक्षी बिहार में गया,नवादा,जहानाबाद,औरंगाबाद पटना के दानापुर ,मुजफ्फरपुर और भागलपुर के इलाके में हजारों के झुंड में आकर घोसला लगाते और ब्रीडिंग करते हैं। यह पक्षी 2 से चार अंडे तक देते हैं इनका मुख्य भोजन घोंघा, मछली, केंचुआ है ।यह भारत में लगभग 5000 की संख्या में साइबेरिया से 40 साल पहले प्रवासी पक्षी के रूप में आए थे। मगर धीरे-धीरे भारत के वातावरण में खुद से अनुकूलित हो गए अब भारत में ही प्रवास करते हैं। नॉर्थ से साउथ की तरफ और वापस साउथ से जुलाई में नॉर्थ ईस्ट की तरफ प्रवास करते रहते हैं।

साइबेरिया पक्षी की आबादी ढाई लाख है और सबसे अधिक बिहार और बंगाल में है। बिहार में इनके प्रजनन के लिए स्वर्ग जैसा इन्वायरमेंट है कृषि प्रधान होने के कारण जांगिल को खाना की कमी नहीं होती हैं।

मगध विश्वविद्यालय के शोधकर्ता मो.दानिश बताते हैं ये पक्षी का नाम एशियन ओपन बिल हैं। यह जुलाई माह में पहली बरसात के साथ बिहार आता है और फरवरी तक बिहार में रहता है इस पक्षी का आबादी 2005 के बाद तेजी से बढ़ते हुए देखा गया है इसकी आबादी 13 साल में बहुत तेजी से बढ़ी है क्योंकि यह बर्ड वर्ल्ड लाइफ में प्रोटेक्शन एक्ट 1972 सेक्शन 2,सेक्शन 9 और सेक्शन 51 के अंतर्गत सुरक्षित है।थाईलैंड में अकॉर्डिंग टू डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रोबायोलॉजी और डिपार्टमेंट ऑफ इन्वायरमेंट फ़ूड एंड रूरल अफेर यूनाइटेड किंग्डम ने प्रतिबंधित किया है। यह पक्षी मुक्ता घोंगा मछली और केंचुआ खाता है खेत और किसान के मित्र घोंघा और केंचुआ होते हैं और यह बड़ी आबादी और झुंड में खेत में उतर करें घोंघा और केचुआ खा जाते हैं जो खेत को काफी नुकसान होता है ऐसे ही बिहार में यूरिया के चलते केंचुआ और घोंघा खेतों से गायब हो चुके हैं इसलिए किसानों के लिए और खेत के लिए नुकसानदायक है।

अगर जांगिड़ पक्षी की आबादी इसी तरह तेजी से बढ़ती रही तो काफी नुकसानदायक होगा। इसके नुकसान के पक्ष के बारे में कोई नही सोच रहा है। ये जो पेड़ पर घोंसला बनाते हैं उसको भी नुकसान पहुचाते हैं। अगर ये सीमित आबादी के साथ आये तो तब कोई दिक्कत नहीं है।


Conclusion:
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