गयाः शहर के पंचायती आखड़ा में 1956 से बना स्वतंत्र मध्य विद्यालय, भवन विहीन है. गर्मी के बढ़ते तापमान को देखते हुए जिला प्रशासन ने स्कूल के समय में बदलाव तो किए हैं. लेकिन खुले में पढ़ने को मजबूर इन बच्चों को तपती धूप और लू की मार झेलनी पड़ रही है.
दशकों पहले सरकारी विद्यालय भवन विहीन रहते थे. छात्र पेड़ की छांव में पढ़ाई करते थे. भारत अब 4जी के युग में है, सरकार अपनी योजना से स्कूली व्यवस्था सुधारने के दावे करती है. पंचायती अखाड़ा में बने स्वतंत्र मध्य विद्यालय की तस्वीर हैरान कर देने वाली है. 45 डिग्री तापमान में मासूम खूले आसमान में पढ़ाई करते हैं.
समय बदला मौसम नहीं
यहां पढ़ने वालें छात्रों का कहना है कि वे इसी तरह कई वर्षों से खुले में पढ़ाई करते हैं. गर्मी के दिन में लू लग जाती है बरसात में भीग जाते हैं तो ठंड के मौसम में ठंड लग जाती है. पीने के लिए एक चापाकल है तो शौचालय है ही नहीं. बच्चे कहते हैं कि डीएम अंकल से निवेदन करते हैं कि आपने जैसे गर्मी को देखते हुए समय में बदलाव किए हैं, उसी तरह हमारे स्कूल में छांव और शौचालय की व्यवस्था भी कर दें.
नेताओं की नहीं पड़ती नजर
गया-पटना रोड पर स्थित स्कूल के रास्ते से शहर के विधायक, कृषि मंत्री, मुख्यमंत्री, जिला के प्रभारी मंत्री, शिक्षा मंत्री आते जाते हैं. किसी ने इस स्कूल की ओर नजर नहीं फेरी.1956 में बने ये स्कूल बस तीन छोटे कंक्रीट के सहारे है और बच्चे 100 से अधिक हैं. ऐसे में स्कूल प्रबंधन ने बाहर में ही ब्लैक बोर्ड बनवा दिया और बेंच लगवा दिया.
नहीं सुधरे हालात
विद्यालय के शिक्षकों का कहना है कि उन्हें भी परेशानी होती है. शिक्षक भी धूप में खड़े होकर बच्चों को पढ़ाते हैं. एक शिक्षिका ने बताया कि बच्चों को दिक्कत तो है. बच्चे बीमार भी पड़ते हैं. हमलोग धूप से बचने के लिए कभी इस ओर तो कभी उस ओर कुर्सी लेकर जाते हैं. वहीं, दो शिक्षिका रोजा रखने वाली हैं इस गर्मी में खुले में उनको रहना पड़ेगा.
शिकायत के बाद भी नहीं सुधरे हालात
विद्यालय के निरीक्षण करने विभाग से अधिकारी पुनम कुमारी आती हैं. उन्होंने बताया कि पिछले 6 महीने से विद्यालय का अनुश्रवण करने आ रही हूं. कई बार लिखित शिकायक विभागीय तौर पर भेजी है. इस स्कूल में सिर्फ खानापूर्ति हो रही है. बच्चे इस गर्मी और शोरगुल में क्या पढेंगे. शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है. बहरहाल चुनावी मौसम में नेता नए वादे लेकर आ रहे हैं लेकिन शिक्षा व्यवस्था की ये तस्वीर नई नहीं है.