पटना: 25 जून भारत के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है. यह वो दिन है जब वर्ष 1975 में देश में आपातकाल लागू हुआ था. करीब 2 साल तक लोगों को आपातकाल का दंश झेलना पड़ा था. 25 जून देश में काला दिवस के रूप में मनाया जा रहा है.
'इमरजेंसी देश के लिए काला धब्बा'
इमरजेंसी की यादें ताजा करते हुए राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी ने कहा कि जो कुछ भी हुआ उसे अच्छा तो नहीं कहा जा सकता. इमरजेंसी देश के लिए किसी काले धब्बे से कम नहीं है. ऐसा नहीं होना चाहिए था.उस दौरान जयप्रकाश नारायण युवाओं को आगे आने के लिए प्रेरित कर रहे थे. जेपी के इस आंदोलन में शिवानंद तिवारी भी एक अहम हिस्सा थे.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के विरोध में आपातकाल लागू
शिवानंद तिवारी ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का निर्वाचन रद्द कर दिया था और 5 साल चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी थी. इसी फैसले के विरोध में इंदिरा गांधी ने अचानक 25 जून की रात से ही देश में आपातकाल लागू कर दिया. इसके लिए उन्होंने पहले कैबिनेट की मंजूरी भी नहीं ली. 25 जून की रात आपातकाल लागू करने के बाद अगले दिन 26 जून को उन्होंने कैबिनेट की बैठक बुलाई. उसमें आपातकाल लागू करने को लेकर फैसला किया गया.
'इमरजेंसी का किसी ने विरोध नहीं किया था'
शिवानंद तिवारी ने कहा कि पटना के फुलवारी शरीफ जेल में बंद होने के दौरान उन्होंने महसूस किया कि इमरजेंसी का किसी ने भी विरोध नहीं किया था. अगर इमरजेंसी का चौतरफा विरोध होता तो शायद इतने दिनों तक इमरजेंसी नहीं लगती. उन्होंने यह भी कहा कि कहीं ना कहीं इंदिरा गांधी को अपनी गलती का एहसास था. उनके साथ जेपी समेत कई बड़े नेताओं को जब जेल में डाला गया तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी दबाव बनाया गया, जिसका प्रभाव यह हुआ कि आखिरकार इंदिरा गांधी को इमरजेंसी हटाकर फिर से चुनाव की घोषणा करनी पड़ी.
लोगों को किया गया प्रताड़ित
इमरजेंसी को दौरान बीजेपी के वर्तमान विधायक अरुण कुमार सिन्हा सिवान जेल में थे. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने कोर्ट का भी अपमान किया था. कोर्ट के फैसले के मुताबिक उन्हें पीएम पद से हटना चाहिए था तब उन्होंने आनन-फानन में देश पर इमरजेंसी थोप दी. इमरजेंसी के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता खत्म हो गई. लोगों को कई तरह से प्रताड़ित किया गया. जबरदस्ती हर धर्म के लोगों को नसबंदी कराने को मजबूर किया गया. हैरानी की बात यह है कि जिन लोगों के कारण ऐसा हुआ वो लोग आज एक संपूर्ण बहुमत से चुनी हुई सरकार पर तरह-तरह के आरोप लगाते हैं, जो काफी हास्यास्पद है.