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पथ से भटक रहे युवा, वापस लाने की जिम्मेदारी किसकी ?

हाल ही में यूनेस्को के एक सर्वेक्षण के अनुसार, आक्रामक रूख रखने वालों का समर्थन करने वाले अधिकांश युवाओं में आपराधिक प्रवृत्ति होती है. समाज में अपराध और हिंसा की घटनाओं में इस तरह के व्यवहार करने वालों की पहचान करके उन्हें सही दिशा दिखाने में महत्वपूर्ण रूप से कम किया जा सकता है.

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Published : Dec 29, 2020, 6:26 PM IST

हैदराबाद : वैसे युवा जो आक्रामक रूख रखने वालों का समर्थन करते हैं, उनमें से अधिकांश युवाओं में आपराधिक प्रवृत्ति पाई जाती है. यह दावा हाल ही में किए गए यूनेस्को के एक सर्वे में किया गया है. अगर समय पर इनकी पहचान कर ली जाती है, तो उन युवाओं को सही दिशा में मोड़ा जा सकता है. साथ ही समाज में अपराध और हिंसा पर भी रोक लगाई जा सकती है.

आज के समय में युवा तेजी से आपत्तिजनक गतिविधियों में लिप्त हो रहे हैं. ड्रग्स, शराब, बाइक रेस और ऑनलाइन जुआ में शामिल होकर अपने प्रारंभिक वर्षों को बर्बाद कर रहे हैं. माता-पिता और अभिभावकों की जवाबदेही है कि वे इसकी पहचान करें और उनके व्यवहारों में सुधार लाने के लिए कार्रवाई करें. कुछ माता-पिता ऐसे होते हैं कि बच्चों ने जो कुछ भी मांगा, उसे खरीद देते हैं. हाल ही में एक खबर आई थी कि एक तेज रफ्तार कार फ्लाईओवर से गिर गई. उसमे दो इंजीनियर सवार थे. दोनों की मौत हो गई. पुलिस ने उनकी कार से ड्रग्स बरामद किया.

कई बार देखा गया है कि कॉलेज के छात्र ट्रैफिक सिगनल पर बेट लगाते हैं. सेकंड में बाइक या कार को पार कराने का जोखिम उठाते हैं. यह न सिर्फ खतरनाक है, बल्कि गैर कानूनी भी. दुर्भाग्य ये है कि यह रुझान सिर्फ शहरी और संपन्न परिवारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मध्यम और निम्न-वर्गीय परिवारों तक पहुंच चुका है. ऐसे कई सारे अध्ययन मौजूद हैं, जो दर्शाते हैं कि 40 फीसदी अपराध 18-25 वर्ष की आयु के लोगों द्वारा किए जाते हैं.

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि हमारे बचपन का माहौल, माता-पिता का प्रभाव, पारिवारिक संबंध और दोस्ती सभी उसके जीवन को प्रभावित करते हैं. स्मार्टफोन की लत लगने वालों की संख्या बढ़ रही है. किताबों को पढ़ने या खेल खेलने के बजाय लोग स्क्रीन को पसंद कर रहे हैं. कम उम्र में बच्चों के व्यवहार को पहचानने और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन करने में सक्षम होने से ही वे बेहतर नागरिक बनेंगे.

बचपन में माता-पिता की लापरवाही और किशोरावस्था के दौरान खराब पर्यवेक्षण युवाओं को भटका सकता है. सामाजिक कुरीतियों के पीछे आर्थिक और सामाजिक लाभ प्रमुख प्रेरक हैं. अच्छी जीवन शैली की तलाश में डकैती और चोरी का सहारा लेने से भी परहेज नहीं करते हैं. सामाजिक मूल्यों में गिरावट के लिए सिनेमा और सोशल मीडिया समान रूप से जिम्मेदार हैं. मानव का यह स्वभाव होता है कि वह नकारात्मक प्रवृत्ति से बहुत जल्दी प्रभावित होते हैं.

पढ़ें :- वर्ष 2020 में मानसिक रोगियों की संख्या में दोगुना इजाफा

माता-पिता को बच्चों के साथ उनके व्यवहार की चर्चा करनी चाहिए. बच्चे मां-बाप की कमजोरियों को तुरंत जान जाते हैं. इसलिए बहुत जरूरी है कि आपको सख्ती से पेश आना ही होगा. बच्चों को बड़ा करना आसान काम नहीं होता है. अगर मां-बाप के बीच ही मतभेद है, तो पहले उसे दूर करना चाहिए. उसके बाद बच्चों के लिए सही मार्ग की तलाश करनी चाहिए. इसलिए मां-बाप और शिक्षकों की बहुत बड़ी भूमिका होती है. युवा किसी भी देश के स्तंभ होते हैं. जिम्मेवारी सरकार की भी होती है. हमारी पीढ़ियां किस तरह से बेहतर हो, यह सबकी जवाबदेही होती है. नेताओं को महसूस करना चाहिए कि शहरी और ग्रामीण युवाओं को रोजगार के पर्याप्त अवसर प्रदान करके सामाजिक सद्भाव बनाए रखा जा सकता है.

हैदराबाद : वैसे युवा जो आक्रामक रूख रखने वालों का समर्थन करते हैं, उनमें से अधिकांश युवाओं में आपराधिक प्रवृत्ति पाई जाती है. यह दावा हाल ही में किए गए यूनेस्को के एक सर्वे में किया गया है. अगर समय पर इनकी पहचान कर ली जाती है, तो उन युवाओं को सही दिशा में मोड़ा जा सकता है. साथ ही समाज में अपराध और हिंसा पर भी रोक लगाई जा सकती है.

आज के समय में युवा तेजी से आपत्तिजनक गतिविधियों में लिप्त हो रहे हैं. ड्रग्स, शराब, बाइक रेस और ऑनलाइन जुआ में शामिल होकर अपने प्रारंभिक वर्षों को बर्बाद कर रहे हैं. माता-पिता और अभिभावकों की जवाबदेही है कि वे इसकी पहचान करें और उनके व्यवहारों में सुधार लाने के लिए कार्रवाई करें. कुछ माता-पिता ऐसे होते हैं कि बच्चों ने जो कुछ भी मांगा, उसे खरीद देते हैं. हाल ही में एक खबर आई थी कि एक तेज रफ्तार कार फ्लाईओवर से गिर गई. उसमे दो इंजीनियर सवार थे. दोनों की मौत हो गई. पुलिस ने उनकी कार से ड्रग्स बरामद किया.

कई बार देखा गया है कि कॉलेज के छात्र ट्रैफिक सिगनल पर बेट लगाते हैं. सेकंड में बाइक या कार को पार कराने का जोखिम उठाते हैं. यह न सिर्फ खतरनाक है, बल्कि गैर कानूनी भी. दुर्भाग्य ये है कि यह रुझान सिर्फ शहरी और संपन्न परिवारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मध्यम और निम्न-वर्गीय परिवारों तक पहुंच चुका है. ऐसे कई सारे अध्ययन मौजूद हैं, जो दर्शाते हैं कि 40 फीसदी अपराध 18-25 वर्ष की आयु के लोगों द्वारा किए जाते हैं.

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि हमारे बचपन का माहौल, माता-पिता का प्रभाव, पारिवारिक संबंध और दोस्ती सभी उसके जीवन को प्रभावित करते हैं. स्मार्टफोन की लत लगने वालों की संख्या बढ़ रही है. किताबों को पढ़ने या खेल खेलने के बजाय लोग स्क्रीन को पसंद कर रहे हैं. कम उम्र में बच्चों के व्यवहार को पहचानने और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन करने में सक्षम होने से ही वे बेहतर नागरिक बनेंगे.

बचपन में माता-पिता की लापरवाही और किशोरावस्था के दौरान खराब पर्यवेक्षण युवाओं को भटका सकता है. सामाजिक कुरीतियों के पीछे आर्थिक और सामाजिक लाभ प्रमुख प्रेरक हैं. अच्छी जीवन शैली की तलाश में डकैती और चोरी का सहारा लेने से भी परहेज नहीं करते हैं. सामाजिक मूल्यों में गिरावट के लिए सिनेमा और सोशल मीडिया समान रूप से जिम्मेदार हैं. मानव का यह स्वभाव होता है कि वह नकारात्मक प्रवृत्ति से बहुत जल्दी प्रभावित होते हैं.

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माता-पिता को बच्चों के साथ उनके व्यवहार की चर्चा करनी चाहिए. बच्चे मां-बाप की कमजोरियों को तुरंत जान जाते हैं. इसलिए बहुत जरूरी है कि आपको सख्ती से पेश आना ही होगा. बच्चों को बड़ा करना आसान काम नहीं होता है. अगर मां-बाप के बीच ही मतभेद है, तो पहले उसे दूर करना चाहिए. उसके बाद बच्चों के लिए सही मार्ग की तलाश करनी चाहिए. इसलिए मां-बाप और शिक्षकों की बहुत बड़ी भूमिका होती है. युवा किसी भी देश के स्तंभ होते हैं. जिम्मेवारी सरकार की भी होती है. हमारी पीढ़ियां किस तरह से बेहतर हो, यह सबकी जवाबदेही होती है. नेताओं को महसूस करना चाहिए कि शहरी और ग्रामीण युवाओं को रोजगार के पर्याप्त अवसर प्रदान करके सामाजिक सद्भाव बनाए रखा जा सकता है.

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