हैदराबाद : भारतीय विमान कंपनी के महाराजा एयर इंडिया (Air India) को शायद अब नया खरीदार मिल जाएगा. एयर इंडिया देश की चुनी गई पब्लिक सेक्टर यूनिट है, जिसे भारत सरकार करीब 20 साल से बेचने की कोशिशें कर रही थी. मगर एयर इंडिया के कर्जों और देनदारियों के कारण कोई कंपनी निवेश के लिए इंट्रेस्ट नहीं दिखा रही थी. डिपार्टमेंट ऑफ इनवेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (DIPAM) के अनुसार,15 सितंबर तक संभावित खरीदारों ने अपनी फाइनैंशल बिड दाखिल की है. इसमें टाटा सन्स और स्पाइसजेट शामिल है. इन दोनों में जिनकी बोली अधिक होगी, सरकार एयर इंडिया को उसके हवाले कर देगी. अगर यह बोली टाटा सन्स जीतती है, तो 68 साल बाद कंपनी टाटा के पास वापस चली जाएगी.
20 साल से हो रही है खरीदार की तलाश
2000 तक एयर इंडिया (Air India) फायदा कमाने वाली कंपनी रही. 2001 में कंपनी को पहली बार 57 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था. तभी से इनमें पैसा लगाने वाले निवेशकों की तलाश शुरू हुई. वर्ष 2007 में यूपीए वन की सरकार के दौरान एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस दोनों को मर्ज कर दिया गया. विलय के बाद एयर इंडिया लिमिटेड बना दी गई. 2007 में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस की कुल हानि 770 करोड़ रुपये थी. प्रबंधन में कमी और ईंधन की बढ़ती कीमत के कारण 2009 में यह घाटा 7200 करोड़ रुपये हो गया. लगातार हो रहे नुकसान के कारण 2011 तक एयर इंडिया पर 42,900 करोड़ रुपये का कुल कर्ज हो गया. साथ ही परिचालन घाटा 22000 करोड़ रुपये का हुआ था.
ऩए खरीदार को मिलेगी कर्ज से राहत
करीब 58 हजार करोड़ के कर्ज में दबी एयर इंडिया (Air India) को वित्त वर्ष 2018-19 में भी करीब साढ़े आठ हजार करोड़ रुपये का घाटा हुआ. 2019-20 में एयर इंडिया 38,366.39 करोड़ रुपये का कर्जदार था. कर्ज की यह रकम असल में 60 हजार करोड़ रुपये से अधिक थी, मगर निवेशकों को लुभाने के लिए सरकार ने एयर इंडिया एसेट्स होल्डिंग लिमिटेड में कंपनी के 22,064 करोड़ रुपये के लोन का ट्रांसफर कर दिया. अभी भी एयर इंडिया (Air India ) पर करीब 43 हजार करोड़ रुपये का भारी भरकम कर्ज है. इसमें से 22 हजार करोड़ रुपये एयर इंडिया एसेट होल्डिंग लिमिटेड को ट्रांसफर किया जाएगा.
नए खरीदार को एयर इंडिया के साथ क्या मिलेगा
- स्वामित्व हासिल करने वाली कंपनी को उसे 4400 घरेलू उड़ानें, देश में 1800 अंतर्राष्ट्रीय लैंडिंग और पार्किंग की जगह मिलेगी. इसके अलावा पार्किंग अलोकेशन का कंट्रोल दिया जाएगा.
- कंपनी को एयर इंडिया की सस्ती एविएशन सर्विस एयर इंडिया एक्सप्रेस का भी सौ प्रतिशत कंट्रोल मिलेगा.
- खरीदार कंपनी को इंडिया के एयर बिजनेस में 13 प्रतिशत और विदेशों में 18.6 प्रतिशत की हिस्सेदारी मिल जाएगी. कंपनी में 52,352.18 करोड़ मूल्य की परिसंपत्तियों पर भी कंपनी का हक होगा.
- एयर इंडिया के बेड़े में कुल 127 विमान हैं. मुंबई में एयर इंडिया बिल्डिंग और दिल्ली में एयरलाइंस हाउस भी इस बिक्री की योजना में शामिल है.
कई बार निवेश की कोशिश, फिर सरकार ने बदले नियम
केंद्र सरकार 2001 से ही एयर इंडिया के लिए निवेशक की तलाश कर रही थी. घाटा बढ़ने पर इसे इंडियन एयरलाइंस के साथ मर्ज कर दिया गया. सरकार ने 2017 से ही एयर इंडिया की नीलामी के प्रयास शुरू कर दिए थे. उस समय सरकार ने इसके 76 प्रतिशत शेयर बेचना चाहती थी, इस कारण लेकिन तब कंपनियों ने रुचि ही नहीं दिखाई . अक्टूबर 2020 में सरकार ने नियमों में ढील दी और दोबारा एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (ईओएल) मांगा. इस बार सरकार ने 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बिक्री की पेशकश की. साथ ही, निवेशकों को एयर इंडिया के कर्जों से भी राहत दी. नए खरीदार को अधिग्रहण के बाद करीब 23,286.5 हजार करोड़ रुपये ही चुकाने होंगे. इस बीच केंद्र सरकार ने एसपीवी एयर इंडिया एसेट्स होल्डिंग लिमिडेट ((SPV Air India Assets Holding Ltd) को असेट्स के ट्रांसफर पर टैक्स से छूट दे दी. सरकार एयर इंडिया की संपत्तियां एसपीवी एयर इंडिया को ट्रांसफर कर रही है
1953 में सरकारी हुई थी टाटा की एयर इंडिया
एयर इंडिया के अधिग्रहण के बोली लगाने वालों में टाटा सन्स का नाम सबसे आगे है. अगर टाटा सन्स एयर इंडिया का अधिग्रहण करता है, तो यह करीब 68 साल बाद कंपनी की घरवापसी होगी. 1932 में जेआरडी टाटा ने एयर इंडिया की शुरुआत की थी. मगर तब इसका नाम टाटा एयरलाइन था. 15 अक्टूबर 1932 को खुद जेआरडी टाटा इसकी पहली फ्लाइट लेकर कराची से मुंबई गए थे. 1933 में एयरलाइन ने कमर्शल सर्विस शुरू की. पहले साल में कंपनी ने 1,60000 मील की यात्रा की, 155 पैसेंजरों के साथ 9.72 टन सामान ढोया और कुल 60 हजार रुपये की कमाई की थी.
सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद 29 जुलाई 1946 को टाटा एयरलाइन का नाम एयर इंडिया लिमिटेड कर दिया गया. इसके साथ ही नए मस्कट महाराजा की भी एयरलाइन में एंट्री ली. 2015 में महाराजा का मेकओवर किया गया. साल 1947 में भारत सरकार ने एयर इंडिया में 49 प्रतिशत की भागेदारी ले ली. यहां से एयर इंडिया में सरकारी दखल शुरू हुई.
1948 को एयर इंडिया ने मुंबई से लंदन के बीच इंटरनैशनल फ्लाइट सेवा शुरू की. 1953 में एयर कॉरपोरेशन एक्ट (Air Corporations Act ) के तहत इसका राष्ट्रीयकरण किया गया, लेकिन जेआरडी टाटा 1977 तक इसके अध्यक्ष बने रहे. बताया जाता है कि जे आरडी टाटा ने इसके राष्ट्रीयकरण का विरोध किया था. इसके विरोध में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी थी.
सरकार ने 100 फीसदी हिस्सेदारी हासिल करने के बाद इसके दो टुकड़े किए. घरेलू सेवा के लिए इंडियन एयरलाइंस और विदेशी उड़ान के लिए एयर इंडिया बनाई गई. 1960 में बोइंग इसे बेड़े में शामिल हुए .1962 में यह दुनिया की पहली ऑल-जेट एयरलाइन कंपनी बन गई.
इसके बाद विश्व के एयरलाइंस सेक्टर में इसकी पहचान बनती गई. एयर इंडिया का महाराजा ग्लोबल होता गया. आज इसकी फ्लाइट देश-दुनिया के 102 गंतव्यों तक लोगों को पहुंचाती है.