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गया के सत्येंद्र मांझी ने बंजर जमीन पर दस हजार पेड़ लगाए - दशरथ मांझी से प्रेरित

बिहार के गया के रहने वाले सत्येंद्र मांझी ने पंद्रह साल की मेहनत के बाद बंजर जमीन को हरा-भरा बना दिया . उन्होंने दशरथ मांझी से प्रेरित होकर बंजर जमीन में दस हजार पेड़ लगाए हैं.

बंजर जमीन पर दस हजार पेड़
बंजर जमीन पर दस हजार पेड़
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Published : Feb 16, 2021, 6:11 PM IST

पटना : बिहार के गया के रहने वाले सत्येंद्र मांझी ने पंद्रह साल की मेहनत के बाद बंजर जमीन को हरा-भरा बना दिया है. उन्होंने दशरथ मांझी से प्रेरित होकर बंजर भूमि को न केवल हरा-भरा कर दिया बल्कि वहां अमरुद का बगीचा बना दिया.

सत्येंद्र ने ईटीवी भारत को बताया कि इस बगीचे में दस हजार पेड़ शामिल हैं, जिनमें से ज्यादातर अमरूद के पेड़ हैं. यह जगह पूरी तरह बंजर थी और यहां हर जगह रेत थी.

सत्येंद्र ने कहा कि शुरुआत में उन्हें बहुत परेशानी हुई, क्योंकि सिंचाई का इंतजाम नहीं था. वह अपनी पत्नी के साथ घर के बर्तनों में आधा किलोमीटर दूर से पौधों में डालने के लिए पानी लाया करते थे.

बता दें कि सत्येंद्र बेलागंज में गुरूजी के नाम से प्रसिद्ध हैं, क्योंकि वह इलाके के छात्रों के मुफ्त में शिक्षा देते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

उन्होंने बताया कि उन्होंने दशरथ मांझी से प्रेरित होकर अपने बाग में काम शुरू किया इसमें दस हजार पेड़ शामिल हैं, जिनमें से ज्यादातर अमरूद के पेड़ हैं. उन्होंने बताया कि हालांकि, यह जमीन पूरी तरह से सरकारी है लेकिन प्रशासान ने कभी उन्हें अपना काम करने से नहीं रोका. मांझी को वर्तमान जिलाधिकारी अभिषेक कुमार ने 'हरियाली' पर काम करने के लिए सम्मानित किया है.

पढ़ें - गोधरा कांड का प्रमुख आरोपी 19 साल बाद गुजरात में गिरफ्तार

मांझी और इस गांव के कई लोग फल्गु नदी के तट पर रेत हटाकर खेती भी कर रहे हैं. अमलाहिया चक में फालगुंडी के पास कई हेक्टेयर भूमि पर गेहूं, आलू और सरसों की खेती की गई है.

उन्होंने बताया कि शुरुआती दिनों में जब वह पौधों को लगाकर जाते , तो जानवर पौधों को नष्ट कर देते. फिर वे जंगल से झाड़ियों को लाए और फिर पौधों का चारों तरफ से घेराव किया. अब उन्होंने अपने बगीचे को कांटों की दीवार से सुरक्षित

पटना : बिहार के गया के रहने वाले सत्येंद्र मांझी ने पंद्रह साल की मेहनत के बाद बंजर जमीन को हरा-भरा बना दिया है. उन्होंने दशरथ मांझी से प्रेरित होकर बंजर भूमि को न केवल हरा-भरा कर दिया बल्कि वहां अमरुद का बगीचा बना दिया.

सत्येंद्र ने ईटीवी भारत को बताया कि इस बगीचे में दस हजार पेड़ शामिल हैं, जिनमें से ज्यादातर अमरूद के पेड़ हैं. यह जगह पूरी तरह बंजर थी और यहां हर जगह रेत थी.

सत्येंद्र ने कहा कि शुरुआत में उन्हें बहुत परेशानी हुई, क्योंकि सिंचाई का इंतजाम नहीं था. वह अपनी पत्नी के साथ घर के बर्तनों में आधा किलोमीटर दूर से पौधों में डालने के लिए पानी लाया करते थे.

बता दें कि सत्येंद्र बेलागंज में गुरूजी के नाम से प्रसिद्ध हैं, क्योंकि वह इलाके के छात्रों के मुफ्त में शिक्षा देते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

उन्होंने बताया कि उन्होंने दशरथ मांझी से प्रेरित होकर अपने बाग में काम शुरू किया इसमें दस हजार पेड़ शामिल हैं, जिनमें से ज्यादातर अमरूद के पेड़ हैं. उन्होंने बताया कि हालांकि, यह जमीन पूरी तरह से सरकारी है लेकिन प्रशासान ने कभी उन्हें अपना काम करने से नहीं रोका. मांझी को वर्तमान जिलाधिकारी अभिषेक कुमार ने 'हरियाली' पर काम करने के लिए सम्मानित किया है.

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मांझी और इस गांव के कई लोग फल्गु नदी के तट पर रेत हटाकर खेती भी कर रहे हैं. अमलाहिया चक में फालगुंडी के पास कई हेक्टेयर भूमि पर गेहूं, आलू और सरसों की खेती की गई है.

उन्होंने बताया कि शुरुआती दिनों में जब वह पौधों को लगाकर जाते , तो जानवर पौधों को नष्ट कर देते. फिर वे जंगल से झाड़ियों को लाए और फिर पौधों का चारों तरफ से घेराव किया. अब उन्होंने अपने बगीचे को कांटों की दीवार से सुरक्षित

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