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केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में मानसून से पहले जलसंकट, अब तक चंबल से मिला सिर्फ 5% पानी - Keoladeo National Park

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में मानसून से पहले एक बार फिर जल संकट मंडराने लगा है, जबकि घना में ओपन बिल स्टॉर्क और अन्य पक्षियों ने डेरा डालना शुरू कर दिया है. घना को मानसून, गोवर्धन ड्रेन के अलावा चंबल परियोजना से 62.5 एमसीएफटी पानी मिलना होता है, लेकिन फिलहाल चंबल से घना को महज 5 फीसदी यानी करीब 3 एमसीएफटी पानी ही मिल सका है.

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (ETV Bharat Bharatpur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jun 17, 2024, 3:15 PM IST

भरतपुर. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में मानसून से पहले ओपन बिल स्टॉर्क और अन्य पक्षियों ने डेरा डालना शुरू कर दिया है, लेकिन मानसून से पहले घना में एक बार फिर जल संकट मंडराने लगा है. घना को मानसून, गोवर्धन ड्रेन के अलावा चंबल परियोजना से 62.5 एमसीएफटी पानी मिलना होता है, लेकिन फिलहाल चंबल से घना को महज 5 फीसदी यानी करीब 3 एमसीएफटी पानी ही मिल सका है. वहीं, मानसून आने में अभी करीब 15 दिन का वक्त बाकी है. ऐसे में घना में आए मेहमान परिंदों के लिए पानी की जरूरत महसूस हो रही है. इतना ही नहीं घना को बीते करीब 22 साल से अपने हिस्से का पूरा पानी नहीं मिला है, जिसकी वजह से उद्यान पर काफी नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहे हैं.

घना निदेशक मानस सिंह ने बताया कि पूरे सीजन में घना को कुल 550 एमसीएफटी पानी की जरूरत होती है. इसमें गोवर्धन ड्रेन, चंबल परियोजना और मानसूनी बरसात से पानी की पूर्ति की जाती है. करौली के पांचना बांध से तो लंबे वक्त से पानी ही नहीं मिल पा रहा है. चंबल परियोजना से भी सीजन में कुल 62.5 एमसीएफटी पानी मिलना होता है. फिलहाल चंबल परियोजना से 3 एमसीएफटी पानी ही मिल सका है. हम चंबल से पानी लेने का पूरा प्रयास कर रहे हैं.

इसे भी पढ़ें-समय से पहले घना पहुंचे 50 मानसून दूत, अब जल्द भरतपुर में दस्तक देगा मानसून - Open billed stork birds arrived

यमुना और चंबल से पानी की योजना : निदेशक मानस सिंह ने बताया कि राज्य सरकार के स्तर पर घना में पानी उपलब्ध कराने को लेकर प्लानिंग चल रही है. इसके तहत ईआरसीपी, चंबल और यमुना बेसिन के माध्यम से घना की जरूरत के लिए पूरे 550 एमसीएफटी पानी उपलब्ध कराने की प्लानिंग है. यह योजना सफल होती है तो घना को उसके हिस्से का पूरा पानी मिल सकेगा और जलसंकट की समस्या का समाधान हो जाएगा.

पांचना और नदियों का पानी बंद : घना को पहले तीन नदियों से प्राकृतिक रूप से पानी मिलता था. इनमें बाणगंगा नदी, गंभीरी नदी, पांचना बांध और रूपारेल नदी शामिल थी, लेकिन राजनीति, अतिक्रमण और कम बरसात की वजह से इन तीनों प्राकृतिक स्रोतों से पानी मिलना बंद हो गया. अब मानसून, गोवर्धन ड्रेन और चंबल परियोजना से मिलने वाले पानी से ही घना जिंदा हैं. पर्यावरणविद भोलू अबरार खान ने बताया कि घना को पूरे सीजन में कुल 550 एमसीएफटी पानी की जरूरत होती है, लेकिन बीते करीब 20-22 साल से घना को अपने हिस्से का पूरा पानी नहीं मिल सका. इसका असर घना में आने वाले पक्षियों की संख्या और प्रजातियों पर पड़ रहा है. पहले की तुलना में यहां पक्षियों की संख्या भी काफी कम हो गई. गौरतलब है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पूरी दुनिया में विश्व विरासत के रूप में विख्यात है. यहां सर्दियों के मौसम में करीब 350 से अधिक प्रजाति के देसी- विदेशी हजारों पक्षी प्रवास करते हैं. इतना ही नहीं उद्यान की जैव विविधता भी अपनी अलग पहचान रखती है. यही वजह है कि यहां हर साल पक्षियों की एथेलियों को देखने के लिए लाखों पर्यटक पहुंचते हैं.

भरतपुर. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में मानसून से पहले ओपन बिल स्टॉर्क और अन्य पक्षियों ने डेरा डालना शुरू कर दिया है, लेकिन मानसून से पहले घना में एक बार फिर जल संकट मंडराने लगा है. घना को मानसून, गोवर्धन ड्रेन के अलावा चंबल परियोजना से 62.5 एमसीएफटी पानी मिलना होता है, लेकिन फिलहाल चंबल से घना को महज 5 फीसदी यानी करीब 3 एमसीएफटी पानी ही मिल सका है. वहीं, मानसून आने में अभी करीब 15 दिन का वक्त बाकी है. ऐसे में घना में आए मेहमान परिंदों के लिए पानी की जरूरत महसूस हो रही है. इतना ही नहीं घना को बीते करीब 22 साल से अपने हिस्से का पूरा पानी नहीं मिला है, जिसकी वजह से उद्यान पर काफी नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहे हैं.

घना निदेशक मानस सिंह ने बताया कि पूरे सीजन में घना को कुल 550 एमसीएफटी पानी की जरूरत होती है. इसमें गोवर्धन ड्रेन, चंबल परियोजना और मानसूनी बरसात से पानी की पूर्ति की जाती है. करौली के पांचना बांध से तो लंबे वक्त से पानी ही नहीं मिल पा रहा है. चंबल परियोजना से भी सीजन में कुल 62.5 एमसीएफटी पानी मिलना होता है. फिलहाल चंबल परियोजना से 3 एमसीएफटी पानी ही मिल सका है. हम चंबल से पानी लेने का पूरा प्रयास कर रहे हैं.

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यमुना और चंबल से पानी की योजना : निदेशक मानस सिंह ने बताया कि राज्य सरकार के स्तर पर घना में पानी उपलब्ध कराने को लेकर प्लानिंग चल रही है. इसके तहत ईआरसीपी, चंबल और यमुना बेसिन के माध्यम से घना की जरूरत के लिए पूरे 550 एमसीएफटी पानी उपलब्ध कराने की प्लानिंग है. यह योजना सफल होती है तो घना को उसके हिस्से का पूरा पानी मिल सकेगा और जलसंकट की समस्या का समाधान हो जाएगा.

पांचना और नदियों का पानी बंद : घना को पहले तीन नदियों से प्राकृतिक रूप से पानी मिलता था. इनमें बाणगंगा नदी, गंभीरी नदी, पांचना बांध और रूपारेल नदी शामिल थी, लेकिन राजनीति, अतिक्रमण और कम बरसात की वजह से इन तीनों प्राकृतिक स्रोतों से पानी मिलना बंद हो गया. अब मानसून, गोवर्धन ड्रेन और चंबल परियोजना से मिलने वाले पानी से ही घना जिंदा हैं. पर्यावरणविद भोलू अबरार खान ने बताया कि घना को पूरे सीजन में कुल 550 एमसीएफटी पानी की जरूरत होती है, लेकिन बीते करीब 20-22 साल से घना को अपने हिस्से का पूरा पानी नहीं मिल सका. इसका असर घना में आने वाले पक्षियों की संख्या और प्रजातियों पर पड़ रहा है. पहले की तुलना में यहां पक्षियों की संख्या भी काफी कम हो गई. गौरतलब है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पूरी दुनिया में विश्व विरासत के रूप में विख्यात है. यहां सर्दियों के मौसम में करीब 350 से अधिक प्रजाति के देसी- विदेशी हजारों पक्षी प्रवास करते हैं. इतना ही नहीं उद्यान की जैव विविधता भी अपनी अलग पहचान रखती है. यही वजह है कि यहां हर साल पक्षियों की एथेलियों को देखने के लिए लाखों पर्यटक पहुंचते हैं.

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