नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों के मामले में सुनवाई की. मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने विधानसभा की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता की दलीलें सुनी. जिसमें विधानसभा की ओर से कहा गया कि जितनी भी अवैध नियुक्तियां की गई थी, उन्हें विधानसभा ने नियमों के तहत हटाया गया है. क्योंकि वो नियुक्तियां बिना नियमावली को ध्यान में रखते हुए की गई थी. इस मामले में अब 22 फरवरी को याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुना जाएगा.
बबिता भंडारी समेत 102 अन्य लोगों ने दी थी चुनौती: मामले के अनुसार, अपनी बर्खास्तगी के आदेश को बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ठ, कुलदीप सिंह और 102 अन्य लोगों ने एकलपीठ में चुनौती दी थी. याचिकाओं में कहा गया है कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 और 29 सितंबर 2022 को समाप्त कर दी गई थी. बर्खास्तगी आदेश में उन्हें 'किस आधार और किस कारण' की वजह से हटाया गया, कहीं इसका उल्लेख नहीं किया गया. साथ ही न उन्हें सुना गया. जबकि उनके द्वारा सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया गया है.
कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नहीं: यह आदेश विधि विरुद्ध है. विधानसभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2001 से 2015 के बीच में भी हुई हैं, जिनकों नियमित किया जा चुका है. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 2014 तक हुई तदर्थ नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई. लेकिन उन्हें 6 वर्ष के बाद भी नियमित नहीं किया और अब उन्हें हटा दिया गया. पूर्व में उनकी नियुक्ति को 2018 में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गई थी. जिसमें कोर्ट ने उनके हित में आदेश देकर माना था कि उनकी नियुक्ति वैध है. जबकि नियमानुसार 6 माह की नियमित सेवा करने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था.
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