शिमला: जिला में रोहड़ू की स्पैल वैली के दलगांव में देवता बकरालू जी महाराज के मंदिर में आयोजित हो रहे भुंडा महायज्ञ में महाकुंभ जैसा नजारा देखने को मिल रहा है. आज भुंडा महायज्ञ में बेड़ा सूरत राम मौत की घाटी को रस्सी के सहारे पार करेंगे. इसके साथ ही पिछले 40 साल का इंतजार खत्म होने जा रहा है. भुंडा महायज्ञ में आज लाखों की संख्या में लोग पहुंचे हुए हैं.
बाहर से पहुंचे मेहमान देवता बौंद्रा, देवता मोहरिश, देवता महेश्वर गांव के साथ अलग अलग तंबुओं में हजारों की संख्या में खुंद लोगों के साथ ठहरे हैं. अनुष्ठान शुरू होने से पहले देवताओं की पूजा करीब नौ बजे सुबह शुरू हुई. तंबुओं से देवता बौंद्रा व देवता महेश्वर का पलकियों के साथ खुंद नाचते गाते मेजबान देवता बकरालू के मंदिर प्रांगण में पहुंचे हैं. मंदिर में इस दौरान रास मंडल लिखा गया.
विद्वान पंडित लिखते हैं रास मंडल
रास मंडल की पूजा अर्चना के बाद देवता बौंद्रा और देवता महेश्वर ने इसको सिर लगा कर खंडित किया. इस अनुष्ठान में परशुराम खशकंडी, परशुराम गुम्मा और परशुराम अंद्रेवठी भी शामिल रहे. उसके बाद मंदिर परिसर से फेर शुरू हुआ. फेर पूरा होने के बाद देवता महेश्वर के मंदिर की छत पर शिखा पूजन वैदिक मंत्रोचारण के साथ पूरा किया गया. रास मंडल वैदिक परंपरा के अनुसार विद्वान पंडितों की ओर से लिखा जाता है. इसके तैयार होने और पूजा की प्रक्रिया पूरी होने तक रास मंडल के चारों ओर कुछ चयनित लोग लगतार परिक्रमा करते रहते हैं. मंडल लिखते समय यदि किसी ने इसको खंडित करने का प्रयास किया तो अनुष्ठान में विघ्न माना जाता है.
2 जनवरी से शुरू हुआ था भुंडा महायज्ञ
दलगांव में भुंडा महायज्ञ 2 जनवरी से शुरू हुआ था. ये महायज्ञ 5 जनवरी तक चलेगा. भुंडा महायज्ञ में बेड़ा की रस्म सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. आज बेड़ा सूरत राम 9वीं बार भुंडा महायज्ञ में 9वीं बार मौत की घाटी को पार करेंगे. बेड़ा की रस्म के लिए रस्सी पूरी तरह से तैयार कर ली गई है. इस रस्सी को तैयार करने में लगभग तीन महीने का समय लगा है. इस रस्सी के सहारे ही बेड़ा एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी के बीच बंधी रस्सी से खाई (घाटी) को पार करेगा. बकरालू जी महाराज के मंदिर में आयोजित हो रहे भुंडा महायज्ञ में बेड़ा सूरत राम को बेड़े की भूमिका निभाने का दूसरी बार मौका मिल रहा है. 1985 में बकरालू महाराज के मंदिर में इससे पहले भुंडा यज्ञ हुआ था उस दौरान भी सूरत राम 21 साल के थे और उन्होंने ही उस दौरान भी बेड़े की भूमिका निभाई थी. हिमाचल में अलग अलग स्थानों पर होने वाले भुंडा महायज्ञों में सूरत राम अब तक आठ बार बेड़ा की भूमिका निभा चुके हैं.
खुद रस्सी को तैयार करता है बेड़ा
बेड़ा सूरत राम ने कहा कि, 'वो देवता के मंदिर में पूरे नियम के साथ ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे. आस्था की खाई को पार करने के लिए विशेष घास से खुद रस्सा तैयार किया है. इसे तैयार करने में अपने चार सहयोगियों के साथ करीब ढाई महीने का समय लगा. भुंडा महायज्ञ के लिए बेड़ा को तीन महीने देवता के मंदिर में ही रहना पड़ता है. बेड़ा के लिए एक समय का भोजन मंदिर में ही बनता है. अनुष्ठान के समापन होने तक न तो बाल और न ही नाखून काटे जाते हैं. सुबह चार बजे भोजन करने के बाद फिर अगले दिन सुबह चार बजे भोजन किया जाता है. यानी 24 घंटे में केवल एक बार भोजन किया जाता है. इस दौरान अधिकतम मौन व्रत का पालन किया जाता है.इसके अलावा अन्य प्रतिबंध भी रहते हैं.'
खास प्रकार की घास से बनती है रस्सी
बेड़ा सूरत राम ने कहा कि, 'भुंडा महायज्ञ के दौरान बेड़ा रस्सी के जरिए मौत की घाटी को लांघते हैं. ये रस्सी दिव्य होती है और इसे मूंज कहा जाता है. ये विशेष प्रकार के नर्म घास की बनी होती है. इसे खाई के दो सिरों के बीच बांधा जाता है. भुंडा महायज्ञ की रस्सी को बेड़ा खुद तैयार करते हैं.'
100 करोड़ का है बजट
दलगांव में भुंडा में सैकड़ों मेहमान पहुंचे हैं. इसका बजट 100 करोड़ है. ग्रामीण ने घर में मेहमानों के लिए नए पक्के घर, शौचालयों आदि का निर्माण करवाया है. सभी ग्रामीणों के रिश्तेदार पहुंच चुके हैं. गांव के लोग मेहमाननवाजी में लगे हैं. जो लोग भुंडा देखने के लिए जाएंगे जिनका गांव में कोई रिश्तेदार नहीं है, उनके खाने पीने की व्यवस्था बकरालू महाराज मंदिर के लंगर में होगी.
ये दवेता हुए शामिल
बकरालू जी महाराज के निवास स्थान दलगांव में हो रहे भुंडा महायज्ञ में नौ गांवों दलगांव, ब्रेटली, खशकंडी, कुटाड़ा, बुठाड़ा, गांवना, खोडसू, करालश और भमनोली के ग्रामीण भाग ले रहे हैं. ग्रामीणों ने दूर-दूर के रिश्तेदारों को बीते एक महीने से निमंत्रण बांटने शुरू कर दिए थे. सभी मेहमान दलगांव में अपने रिश्तेदारों के पास पहुंच चुके हैं. इस महायज्ञ में तीन स्थानीय देवता और तीन परशुराम शामिल हुए हैं. आज बेड़ा की रस्म के बाद कल पांच जनवरी को देवताओं की विदाई का कार्यक्रम उछड़ पाछड़ रहेगा