शिमला: स्लो एंड स्टेडी विन्स द रेस, ये मुहावरा बेशक परिस्थिति विशेष में काम करता हो, लेकिन राजनीति में समय की बड़ी कीमत है. समय पर टिकट फाइनल करना और फिर समय पर चुनाव प्रचार में जुट जाने को नेता जीत की पहली सीढ़ी मानते हैं. इधर, हिमाचल प्रदेश में टिकट वितरण के मामले में कांग्रेस की चाल धीमी है. अभी तक कांग्रेस ने दो लोकसभा क्षेत्र और विधानसभा उपचुनाव में छह में से तीन ही टिकट घोषित किए हैं. आलम ये है कि मतदान में एक महीने से कुछ ही अधिक दिन शेष हैं, लेकिन कांग्रेस टिकटों का पेंच फंसा हुआ ही है.
कांग्रेस में उम्मीदवारों के चयन को लेकर माथापच्ची: अभी कांग्रेस ने शिमला व मंडी लोकसभा सीट पर प्रत्याशी दिए हैं. इन सीटों पर उम्मीदवार उतारने में भी कांग्रेस को माथापच्ची करनी पड़ी. मंडी में तो एक तरह से हास्यास्पद स्थिति पैदा हो गई थी, जब प्रतिभा सिंह ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था. आखिर कई राउंड की बातचीत और मंथन के बाद मंडी से विक्रमादित्य सिंह का टिकट फाइनल किया गया. शिमला सीट पर भी कई नाम चर्चा में थे. कांग्रेस ने यहां पूर्व में छह बार सांसद रहे कृष्णदत्त सुल्तानपुरी के विधायक बेटे विनोद सुल्तानपुरी को मैदान में उतारा. अब कांगड़ा व हमीरपुर लोकसभा सीटों पर मंथन चला हुआ है.
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अनुराग को वॉकओवर देने के पक्ष में नहीं हाईकमान: हमीरपुर सीट पर अनुराग ठाकुर के मुकाबले कांग्रेस ने पहले ऊना सदर के पूर्व विधायक सतपाल रायजादा का नाम तय किया था. उनकी उम्मीदवारी का ऐलान डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने कई बार किया. फिर हाईकमान ने ऑब्जेक्शन किया कि हार का सामना कर चुके नेता को क्यों उतारा जाए? रायजादा को कांग्रेस हाईकमान अनुराग ठाकुर के मुकाबले कमजोर मान कर चल रही थी. यही कारण है कि उनका नाम संभावित उम्मीदवार की लिस्ट में नहीं आया. फिर, डिप्टी सीएम और उनकी बेटी आस्था का नाम चला. आस्था ने भी चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. हवाला दिया कि उनका परिवार इस समय मानसिक रूप से टूटा हुआ है. मां सिम्मी के देहावसान से बेटी आस्था अभी भी पीड़ा से उबर नहीं पाई है.
डिप्टी सीएम ने भी चुनाव लड़ने से किया किनारा: इधर, मुकेश अग्निहोत्री ने तो दो टूक ही कह दिया कि उन पर चुनाव लड़ने का कोई व्यक्ति दबाव नहीं डाल सकता. डिप्टी सीएम ने कहा कि वे अपने हिसाब से राजनीति करते हैं. इस तरह कांग्रेस हाईकमान को एक संकेत दे दिया गया कि न तो मुकेश खुद चुनाव लड़ेंगे और न ही बेटी का इरादा है. एक चर्चा सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू की धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर के नाम की भी चली. उस चर्चा का भी कोई फाइनल आउटकम नहीं आया. अब ये भी कहा जा रहा है कि सतपाल रायजादा ही को कहीं टिकट न मिल जाए. ऐसे में कांग्रेस की उहापोह चली हुई है.
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कांगड़ा से गद्दी या ब्राह्मण: कांगड़ा सीट पर आशा कुमारी के नाम की खूब चर्चा थी, लेकिन कई कारणों से उनका नाम फाइनल नहीं हो पा रहा है. बताया जा रहा है कि सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू और हाईकमान का एक हिस्सा भी आशा के नाम पर सहमत नहीं है. इसी तरह आरएस बाली के नाम की चर्चा चली तो बाली ने एक पत्र लिख मारा. उन्होंने हाईकमान से आग्रह किया कि उन्हें विश्वास में लिए बिना कोई कदम न उठाया जाए. बाली पहली बार विधायक बने हैं और अपने इलाके के विकास कार्य में सक्रिय रहने का दुहाई देकर टिकट नहीं चाहते हैं. इधर, कांग्रेस में मंथन चल रहा है कि क्या कांगड़ा से किसी ब्राह्मण चेहरे को उतारा जाए या फिर गद्दी कम्युनिटी से टिकट दिया जाए. कांगड़ा से चुनाव जीते भाजपा के किशन कपूर गद्दी समुदाय से हैं. फिलहाल, कांगड़ा में भी कांग्रेस के पास सीमित विकल्प हैं.
उपचुनाव में तीन टिकटों पर मंथन: कांग्रेस को अभी बड़सर, धर्मशाला और लाहौल में टिकट फाइनल करने हैं. कांग्रेस विचार कर रही है कि उनके दल से बागी होकर जो नेता भाजपा में गए हैं, उससे भाजपा कार्यकर्ताओं में भी असंतोष है. ऐसे में कांग्रेस देख रही है कि भाजपा ने नाराज होकर कोई बड़ा नाम आए तो उसे टिकट दिया जाए. ये फार्मूला बड़सर में संजीव या फिर बलदेव शर्मा के रूप में हो सकता है. भाजपा ने पिछले चुनाव में बलदेव शर्मा की पत्नी माया को टिकट दिया था. वहीं, बागी होकर भाजपा के संजीव ने चुनाव लड़ा था. इंद्रदत्त लखनपाल चुनाव जीत गए थे. अब बड़सर में चूंकि कांग्रेस की कोई सेकेंड लाइनअप नहीं है, इसलिए टिकट का पेंच फंसा हुआ है. लाहौल में कांग्रेस रामलाल मारकंडा पर भी दांव खेल सकती है. इस पर मंथन चला हुआ है. मारकंडा भाजपा से नाराज होकर कांग्रेस से चुनाव लड़ने के लिए पहले ही दिन से तैयार थे. इसी तरह धर्मशाला से राकेश चौधरी या विपिन नेहरिया कांग्रेस के लिए आगे आ सकते हैं. सुजानपुर, गगरेट व कुटलैहड़ में तो कांग्रेस ने टिकट दे दिए, लेकिन तीन सीटें अभी भी फंसी हुई है.
प्रचार में पिछड़ने का सवाल नहीं: सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू कह रहे हैं कि आखिर मतदान तो हाथ के निशान पर होना है. टिकट जिसे भी मिले, मतदान तो पार्टी निशान पर होता है. ऐसे में प्रत्याशी चयन में देरी कोई मुद्दा नहीं है. जहां तक सवाल प्रचार में पिछड़ने का है तो सीएम सुक्खू का कहना है कि वे हमीरपुर, धर्मशाला आदि में प्रचार ही तो कर रहे थे. अब सीएम के लाहौल जाने का कार्यक्रम है. वहीं, भाजपा नेता रणधीर शर्मा का कहना है कि कांग्रेस अभी तक टिकट ही तय नहीं कर पाई है, इससे पता चलता है कि पार्टी में हिमाचल में सब ठीक नहीं है. वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा का कहना है कि प्रत्याशी चयन में देरी कांग्रेस के लिए नुकसान का कारण बन सकती है. खासकर लोकसभा चुनाव में प्रचार युद्ध में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. जहां तक विधानसभा उपचुनाव का सवाल है तो अभी कांग्रेस के पास समय है. क्योंकि विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र आकार में बड़ा नहीं होता. प्रचार के लिए एक महीना भी काफी है, लेकिन बड़ा सवाल प्रत्याशी चयन का है. समय पर उम्मीदवार तय न होने से कार्यकर्ताओं को मनोबल पर असर पड़ता है.
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