जयपुर : राजधानी जयपुर में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों को 16 साल बीत चुके हैं. 13 मई 2008 को गुलाबी शहर की सड़कें लाल हो गई थी. परकोटे में 8 जगह हुए बम धमाकों में 71 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 186 लोग घायल हुए थे. हालांकि, घायलों में उन परिवारों को भी शामिल किया जाना चाहिए, जो 16 साल पहले फैलाए गए आतंकवाद से पीड़ित हुए. जयपुर के गुनहगार अभी भी जिंदा हैं.
12 साल की उम्र में पिता को खोया : 13 मई 2008 की शाम जयपुर में एक के बाद एक 8 सीरियल बम धमाके हुए थे. आतंकवाद के उस मंजर को याद कर आज भी वो लोग सिहर उठते हैं, जिन्होंने अपनों को खोया था. ऐसे ही एक टेररिज्म विक्टिम हैं, अभिनव तिवाड़ी, जिन्होंने महज 12 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था. न्याय नहीं मिलने की वजह से आज 16 साल बाद भी वो खुद को टेररिज्म विक्टिम नहीं बल्कि प्रजातंत्र और न्यायपालिका का विक्टिम मानते हैं. उन्होंने बताया कि एक तरफ फास्ट ट्रैक कोर्ट फैसला सुनाने में 10 साल लगा देती है और फिर हाईकोर्ट 3 साल में गुनहगारों को बरी कर देता है. ऐसे आतंकवाद को बढ़ावा ही मिलेगा.
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हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल : उन्होंने बताया कि 13 मई 2008 की शाम उनके पिता चांदपोल हनुमान मंदिर के बाहर प्रसाद बांट रहे थे. इस दौरान बम धमाका हुआ, जिसमें उनकी मौत हो गई थी. ये घटना 16 साल पहले की है. जैसे-तैसे जिंदगी पटरी पर आई है, लेकिन इंतजार इसी बात का है कि उन गुनहगारों को कब सजा मिलेगी. हाईकोर्ट से वो बरी हुए तो उन्होंने खुद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल लगाई है. न जानें ये मामला और कितने साल खिंचता है.
फांसी से भी बढ़कर सजा मिले : जयपुर व्यापार महासंघ के अध्यक्ष और बम धमाकों के समय चांदपोल बाजार के महामंत्री रहे सुभाष गोयल ने बताया कि उनके खास मित्र की दो भांजी हनुमान मंदिर में दर्शन करने के लिए आई थी. इस दौरान वो भी बम धमाके का शिकार हो गईं थी. वो खुद उस दौरान चांदपोल बाजार में ही मौजूद थे. चारों तरफ अंधेरा पसरा हुआ था. एक तरफ छोटी चौपड़ में बम धमाका हुआ था तो दूसरी तरफ चांदपोल में बम धमाका हुआ था. उस समय बम धमाकों से इतनी दहशत हो गई थी कि दिल दहल उठा था, लेकिन अब निवेदन यही है कि ऐसे लोगों को सजा के तौर पर फांसी से भी बढ़कर सजा मिलनी चाहिए.
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अभी तक जिंदा हैं पिता के गुनहगार : इस बम धमाके में खुद आहत हुए गोविंद ने बताया कि उनके पिताजी और वो खुद चांदपोल हनुमान मंदिर के बाहर फूलों की थड़ी लगाते थे. धमाके वाले दिन उनके पिताजी सामने ही एक स्कूटर पर बैठे थे और वो खुद थड़ी पर मौजूद थे. अचानक बम धमाका हुआ, जिसमें उनके पैरों में छर्रे लगे. इस धमाके में उनके पिता का तो शरीर ही छिन्न-भिन्न हो गया था. बम धमाके के बाद सरकार ने 5 लाख रुपए की सहायता राशि दी और परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी दी. पीड़ा इस बात की है कि उनके पिता और जयपुर के गुनहगार अभी तक जिंदा हैं.
हालांकि, इस मामले में पहले सिर्फ पीड़ितों ने आवाज उठाई थी, लेकिन अब राज्य सरकार ने भी सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लगाई है, जिसे स्वीकार भी कर लिया गया है. सुप्रीम कोर्ट अब हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई करेगा. देखना होगा कि न्याय की जिस गुहार को लेकर सर्वोच्च अदालत में आतंकवाद के पीड़ित और सरकार पहुंची है, वहां से न्याय कब और किस रूप में मिलता है.