जयपुर. राजधानी जयपुर के परकोटा क्षेत्र में 7 पीढ़ियों की परंपरा का एक बार फिर निर्वहन किया गया. राजा-महाराजाओं के समय से चली आ रही विरासत यहां तमाशा के रूप में साकार हुई. कलाकारों ने अपने ही लहजे में एक बार फिर राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्य किया और रांझा-हीर की कहानी को शास्त्रीय संगीत के तड़के के साथ पेश किया. हालांकि, पहले जयपुर में 52 स्थान पर 52 तमाशा होते थे, अब केवल एक दो जगह सिमट कर रह गए हैं. ऐसे में कलाकारों ने सरकार इस तमाशा शैली को संरक्षण प्रदान करने की भी मांग की.
इन मुद्दों पर किया तंज : बिना किसी सजावट और तामझाम के हारमोनियम और तबले की धुन पर पारंपरिक लोकनाट्य तमाशा का मंचन हुआ, जिसे देखने सुनने के लिए शहर भर से लोग जयपुर के ब्रह्मपुरी स्थित छोटे अखाड़े पहुंचे. यहां रांझा हीर की कहानी को बारहमासी के साथ पेश किया गया. वहीं, राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर जमकर कटाक्ष किया गया. रांझा का किरदार निभाने वाले कलाकार ने अपने व्यंगात्मक अंदाज में आगामी लोकसभा चुनाव से लेकर राजनीतिक मुद्दों और मोबाइल फोन में लगे हुए युवाओं पर जमकर तंज कसा.
'छोटे-मोटे भाई दोनों खूब खेलते खेल,
धमकाते छापे पड़वाते और भिजवाते जेल।
नहीं डराती कांग्रेस को मोदी जी की आंधी,
उनके लिए तो काफी है बस उनका राहुल गांधी।....'
इस दौरान सामाजिक सौहार्द की बयार भी बही. वहीं, रांझा-हीर तमाशा के निदेशक वासुदेव भट्ट ने दर्शकों को महान बताते हुए कहा कि ऐसा दर्शक कहीं नहीं देखा जो बड़े चाव से इस तमाशा को देखते हैं. साथ ही भरपूर सहयोग भी प्रदान करते हैं. उन्होंने कहा कि वो चाहते हैं कि तमाशा जयपुर की विरासत है, इसलिए इसे पर्यटन से जोड़ना चाहिए.
रांझा बने तपन भट्ट ने कहा कि पहले तो राजा-महाराजाओं की ओर से इस तमाशा को सहायता मिल जाया करती थी, लेकिन अब तो ये बुजुर्गों का हुक्का बनकर रह गया, जिसे वो गुड़गुड़ा रहे हैं. समाज के सहयोग से हर साल ये तमाशा साकार होता है. भट्ट परिवार की परंपरा और जील है, इसलिए सभी लोग मिलकर इसे करते हैं. यदि सरकार इस पर ध्यान देती है तो ये परंपरा बेहतरीन तरीके से और आगे जाएगी.