पटनाः फिलिपींस की तरह ही पटना के बीएन कॉलेज में भी छात्रों के लिए एक पर्यावरण अनुकूल पहल लागू की गई है. यहां के छात्र अपनी डिग्री प्राप्त करने के बाद कॉलेज से विदा लेते समय एक पौधा लगाते हैं. यह कदम न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है, बल्कि छात्रों में भी प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव विकसित करता है. बीएन कॉलेज का यह प्रयास छात्रों और पर्यावरण दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध हो रहा है.
कब से चल रही परंपराः पटना के अशोक राजपथ स्थित बीएन कॉलेज में डिग्री के बदले पौधा लगाने का सिलसिला 10 वर्षों से चल रहा है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बॉटनी के प्रोफेसर धीरज कुमार ने बताया बॉटनी के जितने भी छात्र पास आउट होते हैं तो अपनी याद के लिए इस परिसर में एक पौधा लगाते हैं. यह पौधा छात्रों के द्वारा खुद लगाया जाता है. यह पौधा इसलिए लगाया जाता है कि जब आप इस कॉलेज से पास आउट हो रहे हैं तो कॉलेज से यादें जुड़ीं रहे.
"आप एक पौधा को लगा कर जा रहे हैं. जब कभी आप इस कॉलेज में आएंगो तो अपने लगाए हुए पौधे को देखेंगे कि पौधा कितना बड़ा हो गया. पौधा जीवन के लिए बेहतर होता है इससे भी लोगों को सीख मिलती है."- प्रोफेसर धीरज कुमार, बीएन कॉलेज
कॉलेज में है हरियालीः छात्रों के द्वारा लगाए गए पौधे से कॉलेज कैंपस में दो गार्डन तैयार हो गया है .जिसमें औषधीय पौधे भी हैं. प्रोफेसर धीरज ने बताया कि 2014 से यह सिलसिला शुरू हुआ. हर साल बॉटनी से करीब 20 से 25 छात्र पास आउट होते हैं. उन्होंने बताया कि छात्रों के द्वारा लगाए गए पौधे से कॉलेज हरा भरा नजर आता है. आगे कहा कि आने वाले समय में नवग्रह वाटिका का निर्माण बॉटनी विभाग की तरफ से तैयार कराने की तैयारी है.
पौधे को आस्था से जोड़ाः प्रोफेसर स्वाति सिन्हा ने कहा कि पौधा लगाने की यह परंपरा तो चली आ रही है लेकिन इसके साथ धर्म आस्था भी जोड़ दिया गया. जिससे कि लोग अपने धर्म आस्था को लेकर के पेड़ पौधे जरूर लगाए और देख रेख करे. पेड़ पौधों के बारे में साइंटिफिक रीजन बताएंगे तो बहुत लोग नहीं समझेंगे इसलिए धर्म आस्था से इसको जोड़ दिया गया है. जैसे तुलसी का पौध अपने घरों में लगाते हैं पूजा करते हैं देखरेख भी करते हैं ठीक उसी प्रकार यहां पर लगे पौधों की देख रेख किया जाता है.
"जो छात्र हैं उनके द्वारा प्रतिदिन पानी दिया जाता है. माली इन पेड़ पौधों की देखरेख करते हैं. पेड़-पौधा लगाना, बदलते जलवायु परिवर्तन के लिए अच्छा काम है. यह परंपरा हमारे कॉलेज में दशकों से चला आ रहा है."- प्रोफेसर स्वाति सिन्हा, बीएन कॉलेज
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