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गलता पीठ प्रकरण में यथास्थिति के आदेश, स्टे एप्लिकेशन पर फैसला सुरक्षित - Status quo order in Galta Peeth

गलता पीठ की संपत्तियों और महंत की नियुक्ति के संबंध में राजस्थान हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने इस मामले में एकलपीठ के खिलाफ पेश याचिका में दायर स्टे एप्लिकेशन पर फैसला सुरक्षित रखा है.

Rajasthan High Court
राजस्थान हाईकोर्ट (ETV Bharat Jaipur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 26, 2024, 10:30 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने गलता पीठ की संपत्तियों और महंत की नियुक्ति के संबंध में दोनों पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं. इसके साथ ही अदालत ने मामले में एकलपीठ के आदेश के खिलाफ पेश याचिका में दायर स्टे प्रार्थना पत्र पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश अवधेशाचार्य की ओर से दायर अपील में पेश स्टे प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हुए दिए. सुनवाई के दौरान सहायक देवस्थान आयुक्त महेन्द्र देवतवाल अदालत में पेश हुए. अदालत ने उन्हें यथास्थिति के आदेश के बारे में जानकारी दी. इस पर सहायक आयुक्त ने कहा कि वे यथास्थिति बनाए रखने के संबंध में सभी संबधित अधिकारियों को अवगत करा देंगे.

अपीलार्थी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आरएन माथुर और अधिवक्ता सुरुचि कासलीवाल ने अदालत को बताया कि एकलपीठ ने गत 22 जुलाई को आदेश जारी कर गलता पीठ के महंत पद से अपीलार्थी की नियुक्ति रद्द कर दी थी. जबकि एकलपीठ ने कई तथ्यों की अनदेखी की है. वर्ष 1943 में रामोदराचार्य की महंत पद पर नियुक्ति हुई थी. इसके बाद वर्ष 1963 में पंजीकृत हुए ट्रस्ट में स्पष्ट प्रावधान किया गया था कि महंत का पद तत्कालीन महंत के पुत्र को ही दिया जाएगा. जबकि एकलपीठ ने माना कि रामोदराचार्य की मृत्यु के बाद उनका महंत पद समाप्त हो गया.

पढ़ें: हाईकोर्ट ने गलता पीठ के महंत अवधेशाचार्य की नियुक्ति को किया रद्द, दिए ये निर्देश - Rajasthan High Court

इसके अलावा 1 मई, 1943 को जयपुर स्टेट के हाईकोर्ट ने इन संपत्तियों को मूर्ति के स्वामित्व की नहीं मानकर महंत की मानी थी. वहीं उनकी ओर से ट्रस्ट संचालन में किसी तरह की अव्यवस्था नहीं की थी. ऐसे में एकलपीठ के आदेश पर रोक लगाकर रद्द किया जाए. जिसका विरोध करते हुए हिंदू विकास समिति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आरबी माथुर ने कहा कि जयपुर स्टेट के तत्कालीन हाईकोर्ट ने इन संपत्तियों को गलता पीठ की मानी थी.

पढ़ें: गलता तीर्थ में गंदगी और अव्यवस्थाओं को लेकर मांगा जवाब

अपीलार्थी के पिता को मेरिट के आधार पर तत्कालीन जयपुर स्टेट ने नियुक्त किया था और अपीलार्थी की महंत के रूप में नियुक्ति कभी हुई ही नहीं. अपीलार्थी ने उत्तराधिकार के आधार पर स्वयं को महंत घोषित कर दिया. इसके अलावा अपीलार्थी ने गलता पीठ की कई संपत्तियों को खुर्दबुर्द भी किया है. ऐसे में एकलपीठ का आदेश सही है. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद खंडपीठ ने स्टे प्रार्थना पत्र पर फैसला सुरक्षित रखते हुए तब तक यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने गलता पीठ की संपत्तियों और महंत की नियुक्ति के संबंध में दोनों पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं. इसके साथ ही अदालत ने मामले में एकलपीठ के आदेश के खिलाफ पेश याचिका में दायर स्टे प्रार्थना पत्र पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश अवधेशाचार्य की ओर से दायर अपील में पेश स्टे प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हुए दिए. सुनवाई के दौरान सहायक देवस्थान आयुक्त महेन्द्र देवतवाल अदालत में पेश हुए. अदालत ने उन्हें यथास्थिति के आदेश के बारे में जानकारी दी. इस पर सहायक आयुक्त ने कहा कि वे यथास्थिति बनाए रखने के संबंध में सभी संबधित अधिकारियों को अवगत करा देंगे.

अपीलार्थी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आरएन माथुर और अधिवक्ता सुरुचि कासलीवाल ने अदालत को बताया कि एकलपीठ ने गत 22 जुलाई को आदेश जारी कर गलता पीठ के महंत पद से अपीलार्थी की नियुक्ति रद्द कर दी थी. जबकि एकलपीठ ने कई तथ्यों की अनदेखी की है. वर्ष 1943 में रामोदराचार्य की महंत पद पर नियुक्ति हुई थी. इसके बाद वर्ष 1963 में पंजीकृत हुए ट्रस्ट में स्पष्ट प्रावधान किया गया था कि महंत का पद तत्कालीन महंत के पुत्र को ही दिया जाएगा. जबकि एकलपीठ ने माना कि रामोदराचार्य की मृत्यु के बाद उनका महंत पद समाप्त हो गया.

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इसके अलावा 1 मई, 1943 को जयपुर स्टेट के हाईकोर्ट ने इन संपत्तियों को मूर्ति के स्वामित्व की नहीं मानकर महंत की मानी थी. वहीं उनकी ओर से ट्रस्ट संचालन में किसी तरह की अव्यवस्था नहीं की थी. ऐसे में एकलपीठ के आदेश पर रोक लगाकर रद्द किया जाए. जिसका विरोध करते हुए हिंदू विकास समिति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आरबी माथुर ने कहा कि जयपुर स्टेट के तत्कालीन हाईकोर्ट ने इन संपत्तियों को गलता पीठ की मानी थी.

पढ़ें: गलता तीर्थ में गंदगी और अव्यवस्थाओं को लेकर मांगा जवाब

अपीलार्थी के पिता को मेरिट के आधार पर तत्कालीन जयपुर स्टेट ने नियुक्त किया था और अपीलार्थी की महंत के रूप में नियुक्ति कभी हुई ही नहीं. अपीलार्थी ने उत्तराधिकार के आधार पर स्वयं को महंत घोषित कर दिया. इसके अलावा अपीलार्थी ने गलता पीठ की कई संपत्तियों को खुर्दबुर्द भी किया है. ऐसे में एकलपीठ का आदेश सही है. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद खंडपीठ ने स्टे प्रार्थना पत्र पर फैसला सुरक्षित रखते हुए तब तक यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं.

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