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चेचक की देवी है शीतला माता, चाकसू में आमेर राजवंश ने बनाया था मंदिर, लगाते हैं बास्योड़ा पर पहला भोग - Sheetala Saptami 2024

चाकसू क्षेत्र में सोमवार को बास्योड़ा का पर्व मनाया जाएगा. रविवार को श्रद्धा और उमंग के साथ भक्त दर्शन के लिए शील की डूंगरी पहुंच रहे हैं. मंदिर ट्रस्ट की ओर से हर बार की तरह इस बार भी लक्खी मेले का आयोजन किया जा रहा है.

SHEETALA SAPTAMI 2024
चेचक की देवी शीतला माता
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Mar 31, 2024, 1:49 PM IST

चेचक की देवी शीतला माता

चाकसू (जयपुर). भारत विविधताओं से परिपूर्ण देश है. यहां पर्व त्योहार एकता और समरसता का प्रतीक है. शीतलाष्टमी एक ऐसा ही त्योहार है. सहनशीलता और सहिष्णुता की देवी शीतला माता को प्रत्येक वर्ष चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पूजा जाता है. शीतलाष्टमी को बासौड़ा अष्टमी भी कहते हैं. चाकसू में शीतलाष्टमी पर आयोजित वार्षिक लक्खी मेले को लेकर व्यवस्थाएं पूरी तरह चाक चौबंद है. यहां अटूट आस्था की देवी मां शीतला के भोग के लिए घर-घर में विभिन्न तरह के पकवान बनाए जाते है और रांधा पुआ मनाया जाता है.

बता दें कि राजधानी जयपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर व चाकसू कस्बे से महज 3 किलोमीटर दूरी पर शील की डूंगरी (पहाड़ी) पर स्थित है शीतला माता का मंदिर, जो अति शोभित व रमणीय स्थल है. वैसे तो यहां सालभर भक्त दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन चैत्र माह की शीतलाष्टमी यानी बास्योड़ा के मौके पर यहां दो दिवसीय लक्खी मेला हर साल भरता है. इस बार 31 मार्च से 1 अप्रैल तक लक्खी मेला पूरे परवान पर रहेगा.

शीतला माता मंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष हनुमान प्रजापति के अनुसार ट्रस्ट की ओर से मेले में आने वाले दर्शनार्थियों को किसी प्रकार की असुविधा न हो, इसके लिए मंदिर तक सुगम आवागमन और सुरक्षा व्यवस्था के विशेष इंतजाम है. साथ ही पानी-शौचालय, पार्किंग इत्यादि आवश्यक व्यवस्थाओं के साथ रांधा पुआ मनाया जा रहा है. 31 मार्च की शाम से ही रात्रि को जागरण के साथ मेले का शुभारंभ होगा, जो 1 अप्रैल तक चलेगा. उधर, पुलिस के जिला प्रशासन एवं चाकसू एसीपी सुरेंद्र सिंह, थानाप्रभारी कैलाश दान समेत पुलिस अधिकारियों ने मेला स्थल पर कैंप लगाया है. यहां सुरक्षा व्यवस्था के तौर पर 350 जवान तैनात किए गए हैं. साथ ही 80 क्लोजर सीक्रेट कैमरों से मेला क्षेत्र में हर गतिविधि पर पैनी नजर रखी जा रही है. मंदिर पर परिसर में कंट्रोल यूनिट स्थापित किया गया है. शनिवार को विधायक रामावतार बैरवा ने भी कार्यकर्ताओ के साथ मंदिर में पहुंचकर शीतला माता के दर्शन किए और व्यवस्थाओं की जांच की. इस दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश शर्मा सहित अन्य उनके साथ मौजूद रहें.

इसे भी पढ़ें : ढोल नगाड़ों वाली शव यात्रा : सप्तमी पर यहां निकलती है जिंदा आदमी की अर्थी - Special Report

राजपरिवार की ओर से लगाया जाता है पहला भोग : मंदिर का इतिहास लगभग 500 सालों पुराना है. महाराजा सवाई माधोसिंह ने इस मंदिर को बनाया था. यह मंदिर क्षेत्र के लोगों के लिए विशेष आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां पहला भोग राजघराने की ओर से भेजे गए प्रसाद से ही लगाया जाता है. मान्यता है कि बच्चों में होने वाले चेचक रोग, फोड़े-फुंसी और गर्मी की बीमारियों से माता छुटकारा दिलाती हैं. यहां माता का सफड़ावा लेने व दर्शन करने से रोग दूर हो जाते हैं. शीतला माता एक पौराणिक देवी मानी जाती हैं. इन्हें बच्चों की संरक्षिका देवी भी कहते हैं. इस मेले में आस-पास ही नहीं बल्कि राज्य के हर हिस्से से लोग माता के दर्शन के लिए यहां आते हैं. विभिन्न रंग-बिरंगे परिधान पहने ग्रामीण परिवेश के साथ श्रद्धालु नाच- गाकर यहां पहुंचते है और रात्रि जागरण करके माता को रिझाते हैं. खास बात यह है कि कई समाजों के लोग इस मेले में उनके लड़के-लड़कियों के विवाह के रिश्ते भी तय करते हैं.

500 साल पुराना है इतिहास : चाकसू शील डूंगरी पर स्थित शीतला माता के इस मंदिर से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं. बताया जाता है कि यह मंदिर 500 साल पुराना है. यहां बारहदरी पर लगे शिलालेख में अंकित है कि जयपुर नरेश माधोसिंह के पुत्र गंगासिंह और गोपाल सिंह को चेचक बीमारी हुई थी, जो कि शीतला माता की कृपा से ठीक हुई. इसके बाद राजा माधोसिंह ने शील की डूंगरी पर मंदिर और बारहदरी का निर्माण कराया. यहां बनी बारहदरी भवन पर लगे शिलालेख में माता के गुणगान का उल्लेख मिलता है. पहाड़ी पर माता का मंदिर है, जिसमें मां शीतलामाता की मूर्ति विराजमान है. राजशाही के जमाने से यहां होली से ठीक 8 दिन बाद शीतलाष्टमी का यह दो दिवसीय वार्षिक लक्खी मेला भरता है.

चेचक की देवी शीतला माता

चाकसू (जयपुर). भारत विविधताओं से परिपूर्ण देश है. यहां पर्व त्योहार एकता और समरसता का प्रतीक है. शीतलाष्टमी एक ऐसा ही त्योहार है. सहनशीलता और सहिष्णुता की देवी शीतला माता को प्रत्येक वर्ष चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पूजा जाता है. शीतलाष्टमी को बासौड़ा अष्टमी भी कहते हैं. चाकसू में शीतलाष्टमी पर आयोजित वार्षिक लक्खी मेले को लेकर व्यवस्थाएं पूरी तरह चाक चौबंद है. यहां अटूट आस्था की देवी मां शीतला के भोग के लिए घर-घर में विभिन्न तरह के पकवान बनाए जाते है और रांधा पुआ मनाया जाता है.

बता दें कि राजधानी जयपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर व चाकसू कस्बे से महज 3 किलोमीटर दूरी पर शील की डूंगरी (पहाड़ी) पर स्थित है शीतला माता का मंदिर, जो अति शोभित व रमणीय स्थल है. वैसे तो यहां सालभर भक्त दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन चैत्र माह की शीतलाष्टमी यानी बास्योड़ा के मौके पर यहां दो दिवसीय लक्खी मेला हर साल भरता है. इस बार 31 मार्च से 1 अप्रैल तक लक्खी मेला पूरे परवान पर रहेगा.

शीतला माता मंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष हनुमान प्रजापति के अनुसार ट्रस्ट की ओर से मेले में आने वाले दर्शनार्थियों को किसी प्रकार की असुविधा न हो, इसके लिए मंदिर तक सुगम आवागमन और सुरक्षा व्यवस्था के विशेष इंतजाम है. साथ ही पानी-शौचालय, पार्किंग इत्यादि आवश्यक व्यवस्थाओं के साथ रांधा पुआ मनाया जा रहा है. 31 मार्च की शाम से ही रात्रि को जागरण के साथ मेले का शुभारंभ होगा, जो 1 अप्रैल तक चलेगा. उधर, पुलिस के जिला प्रशासन एवं चाकसू एसीपी सुरेंद्र सिंह, थानाप्रभारी कैलाश दान समेत पुलिस अधिकारियों ने मेला स्थल पर कैंप लगाया है. यहां सुरक्षा व्यवस्था के तौर पर 350 जवान तैनात किए गए हैं. साथ ही 80 क्लोजर सीक्रेट कैमरों से मेला क्षेत्र में हर गतिविधि पर पैनी नजर रखी जा रही है. मंदिर पर परिसर में कंट्रोल यूनिट स्थापित किया गया है. शनिवार को विधायक रामावतार बैरवा ने भी कार्यकर्ताओ के साथ मंदिर में पहुंचकर शीतला माता के दर्शन किए और व्यवस्थाओं की जांच की. इस दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश शर्मा सहित अन्य उनके साथ मौजूद रहें.

इसे भी पढ़ें : ढोल नगाड़ों वाली शव यात्रा : सप्तमी पर यहां निकलती है जिंदा आदमी की अर्थी - Special Report

राजपरिवार की ओर से लगाया जाता है पहला भोग : मंदिर का इतिहास लगभग 500 सालों पुराना है. महाराजा सवाई माधोसिंह ने इस मंदिर को बनाया था. यह मंदिर क्षेत्र के लोगों के लिए विशेष आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां पहला भोग राजघराने की ओर से भेजे गए प्रसाद से ही लगाया जाता है. मान्यता है कि बच्चों में होने वाले चेचक रोग, फोड़े-फुंसी और गर्मी की बीमारियों से माता छुटकारा दिलाती हैं. यहां माता का सफड़ावा लेने व दर्शन करने से रोग दूर हो जाते हैं. शीतला माता एक पौराणिक देवी मानी जाती हैं. इन्हें बच्चों की संरक्षिका देवी भी कहते हैं. इस मेले में आस-पास ही नहीं बल्कि राज्य के हर हिस्से से लोग माता के दर्शन के लिए यहां आते हैं. विभिन्न रंग-बिरंगे परिधान पहने ग्रामीण परिवेश के साथ श्रद्धालु नाच- गाकर यहां पहुंचते है और रात्रि जागरण करके माता को रिझाते हैं. खास बात यह है कि कई समाजों के लोग इस मेले में उनके लड़के-लड़कियों के विवाह के रिश्ते भी तय करते हैं.

500 साल पुराना है इतिहास : चाकसू शील डूंगरी पर स्थित शीतला माता के इस मंदिर से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं. बताया जाता है कि यह मंदिर 500 साल पुराना है. यहां बारहदरी पर लगे शिलालेख में अंकित है कि जयपुर नरेश माधोसिंह के पुत्र गंगासिंह और गोपाल सिंह को चेचक बीमारी हुई थी, जो कि शीतला माता की कृपा से ठीक हुई. इसके बाद राजा माधोसिंह ने शील की डूंगरी पर मंदिर और बारहदरी का निर्माण कराया. यहां बनी बारहदरी भवन पर लगे शिलालेख में माता के गुणगान का उल्लेख मिलता है. पहाड़ी पर माता का मंदिर है, जिसमें मां शीतलामाता की मूर्ति विराजमान है. राजशाही के जमाने से यहां होली से ठीक 8 दिन बाद शीतलाष्टमी का यह दो दिवसीय वार्षिक लक्खी मेला भरता है.

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