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एम्बुलेंस के लिए क्या हैं देश में नियम? कौन बनाता है इसके लिए रूल्स? जानें - AMBULANCE RULES

इमरजेंसी मेडिकल केयर में एम्बुलेंस महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. ऐसे में एम्बुलेंस को लेकर कुछ नियम भी बनाए गए हैं.

भारत में एम्बुलेंस को लिए क्या हैं नियम?
भारत में एम्बुलेंस को लिए क्या हैं नियम? (फाइल फोटो)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 14, 2024, 1:39 PM IST

मुंबई: महाराष्ट्र के जलगांव जिले में बुधवार शाम को एक एम्बुलेंस में आग गई. इस घटना में एक गर्भवती महिला और उसका परिवार बाल-बाल बच गया. गनीमत रही कि इस घटना में कोई जनहानि नहीं हुई. आग लगने के कारणों का पता नहीं चल सका है.

यह घटना उस समय हुई जब एम्बुलेंस से गर्भवती महिला और उसका परिवार एरंडोल सरकारी अस्पताल से जलगांव के जिला अस्पताल जा रहा था. तभी एम्बुलेंस में अचानक आग लग गई. इस घटना के बाद यह सवाल उठ रहा है कि आखिर देश में एम्बुलेंस को लेकर क्या नियम हैं और इन नियमों को कौन तैयार करता है.

बता दें कि इमरजेंसी मेडिकल केयर और परिवहन प्रदान करने में एम्बुलेंस महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. भारत में एम्बुलेंस सेवाओं को नियंत्रित करने के लिए कई रूल्स एंड रेगूलेशन मौजूद हैं. हालांकि, इनके बारे में कम ही लोगों को जानकारी है. ऐसे में अगर आप भी इन नियमों के बारे में नहीं जानते हैं, तो चलिए आज हम आपको इनके बारे में बताते हैं.

एम्बुलेंस के लिए रूल एंड रेगूलेशन
मेड कैब के मुताबिक सड़क परिवहन मंत्रालय भारत में एम्बुलेंस डिजाइन और संचालन के लिए एक सामान्य कोड प्रदान करता है, जिसमें विजिबलिटी और स्पष्टता से संबंधित दिशा-निर्देश शामिल हैं.

एम्बुलेंस का कलर
नियम के अनुसार एम्बुलेंस के बाहरी हिस्से का रंग चमकीला सफेद होना चाहिए. साथ ही इसकी नियमित सफाई होनी चाहिए और यह कठोर मौसम को झेलने में सक्षम होना चाहिए.इस नियम के तहत वाहन के सामने के हिस्से का कम से कम 50 फीसदी हिस्सा सल्फर पीला होना चाहिए, जबकि कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सा चमकीला लाल होना चाहिए.

इतना ही नहीं वाहन पर 'एम्बुलेंस' शब्द को पीले रंग के बैकग्राउंड पर लिखा जाना चाहिए, जो हुड की चौड़ाई का कम से कम 65 फीसदी हिस्सा कवर करता हो. साथ ही, इसे मिरर इमेज (रिवर्स रीडिंग) में भी डिस्पले किया जाना चाहिए ताकि एम्बुलेंस के आगे चलने वाले ड्राइवर इसे आसानी से पहचान सकें.

एम्बुलेंस का प्रतीक
एम्बुलेंस में कोई भी अतिरिक्त चिह्न, प्रतीक या चिह्न नॉन- रिफ्लेक्टिड होना चाहिए. इन प्रतीकों का साइज एम्बुलेंस चिह्नों के 60 प्रतिशत हिस्से से अधिक नहीं होना चाहिए. साथ ही एम्बुलेंस कॉलिंग नंबर को एम्बुलेंस के किनारे और पीछे डिस्पले किया जाना चाहिए.

वार्निंग लाइट्स और सायरन
टाइप ए और बी रोड एम्बुलेंस को वाहन के प्रकार के अनुसार उपयुक्त फ्लैशर से सुसज्जित किया जाना चाहिए. हर एम्बुलेंस में लाउडस्पीकर के साथ सायरन होना चाहिए. इन सायरन के लिए फ्रेक्विंसी सीमा 500 हर्ट्ज से 2,000 हर्ट्ज होती है.

इसके अलावा, ड्राइवर की सीट से हर समय एक सार्वजनिक संबोधन प्रणाली भी संचालित होनी चाहिए. सायरन स्विच का उपयोग केवल तभी किया जा सकता है जब वार्निंग लाइट्स चालू हो.

कर्मियों की पहचान
एम्बुलेंस कर्मियों के लिए सुरक्षा वस्त्र कम से कम ISO मानकों के अनुरूप होने चाहिए. ऐसा इसलिए है क्योंकि ये वस्त्र गर्मी और लपटों से सुरक्षा प्रदान करते हैं.

सरकारी निकायों और एजेंसियों की भूमिका
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW), राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA), राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) और राज्य-स्तरीय स्वास्थ्य विभागों जैसे सरकारी निकायों और एजेंसियों की एम्बुलेंस रेगूलेशन को तैयार करने और उन्हें लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

इन सरकारी निकायों के बीच सहयोग यह सुनिश्चित करता है कि एम्बुलेंस सेवाएं निर्धारित मानकों का पालन करें. ये बॉडीज साथ मिलकर दिशा-निर्देश विकसित करने और उन्हें अपडेट करने, उभरती चुनौतियों का समाधान करने, संसाधनों का आवंटन करने और सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार हैं.

यह भी पढे़ं- महाराष्ट्र: जलगांव में एम्बुलेंस में लगी आग, बाल-बाल बची गर्भवती महिला

मुंबई: महाराष्ट्र के जलगांव जिले में बुधवार शाम को एक एम्बुलेंस में आग गई. इस घटना में एक गर्भवती महिला और उसका परिवार बाल-बाल बच गया. गनीमत रही कि इस घटना में कोई जनहानि नहीं हुई. आग लगने के कारणों का पता नहीं चल सका है.

यह घटना उस समय हुई जब एम्बुलेंस से गर्भवती महिला और उसका परिवार एरंडोल सरकारी अस्पताल से जलगांव के जिला अस्पताल जा रहा था. तभी एम्बुलेंस में अचानक आग लग गई. इस घटना के बाद यह सवाल उठ रहा है कि आखिर देश में एम्बुलेंस को लेकर क्या नियम हैं और इन नियमों को कौन तैयार करता है.

बता दें कि इमरजेंसी मेडिकल केयर और परिवहन प्रदान करने में एम्बुलेंस महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. भारत में एम्बुलेंस सेवाओं को नियंत्रित करने के लिए कई रूल्स एंड रेगूलेशन मौजूद हैं. हालांकि, इनके बारे में कम ही लोगों को जानकारी है. ऐसे में अगर आप भी इन नियमों के बारे में नहीं जानते हैं, तो चलिए आज हम आपको इनके बारे में बताते हैं.

एम्बुलेंस के लिए रूल एंड रेगूलेशन
मेड कैब के मुताबिक सड़क परिवहन मंत्रालय भारत में एम्बुलेंस डिजाइन और संचालन के लिए एक सामान्य कोड प्रदान करता है, जिसमें विजिबलिटी और स्पष्टता से संबंधित दिशा-निर्देश शामिल हैं.

एम्बुलेंस का कलर
नियम के अनुसार एम्बुलेंस के बाहरी हिस्से का रंग चमकीला सफेद होना चाहिए. साथ ही इसकी नियमित सफाई होनी चाहिए और यह कठोर मौसम को झेलने में सक्षम होना चाहिए.इस नियम के तहत वाहन के सामने के हिस्से का कम से कम 50 फीसदी हिस्सा सल्फर पीला होना चाहिए, जबकि कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सा चमकीला लाल होना चाहिए.

इतना ही नहीं वाहन पर 'एम्बुलेंस' शब्द को पीले रंग के बैकग्राउंड पर लिखा जाना चाहिए, जो हुड की चौड़ाई का कम से कम 65 फीसदी हिस्सा कवर करता हो. साथ ही, इसे मिरर इमेज (रिवर्स रीडिंग) में भी डिस्पले किया जाना चाहिए ताकि एम्बुलेंस के आगे चलने वाले ड्राइवर इसे आसानी से पहचान सकें.

एम्बुलेंस का प्रतीक
एम्बुलेंस में कोई भी अतिरिक्त चिह्न, प्रतीक या चिह्न नॉन- रिफ्लेक्टिड होना चाहिए. इन प्रतीकों का साइज एम्बुलेंस चिह्नों के 60 प्रतिशत हिस्से से अधिक नहीं होना चाहिए. साथ ही एम्बुलेंस कॉलिंग नंबर को एम्बुलेंस के किनारे और पीछे डिस्पले किया जाना चाहिए.

वार्निंग लाइट्स और सायरन
टाइप ए और बी रोड एम्बुलेंस को वाहन के प्रकार के अनुसार उपयुक्त फ्लैशर से सुसज्जित किया जाना चाहिए. हर एम्बुलेंस में लाउडस्पीकर के साथ सायरन होना चाहिए. इन सायरन के लिए फ्रेक्विंसी सीमा 500 हर्ट्ज से 2,000 हर्ट्ज होती है.

इसके अलावा, ड्राइवर की सीट से हर समय एक सार्वजनिक संबोधन प्रणाली भी संचालित होनी चाहिए. सायरन स्विच का उपयोग केवल तभी किया जा सकता है जब वार्निंग लाइट्स चालू हो.

कर्मियों की पहचान
एम्बुलेंस कर्मियों के लिए सुरक्षा वस्त्र कम से कम ISO मानकों के अनुरूप होने चाहिए. ऐसा इसलिए है क्योंकि ये वस्त्र गर्मी और लपटों से सुरक्षा प्रदान करते हैं.

सरकारी निकायों और एजेंसियों की भूमिका
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW), राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA), राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) और राज्य-स्तरीय स्वास्थ्य विभागों जैसे सरकारी निकायों और एजेंसियों की एम्बुलेंस रेगूलेशन को तैयार करने और उन्हें लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

इन सरकारी निकायों के बीच सहयोग यह सुनिश्चित करता है कि एम्बुलेंस सेवाएं निर्धारित मानकों का पालन करें. ये बॉडीज साथ मिलकर दिशा-निर्देश विकसित करने और उन्हें अपडेट करने, उभरती चुनौतियों का समाधान करने, संसाधनों का आवंटन करने और सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार हैं.

यह भी पढे़ं- महाराष्ट्र: जलगांव में एम्बुलेंस में लगी आग, बाल-बाल बची गर्भवती महिला

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