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लगभग 5000 पितरों का श्राद्ध करेंगे शांतनु, तीन दशकों से लावारिस लाशों का कर रहे अंतिम संस्कार - Social worker Shantanu Kumar

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 2 hours ago

Updated : 2 hours ago

Social worker Shantanu Kumar: कोलकाता के शांतनु का दूसरा घर अब हमीरपुर है. 1980 में कोलकाता से हमीरपुर आए शांतनु अब तक 4,975 लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं. अंतिम संस्कार के बाद शांतनु लाशों का हरिद्वार में अस्थि विसर्जन, पिंडदान और श्राद्ध भी करते हैं.

लगभग 5000 पितरों का श्राद्ध करेंगे शांतनु
लगभग 5000 पितरों का श्राद्ध करेंगे शांतनु (ETV BHARAT)

हमीरपुर: कहते हैं जिनका इस दुनिया में कोई नहीं होता है उनका भगान होता है. भगवान किसी न किसी रूप में किसी मसीहा को लोगों की मदद के लिए भेज देता है, लेकिन दुनिया छोड़ने के बाद जिनका कोई नहीं है उनके शांतनु हैं. शांतनु लावारिस लाशों के वारिस हैं. वो पिछले तीन दशकों से दुनिया छोड़ चुके लोगों अंतिम संस्कार से लेकर पिंडदान, श्राद्ध करते आ रहे हैं.

ये शांतनु का जुनून ही है कि वो तीन दशकों से अधिक समय से ये काम बिना किसी आर्थिक मदद के कर रहे हैं. उनके हाथ बिना किसी भेदभाव के सभी लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करते हैं. अब तक हजारों लोगों को सम्मानजनक तरीके से इस दुनिया से अंतिम विदाई दे चुके हैं. पैसों के अभाव में भी लावारिस लाशों के लिए शांतनु के कंधे कभी नहीं झुके और न थके. शांतनु को हिमाचल प्रदेश में जहां कहीं भी लावारिस शव मिलता है वो अपने कंधों पर उठाकर उसे शमशान पहुंचाते हैं और उसका अंतिम संस्कार करने के बाद उनकी अस्थियों को इकट्ठा करके हरिद्वार हर की पौड़ी में पिंडदान के साथ विसर्जन करते आ रहे हैं. शांतनु अब तक 4,975 दिवंगत लोगों की अस्थियां विसर्जित कर उन्हें गति प्रदान करवा चुके हैं. शांतनु अपनी जिम्मेदारी सिर्फ अस्थि विसर्जन और पिंडदान तक ही नहीं समझते. वो पितृपक्ष में हर साल दिवंगत आत्माओं का श्राद्ध भी करते हैं.

लावारिस लाशों का श्राद्ध करने वाले शांतनु (ETV BHARAT)

इन दिनों पितृ पक्ष चल रहा है लोग अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर रहे हैं. ऐसे में शांतनु लावारिस हालत में दुनिया छोड़ चुके लोगों का श्राद्ध करवाएंगे. शांतनु कुमार ने बताया कि, 'हर साल की तरह इस साल भी श्राद्ध पक्ष में हरिद्वार गंगा जी ब्रह्म कुंड में प्रतिपक्ष अमावस के दिन 2 अक्टूबर को सभी दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए श्राद्ध किया जाएगा.' शांतनु खुद आर्थिक तौर पर इतने मजबूत नहीं हैं इसके बाद भी वो कभी अपने फर्ज से पीछे नहीं हटे और न ही उनका हौसला टूटा. हमीरपुर बाजार में छोटी सी दुकान चलाकर शांतनु कुमार लावारिस शवों के लिए कंधा बने हुए हैं. शांतनु ने कहा कि, 'अब तक वो करीब 4975 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं.'

हरिद्वार में करेंगे लगभग 5 हजार पितरों का श्राद्ध
हरिद्वार में करेंगे लगभग 5 हजार पितरों का श्राद्ध (ETV BHARAT)

आपको बता दें कि शांतनु मूल रूप से बंगाल के रहने वाले हैं. शांतनु बताते हैं कि, 'सन 1990 से उन्होंने समाज सेवा शुरू की थी. वो 1980 में अपने पिता के साथ में हमीरपुर आए थे. उनके पिता यहां पर सरकारी नौकरी करते थे और तब उनका पूरा परिवार हमीरपुर में ही बस गया. यहां रहने के बाद उन्होंने समाज सेवा का मन बनाया और इसी में जुट गए. अब इस कार्य को वो निरंतर करते आ रहे हैं. पूरे हिमाचल में अपनी इस समाज सेवा से लावारिस शवों गति प्रदान करवाते हैं.'

अपनी दुकान पर शांतनु
अपनी दुकान पर शांतनु (ETV BHARAT)

ऐसे आया लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने का ख्याल

शांतनु ने बताया कि उनके अंदर समाज सेवा की भावना हमीरपुर में हुए एक हादसे के बाद शुरू हुई थी. दरअसल पुलिस जवान हमीरपुर में एक लावारिस शव को जला रहे थे और इसी दौरान वो भी वहां पहुंचे और उन्होंने पुलिस जवानों से बातचीत की. यही वो पल था जब उनके मन में लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने की इच्छा हुई. दरअसल उसी दौरान उन्हें पता चला कि पुलिस लावारिस शवों को जला तो देती है, लेकिन इनका हिंदू परंपरा के अनुसार अस्थि विसर्जन करने की कोई व्यवस्था नहीं है.

समाजसेवा के लिए नहीं की शादी

शांतनु कुमार ने समाज सेवा के लिए अविवाहित रहने का निर्णय लिया. जब उन्हें पता चलता है कि कहीं पर लावारिस शव पड़ा है तो वह अपने मकसद के लिए निकल पड़ते हैं और शव का अंतिम संस्कार करवाने के बाद हरिद्वार में अस्थियां विसर्जन करके वापस लौटते हैं. शांतनु से जब पूछा गया कि उन्होंने शादी क्यों नहीं कि तो उन्होंने जवाब दिया कि, 'परिवार और समाजसेवा एक साथ नहीं चल सकते. यही वजह है कि उन्होंन आजीवन शादी न करने का फैसला लिया ताकि वह समाज सेवा के इस कार्य को बिना रूके और बिना किसी समस्या के निभा सकें.'

लावारिस लाशों का संस्कार करते हैं शांतनु
लावारिस लाशों का संस्कार करते हैं शांतनु (ETV BHARAT)

हिमाचल सरकार ने प्रेरणा स्रोत सम्मान से नवाजा

समाज सेवा के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए कई सामाजिक संगठनों ने शांतनु कुमार को सम्मानित भी किया है. प्रदेश सरकार की तरफ से भी विभिन्न मंचों पर उनको सम्मान दिया गया है. हिमाचल सरकार ने उन्हें प्रेरणा स्त्रोत सम्मान से नवाजा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रेवरी अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है. शांतनु ने इनाम में मिली हजारों रुपये की राशि को भी अपने पास नहीं रखी और उसे भी चैरिटी में दान कर दिया. शांतनु कुमार का कहना है कि समाज सेवा करके अलग सी अनुभूति होती है और इस काम के लिए वह मदर टेरेसा को प्रेरणा स्त्रोत मानते हैं.

कई बार किया जा चुका है सम्मानित
कई बार किया जा चुका है सम्मानित (ETV BHARAT)

कोविड में भी किए कई लावारिस शवों के अंतिम संस्कार

कोविड काल का दौर एक ऐसा दौर रहा है जब लोग अपने लोगों का ही अंतिम संस्कार करने से कतरा रहे थे. यहां तक कई लोगों ने तो कोविड के भय के चलते अपनों का दाह संस्कार तक नहीं किया. वहीं, कुछ ऐसे भी थे जो मजबूरन यानी कोविड प्रोटोकॉल के तहत किसी अपने के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सके, लेकिन इस दौर में भी शांतनु कुमार ने अपना इरादा नहीं बदला. कोविड के चलते जिन लोगों की जान गई और उनके शव लावारिस पड़े रहे उनका दाह संस्कार भी शांतनु अपनी जान की परवाह किए बगैर करते रहे.

ये भी पढ़ें: विक्रमादित्य ने पिता वीरभद्र सिंह की प्रतिमा न लगाने पर पद छोड़ने का किया था ऐलान, अब रिज पर प्रतिमा स्थापित होने का रास्ता हुआ साफ

हमीरपुर: कहते हैं जिनका इस दुनिया में कोई नहीं होता है उनका भगान होता है. भगवान किसी न किसी रूप में किसी मसीहा को लोगों की मदद के लिए भेज देता है, लेकिन दुनिया छोड़ने के बाद जिनका कोई नहीं है उनके शांतनु हैं. शांतनु लावारिस लाशों के वारिस हैं. वो पिछले तीन दशकों से दुनिया छोड़ चुके लोगों अंतिम संस्कार से लेकर पिंडदान, श्राद्ध करते आ रहे हैं.

ये शांतनु का जुनून ही है कि वो तीन दशकों से अधिक समय से ये काम बिना किसी आर्थिक मदद के कर रहे हैं. उनके हाथ बिना किसी भेदभाव के सभी लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करते हैं. अब तक हजारों लोगों को सम्मानजनक तरीके से इस दुनिया से अंतिम विदाई दे चुके हैं. पैसों के अभाव में भी लावारिस लाशों के लिए शांतनु के कंधे कभी नहीं झुके और न थके. शांतनु को हिमाचल प्रदेश में जहां कहीं भी लावारिस शव मिलता है वो अपने कंधों पर उठाकर उसे शमशान पहुंचाते हैं और उसका अंतिम संस्कार करने के बाद उनकी अस्थियों को इकट्ठा करके हरिद्वार हर की पौड़ी में पिंडदान के साथ विसर्जन करते आ रहे हैं. शांतनु अब तक 4,975 दिवंगत लोगों की अस्थियां विसर्जित कर उन्हें गति प्रदान करवा चुके हैं. शांतनु अपनी जिम्मेदारी सिर्फ अस्थि विसर्जन और पिंडदान तक ही नहीं समझते. वो पितृपक्ष में हर साल दिवंगत आत्माओं का श्राद्ध भी करते हैं.

लावारिस लाशों का श्राद्ध करने वाले शांतनु (ETV BHARAT)

इन दिनों पितृ पक्ष चल रहा है लोग अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर रहे हैं. ऐसे में शांतनु लावारिस हालत में दुनिया छोड़ चुके लोगों का श्राद्ध करवाएंगे. शांतनु कुमार ने बताया कि, 'हर साल की तरह इस साल भी श्राद्ध पक्ष में हरिद्वार गंगा जी ब्रह्म कुंड में प्रतिपक्ष अमावस के दिन 2 अक्टूबर को सभी दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए श्राद्ध किया जाएगा.' शांतनु खुद आर्थिक तौर पर इतने मजबूत नहीं हैं इसके बाद भी वो कभी अपने फर्ज से पीछे नहीं हटे और न ही उनका हौसला टूटा. हमीरपुर बाजार में छोटी सी दुकान चलाकर शांतनु कुमार लावारिस शवों के लिए कंधा बने हुए हैं. शांतनु ने कहा कि, 'अब तक वो करीब 4975 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं.'

हरिद्वार में करेंगे लगभग 5 हजार पितरों का श्राद्ध
हरिद्वार में करेंगे लगभग 5 हजार पितरों का श्राद्ध (ETV BHARAT)

आपको बता दें कि शांतनु मूल रूप से बंगाल के रहने वाले हैं. शांतनु बताते हैं कि, 'सन 1990 से उन्होंने समाज सेवा शुरू की थी. वो 1980 में अपने पिता के साथ में हमीरपुर आए थे. उनके पिता यहां पर सरकारी नौकरी करते थे और तब उनका पूरा परिवार हमीरपुर में ही बस गया. यहां रहने के बाद उन्होंने समाज सेवा का मन बनाया और इसी में जुट गए. अब इस कार्य को वो निरंतर करते आ रहे हैं. पूरे हिमाचल में अपनी इस समाज सेवा से लावारिस शवों गति प्रदान करवाते हैं.'

अपनी दुकान पर शांतनु
अपनी दुकान पर शांतनु (ETV BHARAT)

ऐसे आया लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने का ख्याल

शांतनु ने बताया कि उनके अंदर समाज सेवा की भावना हमीरपुर में हुए एक हादसे के बाद शुरू हुई थी. दरअसल पुलिस जवान हमीरपुर में एक लावारिस शव को जला रहे थे और इसी दौरान वो भी वहां पहुंचे और उन्होंने पुलिस जवानों से बातचीत की. यही वो पल था जब उनके मन में लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने की इच्छा हुई. दरअसल उसी दौरान उन्हें पता चला कि पुलिस लावारिस शवों को जला तो देती है, लेकिन इनका हिंदू परंपरा के अनुसार अस्थि विसर्जन करने की कोई व्यवस्था नहीं है.

समाजसेवा के लिए नहीं की शादी

शांतनु कुमार ने समाज सेवा के लिए अविवाहित रहने का निर्णय लिया. जब उन्हें पता चलता है कि कहीं पर लावारिस शव पड़ा है तो वह अपने मकसद के लिए निकल पड़ते हैं और शव का अंतिम संस्कार करवाने के बाद हरिद्वार में अस्थियां विसर्जन करके वापस लौटते हैं. शांतनु से जब पूछा गया कि उन्होंने शादी क्यों नहीं कि तो उन्होंने जवाब दिया कि, 'परिवार और समाजसेवा एक साथ नहीं चल सकते. यही वजह है कि उन्होंन आजीवन शादी न करने का फैसला लिया ताकि वह समाज सेवा के इस कार्य को बिना रूके और बिना किसी समस्या के निभा सकें.'

लावारिस लाशों का संस्कार करते हैं शांतनु
लावारिस लाशों का संस्कार करते हैं शांतनु (ETV BHARAT)

हिमाचल सरकार ने प्रेरणा स्रोत सम्मान से नवाजा

समाज सेवा के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए कई सामाजिक संगठनों ने शांतनु कुमार को सम्मानित भी किया है. प्रदेश सरकार की तरफ से भी विभिन्न मंचों पर उनको सम्मान दिया गया है. हिमाचल सरकार ने उन्हें प्रेरणा स्त्रोत सम्मान से नवाजा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रेवरी अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है. शांतनु ने इनाम में मिली हजारों रुपये की राशि को भी अपने पास नहीं रखी और उसे भी चैरिटी में दान कर दिया. शांतनु कुमार का कहना है कि समाज सेवा करके अलग सी अनुभूति होती है और इस काम के लिए वह मदर टेरेसा को प्रेरणा स्त्रोत मानते हैं.

कई बार किया जा चुका है सम्मानित
कई बार किया जा चुका है सम्मानित (ETV BHARAT)

कोविड में भी किए कई लावारिस शवों के अंतिम संस्कार

कोविड काल का दौर एक ऐसा दौर रहा है जब लोग अपने लोगों का ही अंतिम संस्कार करने से कतरा रहे थे. यहां तक कई लोगों ने तो कोविड के भय के चलते अपनों का दाह संस्कार तक नहीं किया. वहीं, कुछ ऐसे भी थे जो मजबूरन यानी कोविड प्रोटोकॉल के तहत किसी अपने के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सके, लेकिन इस दौर में भी शांतनु कुमार ने अपना इरादा नहीं बदला. कोविड के चलते जिन लोगों की जान गई और उनके शव लावारिस पड़े रहे उनका दाह संस्कार भी शांतनु अपनी जान की परवाह किए बगैर करते रहे.

ये भी पढ़ें: विक्रमादित्य ने पिता वीरभद्र सिंह की प्रतिमा न लगाने पर पद छोड़ने का किया था ऐलान, अब रिज पर प्रतिमा स्थापित होने का रास्ता हुआ साफ

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