पटना : आज से 25 साल पहले जहानाबाद की शंकर बिगहा में 22 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी. वह 22 लोग उस रात यह सोचकर नहीं सोए होंगे कि यह उनकी आखिरी रात है. लेकिन, हत्यारों ने उनकी आखिरी रात बना दी थी. पूरे गांव में दहशत का माहौल था. सन्नाटा था, आवाज सिर्फ चीखने और रोने की आ रही थी.
नरसंहार का दौर : एक वक्त था जब बिहार में जातीय नरसंहार चरम पर था. उस दौरान अगड़ी जाति और पिछड़ी जाति में खूनी तांडव हुआ करते थे. पिछड़ी और दलित समुदाय का नेतृत्व भाकपा माले कर रही थी. वहीं सवर्णों का नेतृत्व रणबीर सेना कर रही थी. बिहार में उस दौरान लगातार नरसंहार हुआ करते थे. 1977 बेलछी नरसंहार से शुरू हुआ, यह तांडव जून 2000 मियांपुर नरसंहार तक चला.
शंकर बिगहा की टीस अब भी ताजा : आज हम 25 जनवरी 1999 की शंकर बिगहा में मारे गए 22 दलितों की चर्चा कर रहे हैं. शंकर बिगहा दो टोला में बंटा हुआ है. दलित समुदाय के लोग शंकर बीघा में रहते हैं तो वही सवर्ण समुदाय के लोग धोबी शंकर बिगहा गांव में रहते हैं. दोनों की दूरी लगभग 1 किलोमीटर की है. इस नरसंहार के बाद आरोप लगाया गया कि धोबी बीघा के सवर्णों ने शंकर बीघा के 22 दलितों की हत्या कर दी. उस समय तत्काल तौर पर 24 लोगों को अभियुक्त बनाया गया.
सभी अभियुक्त बरी हो गए : यह केस 16 साल लंबा चला. कई तारीखें मिली. लेकिन, जिन्होंने इस नरसंहार में पहले गवाही दी थी, समय के साथ पलटते गए, 13 जनवरी 2015 को जहानाबाद जिला अदालत में सबूत के अभाव में सभी 24 अभियुक्त को बाइज्जत बरी कर दिया. बताया जाता है कि केस दलितों का था, इसलिए उनकी तरफ से अदालत में मजबूत पक्ष नहीं रखे गए थे. उनका कमजोर पक्ष जो उस समय चश्मदीद गवाह थे मुकर गए.
16 साल तक चला था केस : 22 लोगों की हत्या का मामला 16 सालों तक तो चला लेकिन अंत में ये पता नहीं चला कि इस नरसंहार के पीछे किसका हाथ था.25 जनवरी 1999 की शंकर बीघा नरसंहार को काफी नजदीक से कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार रमाशंकर मिश्रा बताते है उन्हें इस घटना की जानकारी 26 जनवरी को मिली थी. 25 जनवरी की रात की घटना थी. काफी ठंड थी. सुबह-सुबह जब जानकारी मिली कि शंकर बिगहा में नरसंहार हुआ है. वहां दलित मारे गए हैं.
हृदय विदारक थी घटना : रमाशंकर मिश्रा बताते हैं कि जब हम लोग वहां पहुंचे तो वहां जाने का सुगम रास्ता नहीं था. तो लगभग एक-दो किलोमीटर पैदल गए थे. यह मेहंदिया थाना में है. उस समय जहानाबाद और अरवल का बंटवारा नहीं हुआ था. उसे समय यह जहानाबाद में था. पुलिस वहां पहुंच चुकी थी. जब मैं वहां पहुंचा तो जो दृश्य मैंने देखा वह काफी हृदय विदारक थी.
"किसी को गोली लगी थी, किसी के हाथ कटे हुए थे, किसी की आंखें निकाली गई थी, सभी दलित समुदाय के थे. जब पता किया तो पता चला की इन लोगों का कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम था. सभी इकट्ठे थे. तभी 100 से ज्यादा हथियारबंद लोग आए और उन्होंने तबाहतोड़ गोली चलानी शुरू कर दी थी. जो जहां था वहीं मारा गया था."- रमाशंकर मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार
कुल 24 लोगों की हुई थी मौत : रमाशंकर बताते हैं कि मुझे याद है कि एक व्यक्ति भैरव राजभर नाम का था. जिसने अपने परिवार के पांच लोगों को खो दिया था. जिसमें उसकी दो बेटी भी मारी गई थी. जब हम लोगों ने उससे पूछा कि कैसे आप बचे तो उसने बताया कि फूस के मकान के ऊपर वह छुप गए थे. इसलिए वह बच गए. जितने लोग थे जो सोए हुए थे उनको मार दिया गया था. उस घटना में क्रूरता की सारी हदें पार हो गई थी. उस समय आरोप लगा था तथाकथित रणवीर सेना के ऊपर. उस समय 22 लोग घटनास्थल पर मारे गए थे बाकी दो लोग अस्पताल में मरे थे.
जमीन की लड़ाई में हुए नरसंहार : सीनियर जर्नलिस्ट रमाशंकर मिश्रा बताते हैं उस समय लड़ाई लेफ्ट एक्टिविस्ट और रणवीर सेना के बीच में चल रही थी. अपर कास्ट के लोगों के जमीन पर दलितों ने झंडा गाड़ दिया था. खेत पर उन्हें जाने नहीं दे रहे थे. उन्हें खेती नहीं करने दे रहे थे. वह खेत बंजर होते जा रहे थे. यह काफी लंबा दौर चला था. उस समय नरसंहार का दौर था. 15 वर्षों में लगभग 300 लोग मारे जा चुके थे.
मोहरा बनाए जाते थे मासूम लोग : रामशंकर मिश्र बताते है कि जो आरोप लगा था शंकर बीघा के नरसंहार में वह धोबी बिगहा के लोगों पर लगा था. देखिए, गांव के लोगों में सब लोग इंवॉल्व नहीं होता है. लेकिन, नाम तो ज्यादातर लोगों का दे दिया जाता है. तो धोबी बिगहा के 24 लोगों का नाम दे दिया गया था. धोबी बिगहा अपर कास्ट डोमिनेटेड गांव है. बाद में जब लोगों के दिमाग में यह बात आई की, हम लोग मोहरा बनाए जा रहे हैं. तब यह नरसंहार बंद हुआ. इसमें लोग भी जागरूक हुए और सरकार भी सख्त हुई.
24 अभियुक्तों हो गए बरी : जो लोग मारे जा रहे थे उन्हें किसी से कोई लेना-देना नहीं था. ना रणबीर सेना लेना देना था और ना ही लेफ्ट की पार्टियों से लेना देना था. 2013 में ट्रायल शुरू हुआ था जो 24 अभियुक्त थे उन्हें साक्ष्य के अभाव में बाइज्जत बरी कर दिया गया. कोर्ट का कहना था कि किसी के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला है. पहले उसे समय स्टेटमेंट के आधार पर केस चला करते थे. साइंटिफिक कोई भी जांच नहीं की जाती थी. कई लोग डर के मारे गवाही नहीं दिए, गवाही पर मुकर गए. बाद में जब मैं शंकर बीघा गया था तो लोगों में आक्रोश जरूर था, लेकिन दोनों गांव में कोई अदावत नहीं थी तनाव नहीं था.
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