शहडोल : सामा को सांवा या अंग्रेजी में बार्नयार्ड मिलेट भी कहते हैं. कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बीके प्रजापति बताते हैं, '' सामा की खेती शहडोल जिले में 70 से 80 वर्ष पूर्व भी की जाती थी, आदिवासी अंचल में मडुआ के साथ इसकी खेती की जाती थी, लेकिन वर्तमान समय में इसका रकबा घट गया. इस मोटे अनाज में पोषक तत्वों की भरमार होती है, इसमें बहुत सी पौष्टिक गुण और स्वास्थ्यवर्धक चीजें होती हैं, जो आपके शरीर के लिए अमृत की तरह काम करती हैं. इसके 100 ग्राम दाने में 10 ग्राम प्रोटीन, 65 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 2 ग्राम फैट, 6 ग्राम फाइबर के साथ-साथ कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, जिंक की प्रचुर मात्रा होती है.''
कैसे उगता है सामा?
सामा की खेती मुख्य रूप से देश में उत्तराखंड, बिहार, कर्नाटक, तमिलनाडु और अन्या नॉर्थ ईस्ट स्टेट में होती है. यहां इसकी खेती के लिए उपयुक्त तापमाम और नमी मिल जाती है. इसके लिए 50 से 60% तक बारिश पर्याप्त होती है. यह 6.5 पीएच वाली हल्की और दामोट मिट्टी में पैदा होती है. इसके अलावा जिस भूमि पर इस उगाया जाता है वहां भरपूर मात्रा में गोबर की खाद के साथ नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश का उपयोग किया जाता है.
कैसे करें सामा की खेती ?
सामा की खेती के लिए बीज दर होती 8 से 10 किलो प्रति हेक्टेयर होती है. वहीं बीजों के लिए दूरी 25×10 सेंटीमीटर के हिसाब से होती है. बात करें इसकी निंदाई की तो 20 से 25 दिन में इसकी पहली निंदाई करनी चाहिए. वहीं इसकी सिंचाई में अलग से व्यवस्था करने की जरूरत नहीं होती क्योंकि ये वर्षा कालीन फसल है. हालांकि, दाने भरते समय संवेदनशील अवस्था होती है, इसलिए आवश्यकता अनुसार इसमें सिंचाई करनी चाहिए. इसकी फसल लगभग 80 से 95 दिनों में आने लगती है और उत्पादन में लगभग 12 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादकता हो सकती है.
बाजार में कितनी डिमांड ?
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बीके प्रजापति बताते हैं, '' इसका बाजार मूल्य देखेंगे तो यह 200 रु किलो तक बाजार में बिक जाता है. बाकी बाजार के हिसाब से इसके दाम घटते बढ़ते रहते हैं, लेकिन इसकी डिमांड बहुत रहती है. इसलिए यह अच्छे दामों में बिकता है. बड़े शहरों में तो इसके और अच्छे दाम मिल जाते हैं. इसके चावल की खीर बनती है, इसके कई उत्पाद बनते हैं जैसे इडली, डोसा आदि