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14 अगस्त को 12:01 बजे शान से लहराया तिरंगा, अटारी-वाघा बॉर्डर की तरह पूर्णिया में आधी रात को मनता है आजादी का जश्न - Independence Day 2024

Purnea People Hoisted Tricolor: देश आज यानी 15 अगस्त को आजादी का जश्न मना रहा है लेकिन बिहार के पूर्णिया में 14 अगस्त की आधी रात को ही तिरंगा फहरा दिया है. 1947 से ही वहां मध्यरात्रि को झंडोत्तोलन की परंपरा चली आ रही है. अटारी-वाघा बॉर्डर की तरह पूर्णिया में भी आधी रात को आजादी का जश्न मनाया जाता है.

Purnea people hoisted tricolor
पूर्णिया में तिरंगा फहराया (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 15, 2024, 7:30 AM IST

14 अगस्त की मध्यरात्रि पूर्णिया में तिरंगा फहराया (ETV Bharat)

पूर्णिया: बिहार के पूर्णिया में झंडा चौक पर 14 अगस्त की रात 12 बजकर 01 मिनट पर शान से तिंरगा फहराया गया. अटारी-वाघा बॉर्डर के बाद पूर्णिया देश का एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां 14 अगस्त की अंधेरी रात में ही झंडोत्तोलन किया जाता है. पूर्णिया के सहायक थाना क्षेत्र के भट्ठा बाजार झंडा चौक पर 'जन-गण-मन' राष्ट्रगान के बीच भारतीय तिरंगा अपने शौर्य और वैभव की अलख बिखेरता नजर आता है.

14 अगस्त की रात ही फहराया जाता है तिरंगा: जेपी आंदोलन में बतौर छात्र नेता महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले समाजसेवी और वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार दीपक बताते हैं कि देश में वाघा बॉर्डर के बाद पूर्णिया ही एक मात्र ऐसा दूसरा स्थान है, जहां ठीक 12:01 मिनट पर झंडोत्तोलन किया जाता है. वहीं, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को बेहद करीब से देखने वाले 89 साल के भोला नाथ आलोक की मानें तो 14 अगस्त की उस अंधेरी रात को महज पंच लाइट की रौशनी में गूंजती इस राष्ट्रगान की आवाज तब समूचे पूर्णिया ने सुनी थी.

Purnea people hoisted tricolor
पूर्णिया के झंडा चौक पर झंडोत्तोलन (ETV Bharat)

क्या है 14 अगस्त की पूरी कहानी?: समाजसेवी दिलीप कुमार आजादी की उस रात के स्वर्णिम इतिहास को याद करते हुए बताते हैं कि दरअसल 14 अगस्त 1947 की रात देश में जैसे ही लार्ड माउंट बेटेन द्वारा भारतीय डेमोनीयन को स्वतंत्र किए जाने की खबर रेडियो प्रसारण के जरिये पूर्णिया के स्वतंत्रता परवानों तक पहुंची, पूर्णिया में असहयोग आंदोलन, दांडी आंदोलन और जेल भरो आंदोलनों जैसे कई अहम आंदोलनों में जिले से बतौर सक्रिय कांग्रेस नेता रामेश्वर प्रसाद सिंह और उनके जैसे अनेकों परवाने आजादी की खुशी में इतने उत्साहित हो गए. बगैर किसी देरी के झंडा चौक पर पहले से रखे कच्चे बांस को उठाया और वह तिरंगा जो अब तक अंग्रेजों के विरुद्ध आजादी की लड़ाई के काम आ रहा था, उस तिरंगे के एक सिरे को बांस से बांधकर ठीक 12:01 मिनट पर रामेश्वर ने तिरंगा फहरा दिया.

जुड़े हैं कई दिलचस्प किस्से: पूर्णिया के इस स्वर्णिम इतिहास पर गौर करें तो 14 अगस्त की वह रात कई मायनों में रामेश्वर और उनके पांच अहम दोस्तों के लिए बेहद खास थी. यही वे पांच परवाने थे, जिन्होंने महज पांच की संख्याबल से पूर्णिया के लांखों लोगों के दिलों में आजादी की अलख जगाई थी. वरिष्ठ पत्रकार गंगा प्रसाद चौधरी की मानें तो एक पत्र लिखकर बापू ने कुछ रोज पहले ही रामेश्वर को इस बात की अप्रत्याशित जानकारी दी थी कि बेहद जल्द हम सबों की मेहनत रंग लाने वाली है. लिहाजा, उसी रात रामेश्वर और उनके पांच अहम साथियों ने यह संकल्प कर लिया था कि जैसे ही रेडियो से आजादी की उदघोषणा की खबर प्रसारित की जाएगी, उसी रोज हम सभी पूर्णिया के इस झंडा चौक से तिरंगा लहराएंगे.

"अद्धभुत सोच का नतीजा रहा कि झंडा चौक स्थित एक स्थान पर पूर्व से रखे गए कच्चे बांस से रामेश्वर के दोस्तों ने उठाया. सबकी सर्व सम्मति से रामेश्वर ने खादी के थैले से तिरंगा निकाला और ऐतिहासिक झंडा चौक पर ठीक 12:01 मिनट पर लहरा दिया."- गंगा प्रसाद चौधरी, वरिष्ठ पत्रकार

स्वतंत्रता सेनानी के परिजन क्या बोले?: आजादी के उस दौर को याद हुए समाजसेवी दिलीप और स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर के परिजन विपुल कुमार सिंह बताते है कि इस ऐतिहासिक झंडा चौक पर सन् 1947 के बाद कई सालों तक स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर कुमार सिंह ने ही तिरंगा झंडा फहराया. हालांकि जैसे-जैसे समय बीतता गया, झंडोत्तोलन की कमान रामेश्वर के पारिवारिक सदस्यों से निकल कर समाज के वरिष्ठजनों तक पहुंची.

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14 अगस्त की मध्यरात्रि पूर्णिया में तिरंगा फहराया (ETV Bharat)

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14 अगस्त की रात ही फहराया जाता है तिरंगा: जेपी आंदोलन में बतौर छात्र नेता महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले समाजसेवी और वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार दीपक बताते हैं कि देश में वाघा बॉर्डर के बाद पूर्णिया ही एक मात्र ऐसा दूसरा स्थान है, जहां ठीक 12:01 मिनट पर झंडोत्तोलन किया जाता है. वहीं, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को बेहद करीब से देखने वाले 89 साल के भोला नाथ आलोक की मानें तो 14 अगस्त की उस अंधेरी रात को महज पंच लाइट की रौशनी में गूंजती इस राष्ट्रगान की आवाज तब समूचे पूर्णिया ने सुनी थी.

Purnea people hoisted tricolor
पूर्णिया के झंडा चौक पर झंडोत्तोलन (ETV Bharat)

क्या है 14 अगस्त की पूरी कहानी?: समाजसेवी दिलीप कुमार आजादी की उस रात के स्वर्णिम इतिहास को याद करते हुए बताते हैं कि दरअसल 14 अगस्त 1947 की रात देश में जैसे ही लार्ड माउंट बेटेन द्वारा भारतीय डेमोनीयन को स्वतंत्र किए जाने की खबर रेडियो प्रसारण के जरिये पूर्णिया के स्वतंत्रता परवानों तक पहुंची, पूर्णिया में असहयोग आंदोलन, दांडी आंदोलन और जेल भरो आंदोलनों जैसे कई अहम आंदोलनों में जिले से बतौर सक्रिय कांग्रेस नेता रामेश्वर प्रसाद सिंह और उनके जैसे अनेकों परवाने आजादी की खुशी में इतने उत्साहित हो गए. बगैर किसी देरी के झंडा चौक पर पहले से रखे कच्चे बांस को उठाया और वह तिरंगा जो अब तक अंग्रेजों के विरुद्ध आजादी की लड़ाई के काम आ रहा था, उस तिरंगे के एक सिरे को बांस से बांधकर ठीक 12:01 मिनट पर रामेश्वर ने तिरंगा फहरा दिया.

जुड़े हैं कई दिलचस्प किस्से: पूर्णिया के इस स्वर्णिम इतिहास पर गौर करें तो 14 अगस्त की वह रात कई मायनों में रामेश्वर और उनके पांच अहम दोस्तों के लिए बेहद खास थी. यही वे पांच परवाने थे, जिन्होंने महज पांच की संख्याबल से पूर्णिया के लांखों लोगों के दिलों में आजादी की अलख जगाई थी. वरिष्ठ पत्रकार गंगा प्रसाद चौधरी की मानें तो एक पत्र लिखकर बापू ने कुछ रोज पहले ही रामेश्वर को इस बात की अप्रत्याशित जानकारी दी थी कि बेहद जल्द हम सबों की मेहनत रंग लाने वाली है. लिहाजा, उसी रात रामेश्वर और उनके पांच अहम साथियों ने यह संकल्प कर लिया था कि जैसे ही रेडियो से आजादी की उदघोषणा की खबर प्रसारित की जाएगी, उसी रोज हम सभी पूर्णिया के इस झंडा चौक से तिरंगा लहराएंगे.

"अद्धभुत सोच का नतीजा रहा कि झंडा चौक स्थित एक स्थान पर पूर्व से रखे गए कच्चे बांस से रामेश्वर के दोस्तों ने उठाया. सबकी सर्व सम्मति से रामेश्वर ने खादी के थैले से तिरंगा निकाला और ऐतिहासिक झंडा चौक पर ठीक 12:01 मिनट पर लहरा दिया."- गंगा प्रसाद चौधरी, वरिष्ठ पत्रकार

स्वतंत्रता सेनानी के परिजन क्या बोले?: आजादी के उस दौर को याद हुए समाजसेवी दिलीप और स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर के परिजन विपुल कुमार सिंह बताते है कि इस ऐतिहासिक झंडा चौक पर सन् 1947 के बाद कई सालों तक स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर कुमार सिंह ने ही तिरंगा झंडा फहराया. हालांकि जैसे-जैसे समय बीतता गया, झंडोत्तोलन की कमान रामेश्वर के पारिवारिक सदस्यों से निकल कर समाज के वरिष्ठजनों तक पहुंची.

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