गया: बिहार के गया में विश्व विख्यात पितृपक्ष मेला चल रहा है. गया जी धाम में अभी वर्तमान में 55 पिंड वेदियां हैं. सभी पिंड वेदियों की अपनी अलग-अलग महता और पौराणिक माहत्मय है जिसका जिक्र पुराण शास्त्रों, भागवत में किया गया है.यहां भगवान श्री कृष्ण स्वयं पांडवों को लेकर आए थे. पिंडवेदी में त्रिपिंडी श्राद्ध से शादी विवाह की बाधा, संतान सुख की प्राप्ति होती है.
तीन पीढ़ियां के पूर्वजों का पिंडदान: त्रिपिंडी श्राद्ध का गया जी धाम में धर्मराण्य पिंड वेदी पर बड़ा ही महत्व है. त्रिपिंडी श्राद्ध में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. त्रिपिंडी श्राद्ध से तीन पीढ़ी के पूर्वजों में जो असंतुष्ट आत्मा होती है. वह इस श्राद्ध से शांत हो जाती है. सारे पितृ दोष दूर हो जाते हैं और संबंधित घरों में जो प्रेत बाधा होती है.
त्रिपिंडी श्राद्ध के दौरान हरकत करते हैं प्रेत: धर्मारण्य में पिंड वेदी में त्रिपिंडी श्राद्ध को स्पेशलिस्ट माना गया है, क्योंकि यहां प्रेत बाधा के हावी होने के मामले भी त्रिपिंडी श्राद्ध के दौरान आ जाते हैं. जब त्रिपिंडी श्राद्ध होता है तो उस समय जिस पर जो प्रेत बाधा रहती है वह तरह-तरह की हरकतें करने लगते हैं.त्रिपिंडी श्राद्ध संपन्न कराने वाले पुजारी का दावा है कि इसमें कोई संशय नहीं है कि यहां त्रिपिंडी श्राद्ध कराने से विभिन्न तरह की बाधाएं शांत हो जाती है.
वंश वृद्धि के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध: वहीं बोधगया स्थित धर्मारण्य वेदी में पटना से आई किशोरी पांडे अपने पति सत्येंद्र कुमार पांडे के साथ त्रिपिंडी श्राद्ध कर रही है. किशोरी पांडे बताती है कि उनके यहां धन की हानि हो रही थी. वंश की वृद्धि नहीं हो रही थी, मांगलिक कार्य नहीं हो पा रहे थे, जो भी कार्य करते वह सफल नहीं हो पा रहा था, तो उन्होंने विद्वानों से राय ली तो बोला गया कि बोधगया धर्मारण्य पिंंडवेदी में त्रिपिंडी श्राद्ध का काफी महत्व है.
ॉत्रिपिंडी श्राद्ध से मांगलिक कार्य के दोष दूर होते हैं: महिला किशोरी पांडे ने बताया कि वह वंश की वृद्धि के लिए यहां त्रिपिंडी श्राद्ध का कर्मकांड कर रही है. वहीं, मांगलिक कार्य भी हमारे घर में हो, इसके लिए भी त्रिपिंडी श्राद्ध किया जा रहा है. वही, सत्येंद्र पांडे ने बताया कि सारी बाधाएं दूर हो, इसके लिए त्रिपिंडी श्राद्ध कर रहे हैं. शारीरिक, मानसिक, दैविक, दैहिक जो भी बाधा हों, जो पितृ दोष कारण घर के मांगलिक कार्य रुके हुए हैं, वह पूरे हो जाएं. इसी कामना के साथ हुए त्रिपिंडी श्राद्ध कर रहे हैं.
भगवान श्री कृष्ण स्वयं पांडवों को लेकर आए थे: धर्मारण्य पिंड बेदी गया जी की मुख्य पिंडवेदियों में से एक है. यहां लोग पितृ पक्ष में त्रिपिंडी श्राद्ध करने जरूर पहुंंचते हैं. देश के तकरीबन सभी राज्यों से यहां त्रिपिंडी श्राद्ध करने लोग आते हैं. धर्मारण्य पिंडवेदी पर भगवान श्री कृष्णा स्वयं पांडवों को लेकर आए थे और महाभारत में मारे गए लोगों के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध का कर्मकांड हुआ था.
धर्मराज युधिष्ठिर ने गया में किया था यज्ञ: बताया जाता है कि अश्वत्थामा हाथी से जुड़े प्रकरण को लेकर पाप निवारण को लेकर धर्मराज युधिष्ठिर ने यहां यज्ञ किया था. वह यज्ञ कूप आज भी मौजूद है. वही, त्रिपिंडी श्राद्ध का पिंड यहां एक प्राचीन कूप में अर्पित किया जाता है. धर्मारण्य पिंड वेदी समीप ही भगवान बुद्ध ने भी घोर तपस्या की थी.
"किसी के घर में उपद्रव रहता है. लोग परेशान रहते हैं. दैहिक दैविक भौतिक सुख के लिए शांति के निमित्त त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है. जिससे पितरों को शांति मिलती है. घर में वंश की वृद्धि नहीं हो रही हो, मांगलिक कार्य शादियां आदि नहीं हो रहे हों, धन की हानि हो रही हो, बाल बच्चा होते हैं लेकिन वह गुजर जाते हैं, इस तरह से जो लोग परेशान हैं, घर में पितृ दोष होने के कारण ये बाधाएं रहती है. त्रिपिंडी श्राद्ध से ऐसी सारी बाधाएं दूर हो जाती है." - उपेंद्र नारायण शास्त्री, प्रधान तीर्थ पुरोहित, धर्मारण्य पिंडवेदी
पिंड को चावल, गुड़ और जौ करें अर्पित: धर्मारण्य वेदी के प्रधान तीर्थ पुरोहित उपेंद्र नारायण शास्त्री बताते हैं, कि यह 3 घंटे का त्रिपिंडी श्राद्ध होता है. इसमें ब्रह्मा विष्णु महेश की प्रतिमा होती है. त्रिपिंडी श्राद्ध में विष्णु जी को जौ, ब्रह्मा जी को चावल और शंकर जी को तिल गुड़ का पिंड अर्पित किया जाता है. इससे सारे कष्ट दूर होते हैं, इस पर कोई संशय नहीं है.
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