पटनाः VIP सुप्रीमो मुकेश सहनी इन दिनों बिहार की सियासत की सुर्खियों में बने हुए हैं. स्वतंत्रता दिवस से पहले अपने सोशल मीडिया अकाउंट का प्रोफाइल बदलकर मुकेश ने एक बड़ी सियासी चर्चा को हवा दे दी.कयास लगाए जा रहे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी के सबसे बड़े सिपहसालार बने मुकेश अब NDA के साथ जा सकते हैं. 2018 में निषाद आरक्षण आंदोलन के जरिये बिहार की सियासत में अपनी पहचान बनानेवाले मुकेश सहनी मल्लाहों का सबसे लोकप्रिय चेहरा बन चुके हैं. यही कारण है कि सभी गठबंधन मुकेश को अपने साथ जोड़कर रखना चाहते हैं.
निषाद आरक्षण आंदोलन ने बनाया बड़ा चेहराः मुकेश सहनी और उनकी पार्टी VIP का उदय 2018 में निषाद आरक्षण आंदोलन से हुआ. निषाद जातियों को आरक्षण तो पहले से ही मिला हुआ है लेकिन वो आरक्षण अति पिछड़ा वर्ग के तहत मिला हुआ है. मुकेश सहनी और उनकी पार्टी की मांग है कि निषाद समाज को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाए और उसी के अनुरूप उन्हें आरक्षण और तमाम अधिकार भी मिलें. इसको लेकर मुकेश सहनी 2018 से न सिर्फ बिहार बल्कि उत्तर प्रदेश और झारखंड में भी आंदोलन चला रहे हैं.
बिहार-यूपी में क्यों नहीं ?: इसको लेकर VIP सुप्रीमो के पास कई वाजिब तर्क भी हैं. उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल, दिल्ली और ओडिशा में निषाद जातियों को अनुसूचित जाति का आरक्षण मिलता है, तो उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के निषाद, मल्लाह, केवट, बिंद, गोडिया को ये आरक्षण क्यों नहीं मिलना चाहिए. मुख्य रूप से बिहार की सियासत करनेवाले मुकेश सहनी ने निषाद आरक्षण को लेकर 2023 में उत्तर प्रदेश और झारखंड में भी बड़ा अभियान चलाया.
" बीजेपी को कोई नया आरक्षण नहीं देना था. जो शुरुआत से ही दिल्ली और बंगाल में लागू है, लेकिन बिहार-यूपी और झारखंड में नहीं लागू है. इसी को देने की मांग हमलोग कर रहे हैं. इसको लेकर सीएम नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार से अनुशंसा भी कर दी है और हमारी मांग है कि इसको लेकर केंद्र सरकार कार्यवाही करे."- देव ज्योति, राष्ट्रीय प्रवक्ता, VIP
फूलन देवी की पुण्यतिथि पर निकाली 100 दिनों की यात्राः निषाद आरक्षण को लेकर मुकेश सहनी ने 2023 में पूर्व सांसद फूलन देवी की पुण्यतिथि 25 जुलाई से तीन राज्यों की यात्रा शुरु की थी. 100 दिनों की इस यात्रा में उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार के 80 जिलों में पार्टी का कार्यक्रम चला. हालांकि उत्तर प्रदेश में यात्रा के दौरान काफी विवाद भी हुआ. यात्रा का नाम 'निषाद आरक्षण संकल्प यात्रा' दिया गया था. ये यात्रा 4 नवंबर तक चली और इस दौरान घर-घर जाकर निषाद आरक्षण का संकल्प दिलाया गया. इसके बाद भी मुकेश सहनी निषाद आरक्षण की मांग को बड़े अभियान के तौर पर लगातार चला रहे हैं.
'आसान नहीं है अनुसूचित जाति में शामिल करना': मुकेश सहनी के अभियान को लेकर राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण पांडेय का कहना है कि किसी भी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करना आसान नहीं है. इसे संसद के माध्यम से केंद्र सरकार शामिल करती रही है.अभी हाल ही में बिहार सरकार ने तांती-ततवा को एससी में शामिल किया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया. कई राज्यों में इस तरह के फैसले लिए जाते हैं जो बाद में रद्द हो जाते हैं.
"यह सही है कि निषाद आरक्षण के बल पर ही मुकेश सहनी कुछ ही दिनों में निषादों के बड़े नेता बन गए हैं. लोकसभा का चुनाव आरजेडी के साथ मिलकर लड़ा तो ऐसा नहीं था कि निषाद आरक्षण को लेकर उन्हें कोई आश्वासन मिला होगा. एनडीए में वापसी की उनकी चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा.अब 2025 में उन्हें जहां उम्मीद दिखेगी वहीं रहेंगे."- अरुण पांडेय, राजनीतिक विशेषज्ञ
मुकेश सहनी से मंत्री अशोक चौधरी की मुलाकातः मुकेश सहनी के NDA के साथ जाने की चर्चा ने 2 दिनों पहले और जोर पकड़ लिया जब नीतीश कैबिनेट के मंत्री अशोक चौधरी ने मुकेश सहनी के आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की. हालांकि अशोक चौधरी इसे व्यक्तिगत मुलाकात बता रहे हैं.
"मुकेश सहनी से सियासत को लेकर कोई बात नहीं हुई.आरक्षण को लेकर मुकेश सहनी अपना अभियान चला रहे हैं. यह उनका मामला है. जहां तक बिहार में अति पिछड़ा और महादलित की बात है तो मुख्यमंत्री के साथ अधिकांश लोग हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान भी हमलोगों ने 164 विधानसभा क्षेत्रों में लीड ली थी. जमीन पर कहीं कोई नहीं है."- अशोक चौधरी, मंत्री, बिहार सरकार
मुकेश सबको क्यों पसंद हैं ?: वैसे तो मुकेश सहनी के खाते में कोई बड़ी चुनावी सफलता दर्ज नहीं है फिर भी ये देखने को मिलता है कि महागठबंधन हो या फिर NDA उन्हें अपने साथ जोड़कर रखना चाहते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब महागठबंधन में सीटों का बंटवारा हुआ तो मुकेश सहनी को जोड़कर रखने के लिए आरजेडी ने अपने कोटे की 3 लोकसभा सीट VIP को दी थीं. हालांकि मुकेश सहनी की पार्टी को जीत नसीब नहीं हुई. अब एक साल बाद बिहार विधानसभा का चुनाव है और दोनों गठबंधन मुकेश को अपने साथ जोड़ने की कवायद में लगे हैं.
कई सीटों पर असरदार हैं निषादः दरअसल बिहार के मुजफ्फरपुर सहित दरभंगा, मधुबनी और मिथिलांचल के कई जिलों में निषाद जाति के मतदाताओं की संख्या इतनी है कि वो कई विधानसभा सीटों के चुनावी नतीजे पर असर डाल सकते हैं. निषाद आरक्षण आंदोलन के जरिये मुकेश सहनी निषाद जाति के बड़े नेता बन चुके हैं. ऐसे में निषादों का वोट पाने का सबसे बड़ा जरिया मुकेश सहनी ही नजर आ रहे हैं. मुकेश सहनी भी ये बात बखूबी समझ रहे हैं. अब देखना है कि 2025 में मुकेश किसके पाले में गिरते हैं और उससे मुकेश को कितना फायदा होता है ?