पटनाः बिहार के प्रख्यात प्रोड्यूसर संजय ठाकुर और डायरेक्टर कुणाल नवल सिन्हा की नई फीचर फिल्म 'तरेंगन' का प्रीव्यू शो पटना के बिहार म्यूजियम में 11 अगस्त को होगा. इस फिल्म की खासियत ये है कि इसमें अधिकांश बिहार के ही कलाकारों ने भूमिका निभाई है और इसकी पूरी शूटिंग भी बिहार में हुई है. ये फिल्म दो पीढ़ियों की जीवनशैली और उनके विचारों के टकराव जैसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे से रूबरू कराती है.
बिहार की पृष्ठभूमि पर है कहानीः इस फिल्म के डायरेक्टर कुणाल नवल सिन्हा ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि इस फिल्म की कहानी की पृष्ठभूमि बिहार के 1993 से 2004 के बीच रहे दौर की है. जिसमें जुगल नाम का एक मध्यम आयु वर्ग का मूक-बधिर ''दलित'' पैडल रिक्शा चालक है, जो अमीर बच्चों को स्कूल लाता-जाता है. लेकिन जब वह अपने बेटे तरेंगन को शिक्षित करना चाहता है, तो उसकी जाति के कारण कोई भी स्कूल उसे प्रवेश नहीं देता.
दुनिया की चकाचौंध में खो जाता है तरेंगनः आखिरकार उसके बेटे तारेंगन को एक स्कूल में प्रवेश मिलता है. तरेंगन बोर्ड परीक्षा के दौरान पूरे क्लास में टॉपर बनकर एक मिसाल कायम करता है. फिर उच्च अध्ययन के लिए वो बड़े शहर जाता है. जब वह दुनिया देखता है तो अपनी पहचान खो देता है. वो चारों ओर फैले शिक्षा के लालची और पूंजीवादी संरचना का शिकार हो जाता है. वह दूसरे संपन्न छात्रों की जीवनशैली की नकल करना चाहता है और आखिरकार ये नकल किस तरह उसके पिता और उसके लिए भारी पड़ती है यही इस फिल्म में दिखाया गया है.
"इस फिल्म में जो भी कलाकार हैं वो अधिकांश बिहार के हैं.एक-दो कलाकार यूपी और एक-दो कलाकार दिल्ली के हैं. फिल्म की अधिकतक शूटिंग नवादा और पटना के लोकेशंस पर की गयी है.ये एक आर्ट फिल्म है और इसकी कहानी उलझी नहीं होकर पूरी तरह स्ट्रेट है. इस फिल्म में नवादा के जिलाधिकारी, जिला शिक्षा पदाधिकारी और ग्रामीणों का काफी सहयोग मिला, जिसका मैं शुक्रगुजार हूं."- संजय ठाकुर, फिल्म तरेंगन के निर्माता
कलाकारों का बेहतरीन अभिनयः तरेंगन में बिहार के प्रतिभाशाली कलाकारों ने अपने बेहतरीन अभिनय से फिल्म को जीवंत बना दिया है. इन कलाकारों ने अपने किरदारों को इतनी संजीदगी से निभाया है कि दर्शकों को हर दृश्य में वास्तविकता का अनुभव होगा.
इस फिल्म में न केवल कहानी को बखूबी प्रस्तुत किया गया है, बल्कि हर दृश्य को इतनी खूबसूरती से फिल्माया गया है कि दर्शक उस समय और स्थान में खो जाते हैं.
"फिल्म की कुल अवधि एक घंटा 33 मिनट की है, जिसमें दर्शकों को एक सजीव और भावनात्मक अनुभव प्राप्त होगा. फिल्म के माध्यम से न केवल बिहार के कलाकारों को मंच प्रदान किया किया गया है, बल्कि बिहार की मिट्टी और संस्कृति को भी उभारा गया है."-कुणाल नवल सिन्हा, निर्देशक, फिल्म तरेंगन