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बदलते दौर का दर्पण है फिल्म तरेंगन, 11 अगस्त को बिहार म्यूजियम में की जाएगी प्रदर्शित - FILM TARENGAN

FILM TARENGAN PREVIEW IN BIHAR MUSEUM: गरीबी में पल-बढ़कर तरेंगन अपनी प्रतिभा के दम पर पढ़ाई में शानदार सफलता तो अर्जित करता है लेकिन खुद को इस दुनिया की चकाचौंध से नहीं बचा पाता और पूंजीवादी संरचना का शिकार हो जाता है, बिहारी कलाकारों से सजी तरेंगन फिल्म में यही दिखाया गया है, जिसका प्रीव्यू शो 11 अगस्त को पटना के बिहार म्यूजियम में होगा, पढ़िये पूरी खबर,

11 अगस्त को 'तरेंगन' का प्रीव्यू शो
11 अगस्त को 'तरेंगन' का प्रीव्यू शो (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 7, 2024, 10:22 PM IST

पटनाः बिहार के प्रख्यात प्रोड्यूसर संजय ठाकुर और डायरेक्टर कुणाल नवल सिन्हा की नई फीचर फिल्म 'तरेंगन' का प्रीव्यू शो पटना के बिहार म्यूजियम में 11 अगस्त को होगा. इस फिल्म की खासियत ये है कि इसमें अधिकांश बिहार के ही कलाकारों ने भूमिका निभाई है और इसकी पूरी शूटिंग भी बिहार में हुई है. ये फिल्म दो पीढ़ियों की जीवनशैली और उनके विचारों के टकराव जैसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे से रूबरू कराती है.

बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित है 'तरेंगन'
बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित है 'तरेंगन' (ETV BHARAT)

बिहार की पृष्ठभूमि पर है कहानीः इस फिल्म के डायरेक्टर कुणाल नवल सिन्हा ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि इस फिल्म की कहानी की पृष्ठभूमि बिहार के 1993 से 2004 के बीच रहे दौर की है. जिसमें जुगल नाम का एक मध्यम आयु वर्ग का मूक-बधिर ''दलित'' पैडल रिक्शा चालक है, जो अमीर बच्चों को स्कूल लाता-जाता है. लेकिन जब वह अपने बेटे तरेंगन को शिक्षित करना चाहता है, तो उसकी जाति के कारण कोई भी स्कूल उसे प्रवेश नहीं देता.

पटना और नवादा में हुई है शूटिंग
पटना और नवादा में हुई है शूटिंग (ETV BHARAT)

दुनिया की चकाचौंध में खो जाता है तरेंगनः आखिरकार उसके बेटे तारेंगन को एक स्कूल में प्रवेश मिलता है. तरेंगन बोर्ड परीक्षा के दौरान पूरे क्लास में टॉपर बनकर एक मिसाल कायम करता है. फिर उच्च अध्ययन के लिए वो बड़े शहर जाता है. जब वह दुनिया देखता है तो अपनी पहचान खो देता है. वो चारों ओर फैले शिक्षा के लालची और पूंजीवादी संरचना का शिकार हो जाता है. वह दूसरे संपन्न छात्रों की जीवनशैली की नकल करना चाहता है और आखिरकार ये नकल किस तरह उसके पिता और उसके लिए भारी पड़ती है यही इस फिल्म में दिखाया गया है.

फिल्म में अधिकांश कलाकार बिहार के हैं
फिल्म में अधिकांश कलाकार बिहार के हैं (ETV BHARAT)

"इस फिल्म में जो भी कलाकार हैं वो अधिकांश बिहार के हैं.एक-दो कलाकार यूपी और एक-दो कलाकार दिल्ली के हैं. फिल्म की अधिकतक शूटिंग नवादा और पटना के लोकेशंस पर की गयी है.ये एक आर्ट फिल्म है और इसकी कहानी उलझी नहीं होकर पूरी तरह स्ट्रेट है. इस फिल्म में नवादा के जिलाधिकारी, जिला शिक्षा पदाधिकारी और ग्रामीणों का काफी सहयोग मिला, जिसका मैं शुक्रगुजार हूं."- संजय ठाकुर, फिल्म तरेंगन के निर्माता

बिहार म्यूजिम में होगा 'तरेंगन' का प्रीव्यू शो
बिहार म्यूजिम में होगा 'तरेंगन' का प्रीव्यू शो (ETV BHARAT)

कलाकारों का बेहतरीन अभिनयः तरेंगन में बिहार के प्रतिभाशाली कलाकारों ने अपने बेहतरीन अभिनय से फिल्म को जीवंत बना दिया है. इन कलाकारों ने अपने किरदारों को इतनी संजीदगी से निभाया है कि दर्शकों को हर दृश्य में वास्तविकता का अनुभव होगा.
इस फिल्म में न केवल कहानी को बखूबी प्रस्तुत किया गया है, बल्कि हर दृश्य को इतनी खूबसूरती से फिल्माया गया है कि दर्शक उस समय और स्थान में खो जाते हैं.

"फिल्म की कुल अवधि एक घंटा 33 मिनट की है, जिसमें दर्शकों को एक सजीव और भावनात्मक अनुभव प्राप्त होगा. फिल्म के माध्यम से न केवल बिहार के कलाकारों को मंच प्रदान किया किया गया है, बल्कि बिहार की मिट्टी और संस्कृति को भी उभारा गया है."-कुणाल नवल सिन्हा, निर्देशक, फिल्म तरेंगन

ये भी पढ़ेंः'बिहार में कीजिए फिल्मों की शूटिंग, भरपूर छूट देगी नीतीश सरकार', प्रोत्साहन नीति से निर्माताओं-कलाकारों की बल्ले-बल्ले - Bihar Film Promotion Policy 2024

बिहार फिल्म प्रोत्साहन नीति को मंजूरी मिलने पर क्या है भोजपुरी स्टार का रिएक्शन? नीतीश कुमार को लेकर कही ये बातें - Bihar Film Promotion Policy

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बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित है 'तरेंगन'
बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित है 'तरेंगन' (ETV BHARAT)

बिहार की पृष्ठभूमि पर है कहानीः इस फिल्म के डायरेक्टर कुणाल नवल सिन्हा ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि इस फिल्म की कहानी की पृष्ठभूमि बिहार के 1993 से 2004 के बीच रहे दौर की है. जिसमें जुगल नाम का एक मध्यम आयु वर्ग का मूक-बधिर ''दलित'' पैडल रिक्शा चालक है, जो अमीर बच्चों को स्कूल लाता-जाता है. लेकिन जब वह अपने बेटे तरेंगन को शिक्षित करना चाहता है, तो उसकी जाति के कारण कोई भी स्कूल उसे प्रवेश नहीं देता.

पटना और नवादा में हुई है शूटिंग
पटना और नवादा में हुई है शूटिंग (ETV BHARAT)

दुनिया की चकाचौंध में खो जाता है तरेंगनः आखिरकार उसके बेटे तारेंगन को एक स्कूल में प्रवेश मिलता है. तरेंगन बोर्ड परीक्षा के दौरान पूरे क्लास में टॉपर बनकर एक मिसाल कायम करता है. फिर उच्च अध्ययन के लिए वो बड़े शहर जाता है. जब वह दुनिया देखता है तो अपनी पहचान खो देता है. वो चारों ओर फैले शिक्षा के लालची और पूंजीवादी संरचना का शिकार हो जाता है. वह दूसरे संपन्न छात्रों की जीवनशैली की नकल करना चाहता है और आखिरकार ये नकल किस तरह उसके पिता और उसके लिए भारी पड़ती है यही इस फिल्म में दिखाया गया है.

फिल्म में अधिकांश कलाकार बिहार के हैं
फिल्म में अधिकांश कलाकार बिहार के हैं (ETV BHARAT)

"इस फिल्म में जो भी कलाकार हैं वो अधिकांश बिहार के हैं.एक-दो कलाकार यूपी और एक-दो कलाकार दिल्ली के हैं. फिल्म की अधिकतक शूटिंग नवादा और पटना के लोकेशंस पर की गयी है.ये एक आर्ट फिल्म है और इसकी कहानी उलझी नहीं होकर पूरी तरह स्ट्रेट है. इस फिल्म में नवादा के जिलाधिकारी, जिला शिक्षा पदाधिकारी और ग्रामीणों का काफी सहयोग मिला, जिसका मैं शुक्रगुजार हूं."- संजय ठाकुर, फिल्म तरेंगन के निर्माता

बिहार म्यूजिम में होगा 'तरेंगन' का प्रीव्यू शो
बिहार म्यूजिम में होगा 'तरेंगन' का प्रीव्यू शो (ETV BHARAT)

कलाकारों का बेहतरीन अभिनयः तरेंगन में बिहार के प्रतिभाशाली कलाकारों ने अपने बेहतरीन अभिनय से फिल्म को जीवंत बना दिया है. इन कलाकारों ने अपने किरदारों को इतनी संजीदगी से निभाया है कि दर्शकों को हर दृश्य में वास्तविकता का अनुभव होगा.
इस फिल्म में न केवल कहानी को बखूबी प्रस्तुत किया गया है, बल्कि हर दृश्य को इतनी खूबसूरती से फिल्माया गया है कि दर्शक उस समय और स्थान में खो जाते हैं.

"फिल्म की कुल अवधि एक घंटा 33 मिनट की है, जिसमें दर्शकों को एक सजीव और भावनात्मक अनुभव प्राप्त होगा. फिल्म के माध्यम से न केवल बिहार के कलाकारों को मंच प्रदान किया किया गया है, बल्कि बिहार की मिट्टी और संस्कृति को भी उभारा गया है."-कुणाल नवल सिन्हा, निर्देशक, फिल्म तरेंगन

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