पन्ना: हीरे की खान के लिए विश्व प्रसिद्ध पन्ना में एक ऐसा ऐतिहासिक मंदिर स्थापित है, जहां देश दुनिया से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं. इस मंदिर की स्थापना पन्ना के तत्कालीन नरेश किशोर सिंह जू देव ने कराया था. बताया जाता है कि उन्हें भगवान जगन्नाथ स्वामी का मंदिर निर्माण करवाने का सपना आया था. उसके बाद 1817 में यहां पर राजमहल परिसर के समीप सुंदर मंदिर का निर्माण करवाया जो आज भी स्थापित है.
पुरी से लाया गया था विसर्जित मूर्ति
भगवान जगन्नाथ स्वामी मंदिर के पुजारी राकेश गोस्वामी बताते हैं कि "पन्ना के तत्कालीन नरेश किशोर सिंह जू देव को भगवान जगन्नाथ स्वामी का रात में सपना आया कि पुरी से हमें पन्ना ले चलो. पुरी में 12 साल में मूर्ति विसर्जित कर दी जाती है. उसी 12 साल में विसर्जित की गई मूर्ति को महाराजा किशोर सिंह जूदेव पन्ना लेकर आए थे. कहा जाता है कि जब यह मूर्ति पन्ना लेकर आए तो उन्हें पन्ना आने में करीब 6 माह का समय लग गया था. फिर उन्होंने राजमहल के समीप सुंदर विशाल जगन्नाथ स्वामी मंदिर बनवाया. जहां पर भगवान जगन्नाथ स्वामी आज भी विराजमान है और आज भी सैकड़ों वर्षों से पुरी के तर्ज पर रथ यात्रा निकाली जाती है.
पुरी के तर्ज पर निकलती है रथ यात्रा
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि "यहां पर विश्व प्रसिद्ध सैकड़ों वर्षों से पुरी के तर्ज पर रथ यात्रा निकाली जाती है, जो यहां से 4 किलोमीटर दूर जनकपुर जाती है. जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते हैं. इसमें 9 दिन की रथ यात्रा रहती है. जिसमें 3 दिन जाने और 3 दिन आने में लगता है. वहीं, 3 दिन भगवान वहां पर विश्राम करते हैं. इसको लेकर एक पुरानी कहावत भी है, "9 दिन चले अढ़ाई कोस."
भगवान हो जाते हैं बीमार
रथ यात्रा की 15 दिन पूर्व भगवान को गर्भगृह से निकालकर स्नान के लिए बाहर ले जाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि जब भगवान को स्नान कराने के बाद मंदिर के अंदर ले जाने लगते हैं, तो उन्हें लू लग जाती है. लू लगने से भगवान बीमार हो जाते हैं. इसलिए 15 दिन मंदिर श्रद्धालुओं के लिए बंद रहता है, फिर भगवान का औषधीय उपचार किया जाता है. 15 दिन बाद अमावस्या को पथ प्रसाद का कार्यक्रम होता है. उसके दूसरे दिन दूज की अमावस्या को भगवान की रथ यात्रा निकाली जाती है.
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सन 1817 में करवाया था निर्माण
यह मंदिर राज परिसर में स्थित है, जिसका निर्माण 1817 में करवाया गया था. पुरी से लाई गई श्री जगन्नाथ, श्री बलभद्र एवं सुभद्रा जी की कास्ट प्रतिमाएं जगदीश स्वामी मंदिर के गर्भगृह में स्थापित है. यह मंदिर परंपरागत मध्ययुगीन शैली में निर्मित है, जिसके प्रवेश द्वार पर विशाल सिंह बने हुए हैं. मंदिर का शिखर पर सुंदर कलश स्थापित है. इस मंदिर का गर्भगृह, मंडप प्रशिक्षण पथ एवं प्रवेश द्वार परंपरागत शैली में बना हुआ है.