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ओशो का जबलपुर से गहरा नाता, सामान्य विद्यार्थी कैसे बना संन्यासी और दुनिया का बड़ा दर्शनशास्त्री - osho world greatest philosopher

जबलपुर ओशो रजनीश का लांचिंग पैड रहा. गांव से शहर पढ़ने आया एक सामान्य विद्यार्थी कैसे दुनिया का बड़ा दर्शनशास्त्री बन गया. लाखों लोगों को दर्शनशास्त्र और जीवन के गूढ़ रहस्य को समझाया. रजनीश को 21 मार्च के दिन ही संबोधि प्राप्त हुई थी. उन्हें यह ज्ञान जबलपुर के एक बगीचे में एक पेड़ के नीचे मिली. जबलपुर में आज भी भंवरताल गार्डन में यह पेड़ उनके लिए समर्पित है.

osho world greatest philosopher
ओशो सामान्य विद्यार्थी कैसे बना संन्यासी और दुनिया का बड़ा दर्शनशास्त्री
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 22, 2024, 10:41 AM IST

ओशो का जबलपुर से रहा गहरा नाता

जबलपुर। मोबाइल फोन पर जब भी आपने मोटिवेशनल वीडियो स्क्रोल किए होंगे तो एक नाम आता होगा, इसे ओशो रजनीश के नाम से जाना जाता है. वजनदार आवाज में जीवन के रहस्यों को बड़े ही सरल अंदाज में समझाने की कला के ज्ञाता थे वह. ओशो के कोटेशन और प्रवचन जितने आज प्रासंगिक हैं, उससे कहीं ज्यादा आज से 50 साल पहले थे. जब दुनिया ओशो की दीवानी थी. भारत से लेकर अमेरिका तक उन्हें सुनने वालों की तादाद लाखों में थी.

शुरुआत के 19 साल जबलपुर में रहे ओशो

जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार और ओशो के प्रेमी सुरेंद्र दुबे बताते हैं "ओशो का कुल जीवनकाल लगभग 6 दशक का था. इसमें से लगभग 19 साल जबलपुर में रहे. उनका जन्म कुचवाडा में हुआ था और वहां से ओशो रजनीश जिन्हें बचपन में राजा के नाम से जाना जाता था, बचपन में ही वह अपने ननिहाल गाडरवारा आ गए थे. जहां उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा हुई. ऐसा बताते हैं कि गाडरवारा में पुस्तकालय में ही वे घंटो पुस्तक पढ़ा करते थे. इसके बाद वे जबलपुर आए. यहां उनके चाचा ने उन्हें ₹70 महीने में एक अखबार में पत्रकार बना दिया."

osho world greatest philosopher
21 मार्च को मौल श्री वृक्ष के नीचे मिली थी संबोधि

कॉलेज के दिनों में अपने शिक्षकों को तर्क से हराया

इस दौरान ओशोने जबलपुर के डीएन जैन कॉलेज में दर्शनशास्त्र की पढ़ाई शुरू कर दी. ओशो रजनीश पुस्तकें बहुत पढ़ते थे. वह अपने सवालों से कॉलेज के प्रोफेसरों को परेशान कर देते थे. उस समय जबलपुर के डीएन जैन कॉलेज में भगवत चरण अधोलिया दर्शनशास्त्र के शिक्षक थे. लेकिन वह ओशो के सवालों से इतने परेशान हो गए कि उन्होंने कॉलेज के सामने यह शर्त रखी थी कि या तो रजनीश इस कॉलेज को छोड़ दे या वे छोड़ देंगे. लिहाजा ओशो रजनीश ने इस कॉलेज को छोड़कर सिटी कॉलेज से आगे की पढ़ाई जारी रखी. बाद में उन्होंने सागर के हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन किया.

21 मार्च को मौल श्री वृक्ष के नीचे मिली संबोधि

इसके बाद ओशो एक बार फिर जबलपुर लौट आए. इस बार उनका ठिकाना नेपियर टाउन का योगेश भवन था. उन्होंने जबलपुर के रॉबर्टसन कॉलेज में पढ़ना शुरू किया, जिसे अब महाकौशल कॉलेज के नाम से जाना जाता है. योगेश भवन जबलपुर के नेपियर टाउन में भंवर ताल गार्डन के पास में था. उन्होंने पढ़ाई तो पूरी कर ली लेकिन अब भी दर्शनशास्त्र को सिर्फ पढ़ा नहीं रहे थे, बल्कि इसके प्रयोग उन्होंने शुरू कर दिए. शुरुआत में उन्होंने शिथिल ध्यान योग का अभ्यास शुरू किया. इसमें वह घंटा ध्यान में बैठे रहते थे और भंवर ताल गार्डन के मौल श्री वृक्ष के नीचे लगातार साधना करते थे.

जबलपुर में एक वृक्ष के नीचे हुए विशेष प्रकार के अनुभव

ओशो ने अपने प्रवचन में बताया कि 21 मार्च वृक्ष के नीचे कुछ ऐसा अनुभव हुआ, इसके बाद उनके प्रवचनों में लोग खिंचे चले आने लगे. उन्हें सुनने के लिए भीड़ उमड़ने लगी. उनके साथ ध्यान करने के लिए लोग इकट्ठे होने लगे. हालांकि अभी तक उन्होंने सामान्य जीवन को नहीं छोड़ा था और वह महाकौशल कॉलेज में दर्शनशास्त्र पढ़ाते थे. इसी कॉलेज के वर्तमान प्राचार्य डॉ. एसी तिवारी बताते हैं "ओशो की पढ़ाई में भी चुंबकत्व था. ओशो की पढ़ाई और ओशो के प्रवचन सभी सवाल जवाब के सिलसिले में होते थे."

osho world greatest philosopher
कॉलेज का नाम भी ओशो के नाम पर रखने की तैयारी

सवालों के ऐसे जवाब जो किसी ने कभी नहीं सुने

छात्र उनसे सवाल पूछते थे और ओशो उनका जवाब देते थे पर ये जवाब ऐसे होते थे जिनका पहले कभी किसी ने नहीं सुना था. इन सवालों में कोई सीमा नहीं थी. दर्शनशास्त्र के अलावा लोग उनसे तरह-तरह के सवाल करते थे, जिनमें धर्म से जुड़ी बातें होती थीं. वह हिंदू, बौद्ध, ईसाई, जैन यहां तक कि कुरान पर भी तर्क रखते थे. धीरे-धीरे ओशो को मानने वालों और उनसे घृणा करने वालों का जबलपुर में भी एक बड़ा वर्ग बन गया और गांव से पढ़ने आया राजा जैन अब तक एक बड़ा दर्शनशास्त्री हो गया था और उनकी ख्याति जबलपुर के बाहर भी फैलने लगी.

जबलपुर से अमेरिका तक फैली ओशो की ख्याति

ओशो को इस बात का अनुभव हो गया था कि उनके विचार के लिए जबलपुर एक लॉन्चिंग पैड तो हो सकता है लेकिन अभी उड़ान बाकी है. इसके बाद ओशो रजनीश मुंबई गए. मुंबई से अमेरिका गए और उनके विचारों ने ऐसी क्रांति मचाई कि अमेरिका में लगभग 36 हजार एकड़ में उनके अनुयायियों ने रजनीशपुरम नाम का एक शहर बना दिया. रजनीश के बढ़ते हुए शिष्यों में अमेरिका के कई धनी लोग शामिल थे. सरकार इतनी अधिक डर गई थी कि उन्हें झूठे आरोप लगाकर अमेरिका से निकाल दिया गया. इसके बाद भी वह जीवनपर्यंत भारत के पुणे में रहे लेकिन जबलपुर से जाते-जाते उन्होंने कहा था कि जबलपुर उनकी हाड मांस और मज्जा में बसा हुआ है हालांकि भी दोबारा कभी जबलपुर नहीं लौटे.

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कॉलेज का नाम भी ओशो के नाम पर रखने की तैयारी

जबलपुर में उनकी यादों के नाम पर भंवर लाल पार्क में मौल श्री वृक्ष आज भी है. जिस रॉबर्टसन कॉलेज में भी पढ़ते थे उस कॉलेज का नाम अब महाकौशल कॉलेज कर दिया गया है और यहां के प्रिंसिपल डॉ.एसी तिवारी ने बताया "जल्द ही इस कॉलेज का नाम ओशो के नाम पर रखे जाने की तैयारी है. इस कॉलेज में जी कुर्सी पर वह बैठा करते थे, वह कुर्सी आज भी कॉलेज ने सहेज कर रखी है जिन दस्तावेजों में उन्होंने हस्ताक्षर किए थे वह हस्ताक्षर आज भी सुरक्षित हैं."

ओशो का जबलपुर से रहा गहरा नाता

जबलपुर। मोबाइल फोन पर जब भी आपने मोटिवेशनल वीडियो स्क्रोल किए होंगे तो एक नाम आता होगा, इसे ओशो रजनीश के नाम से जाना जाता है. वजनदार आवाज में जीवन के रहस्यों को बड़े ही सरल अंदाज में समझाने की कला के ज्ञाता थे वह. ओशो के कोटेशन और प्रवचन जितने आज प्रासंगिक हैं, उससे कहीं ज्यादा आज से 50 साल पहले थे. जब दुनिया ओशो की दीवानी थी. भारत से लेकर अमेरिका तक उन्हें सुनने वालों की तादाद लाखों में थी.

शुरुआत के 19 साल जबलपुर में रहे ओशो

जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार और ओशो के प्रेमी सुरेंद्र दुबे बताते हैं "ओशो का कुल जीवनकाल लगभग 6 दशक का था. इसमें से लगभग 19 साल जबलपुर में रहे. उनका जन्म कुचवाडा में हुआ था और वहां से ओशो रजनीश जिन्हें बचपन में राजा के नाम से जाना जाता था, बचपन में ही वह अपने ननिहाल गाडरवारा आ गए थे. जहां उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा हुई. ऐसा बताते हैं कि गाडरवारा में पुस्तकालय में ही वे घंटो पुस्तक पढ़ा करते थे. इसके बाद वे जबलपुर आए. यहां उनके चाचा ने उन्हें ₹70 महीने में एक अखबार में पत्रकार बना दिया."

osho world greatest philosopher
21 मार्च को मौल श्री वृक्ष के नीचे मिली थी संबोधि

कॉलेज के दिनों में अपने शिक्षकों को तर्क से हराया

इस दौरान ओशोने जबलपुर के डीएन जैन कॉलेज में दर्शनशास्त्र की पढ़ाई शुरू कर दी. ओशो रजनीश पुस्तकें बहुत पढ़ते थे. वह अपने सवालों से कॉलेज के प्रोफेसरों को परेशान कर देते थे. उस समय जबलपुर के डीएन जैन कॉलेज में भगवत चरण अधोलिया दर्शनशास्त्र के शिक्षक थे. लेकिन वह ओशो के सवालों से इतने परेशान हो गए कि उन्होंने कॉलेज के सामने यह शर्त रखी थी कि या तो रजनीश इस कॉलेज को छोड़ दे या वे छोड़ देंगे. लिहाजा ओशो रजनीश ने इस कॉलेज को छोड़कर सिटी कॉलेज से आगे की पढ़ाई जारी रखी. बाद में उन्होंने सागर के हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन किया.

21 मार्च को मौल श्री वृक्ष के नीचे मिली संबोधि

इसके बाद ओशो एक बार फिर जबलपुर लौट आए. इस बार उनका ठिकाना नेपियर टाउन का योगेश भवन था. उन्होंने जबलपुर के रॉबर्टसन कॉलेज में पढ़ना शुरू किया, जिसे अब महाकौशल कॉलेज के नाम से जाना जाता है. योगेश भवन जबलपुर के नेपियर टाउन में भंवर ताल गार्डन के पास में था. उन्होंने पढ़ाई तो पूरी कर ली लेकिन अब भी दर्शनशास्त्र को सिर्फ पढ़ा नहीं रहे थे, बल्कि इसके प्रयोग उन्होंने शुरू कर दिए. शुरुआत में उन्होंने शिथिल ध्यान योग का अभ्यास शुरू किया. इसमें वह घंटा ध्यान में बैठे रहते थे और भंवर ताल गार्डन के मौल श्री वृक्ष के नीचे लगातार साधना करते थे.

जबलपुर में एक वृक्ष के नीचे हुए विशेष प्रकार के अनुभव

ओशो ने अपने प्रवचन में बताया कि 21 मार्च वृक्ष के नीचे कुछ ऐसा अनुभव हुआ, इसके बाद उनके प्रवचनों में लोग खिंचे चले आने लगे. उन्हें सुनने के लिए भीड़ उमड़ने लगी. उनके साथ ध्यान करने के लिए लोग इकट्ठे होने लगे. हालांकि अभी तक उन्होंने सामान्य जीवन को नहीं छोड़ा था और वह महाकौशल कॉलेज में दर्शनशास्त्र पढ़ाते थे. इसी कॉलेज के वर्तमान प्राचार्य डॉ. एसी तिवारी बताते हैं "ओशो की पढ़ाई में भी चुंबकत्व था. ओशो की पढ़ाई और ओशो के प्रवचन सभी सवाल जवाब के सिलसिले में होते थे."

osho world greatest philosopher
कॉलेज का नाम भी ओशो के नाम पर रखने की तैयारी

सवालों के ऐसे जवाब जो किसी ने कभी नहीं सुने

छात्र उनसे सवाल पूछते थे और ओशो उनका जवाब देते थे पर ये जवाब ऐसे होते थे जिनका पहले कभी किसी ने नहीं सुना था. इन सवालों में कोई सीमा नहीं थी. दर्शनशास्त्र के अलावा लोग उनसे तरह-तरह के सवाल करते थे, जिनमें धर्म से जुड़ी बातें होती थीं. वह हिंदू, बौद्ध, ईसाई, जैन यहां तक कि कुरान पर भी तर्क रखते थे. धीरे-धीरे ओशो को मानने वालों और उनसे घृणा करने वालों का जबलपुर में भी एक बड़ा वर्ग बन गया और गांव से पढ़ने आया राजा जैन अब तक एक बड़ा दर्शनशास्त्री हो गया था और उनकी ख्याति जबलपुर के बाहर भी फैलने लगी.

जबलपुर से अमेरिका तक फैली ओशो की ख्याति

ओशो को इस बात का अनुभव हो गया था कि उनके विचार के लिए जबलपुर एक लॉन्चिंग पैड तो हो सकता है लेकिन अभी उड़ान बाकी है. इसके बाद ओशो रजनीश मुंबई गए. मुंबई से अमेरिका गए और उनके विचारों ने ऐसी क्रांति मचाई कि अमेरिका में लगभग 36 हजार एकड़ में उनके अनुयायियों ने रजनीशपुरम नाम का एक शहर बना दिया. रजनीश के बढ़ते हुए शिष्यों में अमेरिका के कई धनी लोग शामिल थे. सरकार इतनी अधिक डर गई थी कि उन्हें झूठे आरोप लगाकर अमेरिका से निकाल दिया गया. इसके बाद भी वह जीवनपर्यंत भारत के पुणे में रहे लेकिन जबलपुर से जाते-जाते उन्होंने कहा था कि जबलपुर उनकी हाड मांस और मज्जा में बसा हुआ है हालांकि भी दोबारा कभी जबलपुर नहीं लौटे.

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जबलपुर में उनकी यादों के नाम पर भंवर लाल पार्क में मौल श्री वृक्ष आज भी है. जिस रॉबर्टसन कॉलेज में भी पढ़ते थे उस कॉलेज का नाम अब महाकौशल कॉलेज कर दिया गया है और यहां के प्रिंसिपल डॉ.एसी तिवारी ने बताया "जल्द ही इस कॉलेज का नाम ओशो के नाम पर रखे जाने की तैयारी है. इस कॉलेज में जी कुर्सी पर वह बैठा करते थे, वह कुर्सी आज भी कॉलेज ने सहेज कर रखी है जिन दस्तावेजों में उन्होंने हस्ताक्षर किए थे वह हस्ताक्षर आज भी सुरक्षित हैं."

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