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डॉक्टर्स डे: 'धरती के ये भगवान' छुट्टी में भी करते मरीजों की सेवा, दवा के साथ उठाते पूरा खर्चा - NATIONAL DOCTORS DAY 2024 - NATIONAL DOCTORS DAY 2024

हर साल 1 जुलाई को डॉक्टर्स डे मनाया जाता है. ईटीवी भारत ने कुछ ऐसे डॉक्टर से बातचीत की, जिन्होंने सामाजिक स्तर पर नाम और इज्जत तो कमाई लेकिन, साथ ही साथ सामाजिक सरोकार भी किया.

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NATIONAL DOCTORS DAY 2024 (photo credit- Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 1, 2024, 2:06 PM IST

डॉक्टर्स डे पर ईटीवी भारत ने की कुछ ऐसे डॉक्टर से बातचीत जो मरीजो की दवा की उठाते है खर्चा (video credit- etv bharat)

लखनऊ: हर साल 1 जुलाई को डॉक्टर्स डे मनाया जाता है. स्वस्थ जीवन हर किसी की प्रियोरिटी लिस्ट में टॉप पर होता है. कहा भी गया है, कि सेहत सबसे बड़ी पूंजी है. हेल्दी व्यक्ति ही लाइफ को सही तरह से एन्जॉय कर सकता है. इसमें डॉक्टर्स का रोल बहुत अहम होता है. छोटी बड़ी हर तरह की बीमारियों को डॉक्टर्स की मदद से ठीक किया जा सकता है. शायद इसलिए, इन्हें भगवान का दर्जा मिला हुआ है. हमारे समाज में बहुत से ऐसे डॉक्टर है, जो सिर्फ मरीजों की सेवा करने के लिए ही जीते हैं. केजीएमयू बलरामपुर जैसे सरकारी संस्थानों में तमाम डॉक्टर्स ऐसे हैं, जो छुट्टी के दिन भी मरीज के ऑपरेशन या इलाज के लिए संस्थान आते हैं. यहां तक, कि अगर मरीज के पास दवा लेने का पैसा नहीं होता है, तो वह मरीज को दवा खरीद कर भी देते हैं और पूरा इलाज का खर्चा भी खुद उठाते हैं.

सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर दीप्ति सिंह ने बताया, कि "डॉक्टर बनाना एक सपना ही था माता-पिता के चाहते थे और उन्हीं के सपनों को पूरा करने के लिए पूरी मेहनत की. इस क्षेत्र में परिजनों का साथ रहना बहुत जरूरी होता है खासकर शादी के बाद चीजों को मैनेज करने में समस्या आती है. लेकिन, मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. मेरे पति खुद एक चिकित्सक है, जो हमेशा मेरा सहयोग करते हैं. विभाग में मरीज को देखना एक ड्यूटी नहीं, बल्कि कर्तव्य है. जिसे हम पूरी शिद्दत से करते हैं. कोरोना काल में ऐसा समय था, जब सात से आठ दिन तक बच्चों से नहीं मिल पाए थे. यहां तक की घर पर मेड भी नहीं थी. उस समय हमने अपने कर्तव्य को सबसे ऊपर रखा. बहुत सारे मरीज हैं जो ठीक होकर जाते हैं."

सिविल अस्पताल के सीएमएस डॉक्टर राजेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया, कि कुछ पेरेंट्स का भी सपना था और अपना भी सपना था.बिना घर वालों के सहयोग के यह क्षेत्र में कोई आगे नहीं बढ़ सकता है. क्योंकि, इसमें बहुत समय लगता है और समय लगने के साथ-साथ इस क्षेत्र में होते हुए परिवार को टाइम न दे पाना भी एक बड़ा दुख है. इमरजेंसी में कभी भी कॉल आता है, तो मरीज को देखने तुरंत जाना होता है. कभी-कभी हम 18 घंटे की ड्यूटी करते थे, कभी नाइट ड्यूटी के बाद फिर वापस ड्यूटी पर आना होता था. मरीज को देखना हमारी प्राथमिकता है. वर्ष 2011 में एक मरीज इलाज के लिए आया. उसे 14 बार डिफेट किया गया. वह मरीज अब पूरी तरह से ठीक हो चुका है. उसने नायाब अखबार लांच किया है. जिसमें उसने हम सभी डॉक्टरों की फोटो लगाई, जो हमेशा हमें याद रहेगा.

इसे भी पढ़े-'रेजिलिएंस एंड हीलिंग हैंड्स' थीम पर मनाया जा रहा राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस - National Doctor Day

बलरामपुर अस्पताल के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. एएन उस्मानी ने बताया, कि माता-पिता और मेरा खुद का भी निर्णय था, कि मुझे चिकित्सा क्षेत्र में ही आगे बढ़ाना है. क्योंकि, मैं हमेशा से चाहता था कि मैं दूसरों की मदद कर सकूं. यही एक ऐसा क्षेत्र है जिसके जरिए मैं आम जनता से संपर्क में रहता हूं और उनकी मदद कर पाता हूं. चाहे वह मदद किसी भी प्रकार की हो. कोशिश करता हूं, कि उनका इलाज हो सकें और वह स्वस्थ हो. एक डॉक्टर से बेहतर कोई और दूसरा क्षेत्र मुझे समझ नहीं आया. बता देगी डॉक्टर उस्मानी एक ऐसे चिकित्सक है, जो गरीब मरीजों की काफी मदद करते हैं. बहुत सारे ऐसे मरीज आते हैं, जो आर्थिक तौर पर कमजोर होते हैं, उनका इलाज का खर्चा या फिर दवा का खर्चा वह खुद उठाते हैं. वंचित लोगों की मदद करने के लिए इससे अच्छा रास्ता कोई और नहीं है.

केजीएमयू के पेडियाट्रिक सर्जन प्रोफेसर सन कोरियर ने बताया, कि जब मैं बोलना नहीं शुरू किया था तब से मैंने यह निर्णय कर लिया था कि मुझे डॉक्टर ही बना है. डॉक्टर बनने के बाद मैंने कोशिश किया कि जो भी वंचित लोग हैं उन्हें इलाज मिल सके. यहां तक की छोटे बच्चों की पेशाब की थैली खुली होने के कारण उन्हें काफी दिक्कतें होती थी. यह एक बड़ी समस्या थी. जिसका कोई इलाज नहीं था. इसके लिए मैंने रिसर्च की. मुझे इसमें सफलता मिली. इसके लिए मुझे नेशनल अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. उन्होंने बताया, कि एक ऐसी मैरिज थी जिसकी उम्र 18 साल थी, उसे पेशाब की थैली में समस्या थी. उसका यूरिन कंट्रोल नहीं होता था. कई बार उसका ऑपरेशन हो चुका था. लेकिन, ऑपरेशन सफल नहीं होने के कारण बच्ची की स्थिति जस की थी. उसे बच्ची का ऑपरेशन मैं खुद किया था और उसके बाद बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ हो गई. कुछ साल बाद उसकी शादी हुई.

केजीएमयू के गठिया रोग विभाग के विभाग अध्यक्ष प्रो. पुनीत कुमार ने बताया, कि जब मैं कक्षा 8 में आया उस समय मैं एक फिल्म देखी थी. वह दूसरे विश्व युद्ध पर बनी थी, जिसमें राजेंद्र कुमार आर्मी में एक सर्जन के तौर पर एक्टिंग कर रहे थे. वहीं से मैंने यह सोच लिया था कि मुझे डॉक्टर बनना है. 12वीं के बाद सिलेक्शन हुआ और केजीएमयू में दाखिला लिया यहां से पूरी पढ़ाई कंप्लीट की. एमबीबीएस के दूसरे सत्र में स्टूडेंट को मरीज एलॉट होते थे और वह उनको देखते थे. उस समय मुझे पता चला कि जिस मरीज को मैं देख रहा हूं, उसे कैंसर के लक्षण है. उसके बाद में अपने हॉस्टल पहुंच रूम में मैं पूजा पाठ शुरू कर दी. ईश्वर से कहने लगा कि भगवान मेरे मरीज को बचा लो. अभी उसकी पूरी जिंदगी बची हुई है. उसके छोटे-छोटे बच्चे हैं. मरीज की रिपोर्ट में कैंसर न निकले. इस तरह से प्रार्थना करने लगा. अगले दिन जब कैंपस पहुंचा और मरीज की रिपोर्ट देखी तो मरीज की रिपोर्ट नॉर्मल थी. मरीज को कैंसर नहीं था. वह किस्सा मुझे आज तक याद है. क्योंकि, वह मेरा पहला मरीज था और उसके लिए मैं भगवान से प्रार्थना की थी. यही कोशिश रहती है, कि मरीज की पूरी मदद हो सकें.

यह भी पढ़े-आगरा के लिए अच्छी खबर; एयरपोर्ट पर 343 करोड़ से बनेगा नया टर्मिनल, 32 चेक-इन काउंटर, 3 बैगेज बेल्ट, 4 एयरोब्रिज, बढ़ेंगी यात्री सुविधाएं - Agra Airport New terminal building

डॉक्टर्स डे पर ईटीवी भारत ने की कुछ ऐसे डॉक्टर से बातचीत जो मरीजो की दवा की उठाते है खर्चा (video credit- etv bharat)

लखनऊ: हर साल 1 जुलाई को डॉक्टर्स डे मनाया जाता है. स्वस्थ जीवन हर किसी की प्रियोरिटी लिस्ट में टॉप पर होता है. कहा भी गया है, कि सेहत सबसे बड़ी पूंजी है. हेल्दी व्यक्ति ही लाइफ को सही तरह से एन्जॉय कर सकता है. इसमें डॉक्टर्स का रोल बहुत अहम होता है. छोटी बड़ी हर तरह की बीमारियों को डॉक्टर्स की मदद से ठीक किया जा सकता है. शायद इसलिए, इन्हें भगवान का दर्जा मिला हुआ है. हमारे समाज में बहुत से ऐसे डॉक्टर है, जो सिर्फ मरीजों की सेवा करने के लिए ही जीते हैं. केजीएमयू बलरामपुर जैसे सरकारी संस्थानों में तमाम डॉक्टर्स ऐसे हैं, जो छुट्टी के दिन भी मरीज के ऑपरेशन या इलाज के लिए संस्थान आते हैं. यहां तक, कि अगर मरीज के पास दवा लेने का पैसा नहीं होता है, तो वह मरीज को दवा खरीद कर भी देते हैं और पूरा इलाज का खर्चा भी खुद उठाते हैं.

सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर दीप्ति सिंह ने बताया, कि "डॉक्टर बनाना एक सपना ही था माता-पिता के चाहते थे और उन्हीं के सपनों को पूरा करने के लिए पूरी मेहनत की. इस क्षेत्र में परिजनों का साथ रहना बहुत जरूरी होता है खासकर शादी के बाद चीजों को मैनेज करने में समस्या आती है. लेकिन, मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. मेरे पति खुद एक चिकित्सक है, जो हमेशा मेरा सहयोग करते हैं. विभाग में मरीज को देखना एक ड्यूटी नहीं, बल्कि कर्तव्य है. जिसे हम पूरी शिद्दत से करते हैं. कोरोना काल में ऐसा समय था, जब सात से आठ दिन तक बच्चों से नहीं मिल पाए थे. यहां तक की घर पर मेड भी नहीं थी. उस समय हमने अपने कर्तव्य को सबसे ऊपर रखा. बहुत सारे मरीज हैं जो ठीक होकर जाते हैं."

सिविल अस्पताल के सीएमएस डॉक्टर राजेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया, कि कुछ पेरेंट्स का भी सपना था और अपना भी सपना था.बिना घर वालों के सहयोग के यह क्षेत्र में कोई आगे नहीं बढ़ सकता है. क्योंकि, इसमें बहुत समय लगता है और समय लगने के साथ-साथ इस क्षेत्र में होते हुए परिवार को टाइम न दे पाना भी एक बड़ा दुख है. इमरजेंसी में कभी भी कॉल आता है, तो मरीज को देखने तुरंत जाना होता है. कभी-कभी हम 18 घंटे की ड्यूटी करते थे, कभी नाइट ड्यूटी के बाद फिर वापस ड्यूटी पर आना होता था. मरीज को देखना हमारी प्राथमिकता है. वर्ष 2011 में एक मरीज इलाज के लिए आया. उसे 14 बार डिफेट किया गया. वह मरीज अब पूरी तरह से ठीक हो चुका है. उसने नायाब अखबार लांच किया है. जिसमें उसने हम सभी डॉक्टरों की फोटो लगाई, जो हमेशा हमें याद रहेगा.

इसे भी पढ़े-'रेजिलिएंस एंड हीलिंग हैंड्स' थीम पर मनाया जा रहा राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस - National Doctor Day

बलरामपुर अस्पताल के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. एएन उस्मानी ने बताया, कि माता-पिता और मेरा खुद का भी निर्णय था, कि मुझे चिकित्सा क्षेत्र में ही आगे बढ़ाना है. क्योंकि, मैं हमेशा से चाहता था कि मैं दूसरों की मदद कर सकूं. यही एक ऐसा क्षेत्र है जिसके जरिए मैं आम जनता से संपर्क में रहता हूं और उनकी मदद कर पाता हूं. चाहे वह मदद किसी भी प्रकार की हो. कोशिश करता हूं, कि उनका इलाज हो सकें और वह स्वस्थ हो. एक डॉक्टर से बेहतर कोई और दूसरा क्षेत्र मुझे समझ नहीं आया. बता देगी डॉक्टर उस्मानी एक ऐसे चिकित्सक है, जो गरीब मरीजों की काफी मदद करते हैं. बहुत सारे ऐसे मरीज आते हैं, जो आर्थिक तौर पर कमजोर होते हैं, उनका इलाज का खर्चा या फिर दवा का खर्चा वह खुद उठाते हैं. वंचित लोगों की मदद करने के लिए इससे अच्छा रास्ता कोई और नहीं है.

केजीएमयू के पेडियाट्रिक सर्जन प्रोफेसर सन कोरियर ने बताया, कि जब मैं बोलना नहीं शुरू किया था तब से मैंने यह निर्णय कर लिया था कि मुझे डॉक्टर ही बना है. डॉक्टर बनने के बाद मैंने कोशिश किया कि जो भी वंचित लोग हैं उन्हें इलाज मिल सके. यहां तक की छोटे बच्चों की पेशाब की थैली खुली होने के कारण उन्हें काफी दिक्कतें होती थी. यह एक बड़ी समस्या थी. जिसका कोई इलाज नहीं था. इसके लिए मैंने रिसर्च की. मुझे इसमें सफलता मिली. इसके लिए मुझे नेशनल अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. उन्होंने बताया, कि एक ऐसी मैरिज थी जिसकी उम्र 18 साल थी, उसे पेशाब की थैली में समस्या थी. उसका यूरिन कंट्रोल नहीं होता था. कई बार उसका ऑपरेशन हो चुका था. लेकिन, ऑपरेशन सफल नहीं होने के कारण बच्ची की स्थिति जस की थी. उसे बच्ची का ऑपरेशन मैं खुद किया था और उसके बाद बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ हो गई. कुछ साल बाद उसकी शादी हुई.

केजीएमयू के गठिया रोग विभाग के विभाग अध्यक्ष प्रो. पुनीत कुमार ने बताया, कि जब मैं कक्षा 8 में आया उस समय मैं एक फिल्म देखी थी. वह दूसरे विश्व युद्ध पर बनी थी, जिसमें राजेंद्र कुमार आर्मी में एक सर्जन के तौर पर एक्टिंग कर रहे थे. वहीं से मैंने यह सोच लिया था कि मुझे डॉक्टर बनना है. 12वीं के बाद सिलेक्शन हुआ और केजीएमयू में दाखिला लिया यहां से पूरी पढ़ाई कंप्लीट की. एमबीबीएस के दूसरे सत्र में स्टूडेंट को मरीज एलॉट होते थे और वह उनको देखते थे. उस समय मुझे पता चला कि जिस मरीज को मैं देख रहा हूं, उसे कैंसर के लक्षण है. उसके बाद में अपने हॉस्टल पहुंच रूम में मैं पूजा पाठ शुरू कर दी. ईश्वर से कहने लगा कि भगवान मेरे मरीज को बचा लो. अभी उसकी पूरी जिंदगी बची हुई है. उसके छोटे-छोटे बच्चे हैं. मरीज की रिपोर्ट में कैंसर न निकले. इस तरह से प्रार्थना करने लगा. अगले दिन जब कैंपस पहुंचा और मरीज की रिपोर्ट देखी तो मरीज की रिपोर्ट नॉर्मल थी. मरीज को कैंसर नहीं था. वह किस्सा मुझे आज तक याद है. क्योंकि, वह मेरा पहला मरीज था और उसके लिए मैं भगवान से प्रार्थना की थी. यही कोशिश रहती है, कि मरीज की पूरी मदद हो सकें.

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