नरसिंहपुर : जिले के गाडरवारा क्षेत्र में इस बुजुर्ग ने जब जीते जी खुद की तेरहवीं का कार्ड छपवाया और दोस्तों व दूर के रिश्तेदारों को भेजा तो लोगों को समझ में नहीं आया कि आखिर ये हो क्या रहा है. बुजुर्ग स्वामी परसराम साहू ने जो कार्यक्रम किया उसका नाम '' मृत्यु पूर्व उत्सव '' रखा गया. उन्होंने इस अवसर पर कहा कि मृत्यु ही अटल सत्य है तो क्यों ना इसे एक उत्सव की तरह मनाया जाए. बस इसी बात को लेकर अपना मृत्यु उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया. इस उत्सव में उन्होंने स्नेह भोज का कार्यक्रम रखा, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए.
गीत-संगीत के साथ मृत्यु पूर्व उत्सव
बुजुर्ग ने अपनी मौत के जश्न में लोगों के लिए स्नेह भोज के साथ-साथ भजन संध्या व गीत-संगीत की भी व्यवस्था की. यहां कार्यक्रम में गीतों पर झूमते हुए उनके मित्रों ने मृत्यु पूर्व उत्सव धूमधाम से मनाया. इस दौरान बड़ी संख्या में क्षेत्रवासी कार्यक्रम में मौजूद रहे. बुजुर्ग ने बाकायदा अपने मृत्यु पूर्व उत्सव के बैनर भी छपवाए, जिन्हें देख कुछ लोग हैरान रह गए.
जन्मतिथि के हिसाब से नर्मदा में किया पिंडदान
बुजुर्ग परशुराम साहू के दोस्त घनश्याम राजपूत ने बताया, '' मौत एक दिन सबको आनी है, हमको भी आएगी. हमारा मृत्यु के बाद कार्यक्रम कौन करेगा? ऐसा सोचकर परशुराम के सहयोगियों ने उनकी इच्छा अनुसार मृत्यु के पहले मृत्यु उत्सव मनाने का विचार बनाया. इसके बाद धार्मिक रीति-रिवाज को ध्यान में रखते हुए परशुराम साहू की जन्म तारीख के हिसाब से श्राद्ध पक्ष में मां नर्मदा के घाट पर जाकर परशुराम साहू का पिंडदान किया गया. उसके बाद सभी ने परशुराम का मृत्यु उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया.''
मौत के पहले मरने का जश्न, मृत्युभोज में शामिल हुए लोग
बुजुर्ग परशुराम साहू के मित्र घनश्याम आगे बताते हैं कि परशुराम के कोई करीबी रिश्तेदार नहीं हैं, इसलिए उन्होंने स्वयं जीते जी पिंडदान कराया और अपनी मौत का जश्न मनाया. इसके बाद उन्होंने क्षेत्र के लोगों और दूर के रिश्तेदारों को मृत्यु भोज भी दिया.'' इसपर परशुराम कहते हैं, '' जब हम जीने का जश्न मनाते हैं तो मौत का क्यों नहीं? मरने के पहले ही मैंने देख लिया कितने लोग मेरी मौत की खुशियों में शामिल हुए. इस कार्यक्रम में मैंने अपनी इच्छा भी पूरी कर लिया.''