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183 साल का हुआ नैनीताल, लोगों ने केक काटकर मनाया जन्मदिन, जानें कैसे और किसने की थी खोज

आज सरोवर नगरी नैनीताल का 183वां जन्मदिन है. लोगों ने केक काटकर नैनीताल के स्थापना दिवस को धूमधाम से मनाया.

HAPPY BIRTHDAY NAINITAL
लोगों ने केक काटकर मनाया नैनीताल का जन्मदिन (PHOTO- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 2 hours ago

Updated : 1 hours ago

नैनीतालः सरोवर नगरी नैनीताल का 183वां जन्मदिन स्थानीय लोगों ने हर्ष और उल्लास के साथ मनाया. नैनीताल के जन्मदिवस के मौके पर शहर के प्राइवेट स्कूल के प्रांगण में जन्मदिन कार्यक्रम का आयोजन किया. कार्यक्रम में तमाम होटल व्यवसायियों, स्कूली छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया. सभी लोगों ने संयुक्त रूप से करीब एक दर्जन से अधिक केक काटकर नैनीताल का जन्मदिन धूमधाम से मनाया.

ऐसे हुई थी नैनीताल की खोज: आज के ही दिन 1841 में विदेशी व्यापारी पीटर बैरन ने नैनीताल की खोज की थी. कुमाऊं विश्वविद्यालय के इतिहास के पूर्व डॉक्टर प्रोफेसर अजय रावत बताते हैं कि व्यापारी पीटर बैरन ने अपनी किताब 'नैनीताल की खोज' में लिखा है कि, पीटर बैरन 1841 में इस स्थान पर घूमने आए, जो उन्हें खूब पसंद आया. इसके बाद उन्होंने यहां पर अपना साम्राज्य स्थापित करने का फैसला किया. पीटर बैरन ने इस इलाके के थोकदार से इस सारे इलाके को खरीदना चाहते थे. पहले तो थोकदार नूरसिंह बेचने के लिए तैयार हो गए. परंतु बाद में उन्होंने इस क्षेत्र को बेचने से मना कर दिया. बैरन क्षेत्र से इतने प्रभावित थे कि वह हर कीमत पर नैनीताल के इस सारे इलाके को अपने कब्जे में लेकर सुन्दर नगर बसाने की योजना बना चुके थे.

लोगों ने केक काटकर मनाया नैनीताल का जन्मदिन (VIDEO-ETV Bharat)

जब थोकदार नूरसिंह ने इस इलाके को बेचने से इनकार किया तो एक दिन बैरन अपनी कश्ती में बिठाकर नूरसिंह को नैनीताल के ताल में घुमाने के लिए ले गए. और बीच ताल में ले जाकर उन्होंने नूरसिंह से कहा कि तुम इस पूरे क्षेत्र को बेचने के लिए मुंहमांगी कीमत ले लो. लेकिन अगर तुमने इस क्षेत्र को बेचने से मना किया तो मैं तुमको इसी ताल में डूबो दूंगा. डूबने के भय से नूरसिंह ने स्टाम्प पेपर पर दस्तखत कर दिए और बाद में बैरन की कल्पना का नगर नैनीताल बस गया.

भूंकप से हो गया था तबाह: गौरतलब है कि पीटर बैरन द्धारा 1841 में नैनीताल खोज के बाद यहां बस्ती बसनी शुरू हो गई थी. लेकिन 18 सितंबर 1880 को आए विनाशकारी भूकंप ने अंग्रजों को भी हिलाकर रख दिया था. जिसमें 151 लोग जमींदोज हो गए थे. भूकंप के कारण झील के काफी बड़े हिस्से में मलबा आ गया. जिस कारण फ्लैट्स मैदान का निर्माण हो गया. जिसमें आज विभिन्न खेल प्रतियोगिताएं होती हैं. 1880 में विनाशकारी भूकंप के बाद अंग्रेजों ने इस शहर को दोबारा सहेजने की कवायद की. कमजोर पहाड़ियों को भूस्खलन से रोकने के लिए 64 छोटे-बड़े नालों का निमार्ण कराया गया. जिनकी लंबाई एक लाख 6 हजार 499 फीट है. शहर के जानकार मानते हैं कि इन्हीं नालों की वजह से शहर आज भी कायम है.

नैनीझील इस शहर का प्रमुख आर्कषण है. जहां देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर के सैलानी आकर खूब लुत्फ उठाते हैं. सैर सपाटे के अलावा यह नगर अच्छे स्कूलों के लिए देश भर में अहम स्थान रखता है. टिफिन टॉप, हिमालय दर्शन, चायना पीक कई दर्शनीय स्थल यहां मौजूद हैं. इसके अलावा दर्जनों ऐतिहासिक इमारतें आज भी ब्रिटिश काल की याद दिलाती हैं.

ये भी पढ़ेंः जानें कौन थे नैनीताल की खोज करने वाले पीटर बैरन, 178 साल पहले ऐसे हुआ था इस शहर का सौदा

नैनीतालः सरोवर नगरी नैनीताल का 183वां जन्मदिन स्थानीय लोगों ने हर्ष और उल्लास के साथ मनाया. नैनीताल के जन्मदिवस के मौके पर शहर के प्राइवेट स्कूल के प्रांगण में जन्मदिन कार्यक्रम का आयोजन किया. कार्यक्रम में तमाम होटल व्यवसायियों, स्कूली छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया. सभी लोगों ने संयुक्त रूप से करीब एक दर्जन से अधिक केक काटकर नैनीताल का जन्मदिन धूमधाम से मनाया.

ऐसे हुई थी नैनीताल की खोज: आज के ही दिन 1841 में विदेशी व्यापारी पीटर बैरन ने नैनीताल की खोज की थी. कुमाऊं विश्वविद्यालय के इतिहास के पूर्व डॉक्टर प्रोफेसर अजय रावत बताते हैं कि व्यापारी पीटर बैरन ने अपनी किताब 'नैनीताल की खोज' में लिखा है कि, पीटर बैरन 1841 में इस स्थान पर घूमने आए, जो उन्हें खूब पसंद आया. इसके बाद उन्होंने यहां पर अपना साम्राज्य स्थापित करने का फैसला किया. पीटर बैरन ने इस इलाके के थोकदार से इस सारे इलाके को खरीदना चाहते थे. पहले तो थोकदार नूरसिंह बेचने के लिए तैयार हो गए. परंतु बाद में उन्होंने इस क्षेत्र को बेचने से मना कर दिया. बैरन क्षेत्र से इतने प्रभावित थे कि वह हर कीमत पर नैनीताल के इस सारे इलाके को अपने कब्जे में लेकर सुन्दर नगर बसाने की योजना बना चुके थे.

लोगों ने केक काटकर मनाया नैनीताल का जन्मदिन (VIDEO-ETV Bharat)

जब थोकदार नूरसिंह ने इस इलाके को बेचने से इनकार किया तो एक दिन बैरन अपनी कश्ती में बिठाकर नूरसिंह को नैनीताल के ताल में घुमाने के लिए ले गए. और बीच ताल में ले जाकर उन्होंने नूरसिंह से कहा कि तुम इस पूरे क्षेत्र को बेचने के लिए मुंहमांगी कीमत ले लो. लेकिन अगर तुमने इस क्षेत्र को बेचने से मना किया तो मैं तुमको इसी ताल में डूबो दूंगा. डूबने के भय से नूरसिंह ने स्टाम्प पेपर पर दस्तखत कर दिए और बाद में बैरन की कल्पना का नगर नैनीताल बस गया.

भूंकप से हो गया था तबाह: गौरतलब है कि पीटर बैरन द्धारा 1841 में नैनीताल खोज के बाद यहां बस्ती बसनी शुरू हो गई थी. लेकिन 18 सितंबर 1880 को आए विनाशकारी भूकंप ने अंग्रजों को भी हिलाकर रख दिया था. जिसमें 151 लोग जमींदोज हो गए थे. भूकंप के कारण झील के काफी बड़े हिस्से में मलबा आ गया. जिस कारण फ्लैट्स मैदान का निर्माण हो गया. जिसमें आज विभिन्न खेल प्रतियोगिताएं होती हैं. 1880 में विनाशकारी भूकंप के बाद अंग्रेजों ने इस शहर को दोबारा सहेजने की कवायद की. कमजोर पहाड़ियों को भूस्खलन से रोकने के लिए 64 छोटे-बड़े नालों का निमार्ण कराया गया. जिनकी लंबाई एक लाख 6 हजार 499 फीट है. शहर के जानकार मानते हैं कि इन्हीं नालों की वजह से शहर आज भी कायम है.

नैनीझील इस शहर का प्रमुख आर्कषण है. जहां देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर के सैलानी आकर खूब लुत्फ उठाते हैं. सैर सपाटे के अलावा यह नगर अच्छे स्कूलों के लिए देश भर में अहम स्थान रखता है. टिफिन टॉप, हिमालय दर्शन, चायना पीक कई दर्शनीय स्थल यहां मौजूद हैं. इसके अलावा दर्जनों ऐतिहासिक इमारतें आज भी ब्रिटिश काल की याद दिलाती हैं.

ये भी पढ़ेंः जानें कौन थे नैनीताल की खोज करने वाले पीटर बैरन, 178 साल पहले ऐसे हुआ था इस शहर का सौदा

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