बेतिया: यूपी और बिहार सीमा से सटे वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के मदनपुर जंगल में एक प्रसिद्ध देवी मंदिर है, जहां मां दुर्गा पिंडी रूप में विराजमान हैं. यह मंदिर सदियों से नेपाल, बिहार और यूपी के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. इस स्थान से देवी मां के भक्त रहसू गुरू की कई कथाएं प्रचलित हैं.
मंदिर के पीछे की मान्यता: मंदिर के पुजारी और बाबा हरिचरण दास के भक्त ललन दास बताते हैं कि मदनपुर देवी स्थान पर पहले घनघोर जंगल हुआ करता था. यह दुर्गम इलाका राजा मदन सिंह के राज्याधीन था. एक बार जंगल में शिकार करते-करते राजा इस स्थान पर पहुंचे, तो उनको पता चला कि यहां रहसू गुरू साधु बाघों के गले में सांप बांधकर पतहर (खर पतवार) की मड़ाई (दंवरी) करवाते हैं.
राजा ने की मां दुर्गा को देखने की जिद: वहीं उसमें से कनकजीर (सुगंधित धान की प्रजाति) निकलता है. उसको प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं और उसी से भोजन बनाते हैं. जिसके बाद राजा को घोर आश्चर्य हुआ. नतीजतन सच्चाई जानने के लिए राजा सैनिकों के साथ देवी स्थान पहुंचे तो नजारा देख कर हैरत में पड़ गए. राजा ने जिद करते हुए साधु रहसू गुरु से देवी जी को बुलाकर साक्षात दिखाने का आदेश दिया.
राजा के जिद पर साधु ने मां को बुलाया: ललन दास ने बताया कि 'साधु ने राजा को समझाते हुए कहा की इस जिद से यदि देवी कुपित हुईं तो आपके राजपाट का सर्वनाश हो जाएगा. समझाने के बाद भी राजा मदन सिंह जिद पर अड़े रहे. जब साधु के जान पर बन आई तो भारी मन से उन्होंने देवी का आह्वान किया. कहा जाता है कि मां जगदंबा असम के कामख्या से चली और खंहवार नामक स्थान होते हुए पटनदेवी और फिर वहां से थावें पहुंची.'
साधु की बात नहीं मानने पर सर्वनाश: उन्होंने बताया कि देवी के थावे स्थान पहुंचने के बाद रहसु गुरु ने राजा को फिर चेताया, लेकिन राजा नहीं मानें. इसके बाद अचानक भक्त रहसू का सिर फटा और देवी मां का हाथ कंगन सहित बाहर दिखाई दिया. रहसु गुरु के प्राण तो गए ही, राजा भी देवी के तेज को सहन नहीं कर पाए और जमीन पर गिरने के बाद फिर कभी नहीं उठे. बाद में राजा का परिवार व सारा साम्राज्य नष्ट हो गया.
पिंडी रूप में स्थापित हुई मां: इस घटना के बाद यहां देवी मां पिंडी के रूप में स्थापित हो गई. कालांतर में हरिचरण नामक व्यक्ति की नजर पिंडी पर पड़ी. उसने देखा कि एक गाय पिंडी पर अपना दूध गिरा रही है, तो उन्होंने पिंडी के आसपास सफाई कर पूजा करना शुरू कर दिया. कहा जाता है कि हरिचरण के भक्ति से प्रसन्न देवी मां ने रखवाली के लिए एक बाघ प्रदान किया जो उनके साथ रहता था. धीरे-धीरे इसकी चर्चा चारों तरफ फैलती गई और यह स्थान लोगों के आस्था का बड़ा केंद्र बन गया.
"साधु के आह्वान पर मां आई, लेकिन उनके आक्रोश से राजा का सब कुछ नष्ट हो गया. जिसके बाद मां पिंडी के रूप में विराजमान हो गई. जिसके बाद से इस स्थान की मान्यता बढ़ गई. यहां मां भगवी के पिंडी रूप के दर्शन के लिए दूर-दराज से लोग यहां पहुंच कर अपनी मन्नतें मांगते हैं." - बाबा ललन दास, हरिचरण दास के भक्त
मां के दरबार में हाजरी लगाते हैं बाघ: बाबा हरिचरण दास के पोता जितेंद्र दास बताते हैं कि मेरे दादा के पास एक बाघ हमेशा चक्कर काटता रहता था. वह उसे छड़ी से मारकर भगाते थे, फिर भी नहीं भागता था. बाद में उसे रेंजर को सौंप दिया गया. आज भी माता के इस दरबार में मां का वाहन बाघ प्रतिदिन अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं.
"रात के समय यहां किसी को रुकने को अनुमति नहीं दी जाती है. मंदिर के पुजारी संध्या भोग लगाने के बाद धरती के नीचे बने सुरंगनुमा निवास कोच में चले जाते हैं और सुबह ही पूजा अर्चना करने के लिए बाहर निकलते हैं."- जितेंद्र दास, बाबा हरिचरण दास के पोता
देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी के इस दरबार में जो कोई भी सच्चे मन से पूजा-अर्चना करता है और अपनी मनोकामना मांगता है, उसकी पूर्ति शीघ्र होती है. वे कभी निराश होकर नहीं लौटते हैं. यहीं वजह है कि नेपाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु देवी दर्शन के साथ ही शादी, विवाह, मुंडन आदि धार्मिक कार्य करने यहां आते हैं. नवरात्र के समय भारी मेला लगता है और लोग नारियल चढ़ाने के साथ-साथ बकरे की बलि देते हैं.
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