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मध्य प्रदेश के सरकारी अस्पतालों को प्राइवेट करने की तैयारी, स्वास्थ्य संगठनों ने खोला मोर्चा - MP GOVT HEALTH SERVICES PRIVATIZE

सरकार प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों को प्राइवेट करने की तैयारी शुरू कर चुकी है. स्वास्थ्य संगठनों ने इस फैसले का विरोध किया है.

MP GOVT HEALTH SERVICES PRIVATIZE
मध्य प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों को प्राइवेट करने की तैयारी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 27, 2024, 4:18 PM IST

भोपाल: मध्य प्रदेश के सभी सरकारी जिला अस्पताल उनसे जुड़े मेडिकल कॉलेज और 348 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को प्रदेश सरकार प्राइवेट हाथों में देने की तैयारी कर रही है. इन सभी स्वास्थ्य संस्थाओं का प्रबंधन, संचालन और मेंटेनेंस की जिम्मेदारी प्राइवेट हाथों में सौंपी जाएगी. इसको लेकर टेंडर प्रक्रिया शुरू हो गई है. स्वास्थ्य विभाग से जुडे तमाम संगठनों ने एक साथ मिलकर सरकार के इस कदम का विरोध जताया है. संगठनों ने आरोप लगाया है कि सरकार के इस फैसले से नुकसान सिर्फ आम मरीजों को होगा. सरकार द्वारा शुरू की गई टेंडर प्रक्रिया में प्रावधान किया जा रहा है कि इसमें 50 फीसदी मरीजों का ही मुफ्त में इलाज होगा.

संगठन ने बताई विरोध की वजह

यूनाइटेड ऑर्गेनाइजेशन फॉर एक्शन अगेंस्ट प्राइवेटाइजेशन ऑफ हेल्थ सर्विसेस के पदाधिकारी डॉ राकेश मालवीय के मुताबिक "सरकारी जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी हाथों में सौंपे जाने की प्रक्रिया पहले भी कई राज्यों में हो चुकी है और उन राज्यों में यह प्रक्रिया पूरी तरह से फेल हो चुकी है. सरकार पूरी तरह से इलाज देने की गारंटी की जवाबदारी से पीछे क्यों हट रही है. सरकार के पास फंड, मैनपॉवर या इच्छाशक्ति की कमी है. सरकार क्या किसी औद्योगिक घराने को फायदा देने जा रही है. सरकार के इस पीपीपी मोड से गरीब मरीजों का कोई फायदा नहीं होने वाला इससे फायदा सिर्फ उद्योगपति को ही फायदा होगा."

स्वास्थ्य संगठनों ने सरकार के फैसले पर जताया विरोध (ETV Bharat)

विरोध में उतरे डॉक्टर्स

पदाधिकारी डॉ राकेश मालवीय का कहना है कि "सरकार द्वारा जारी की गई टेंडर प्रक्रिया में प्रावधान किया गया है कि 50 फीसदी मरीजों को मुफ्त में जबकि 50 फीसदी मरीजों को इलाज के लिए पैसे देने होंगे. जबकि आज सभी जिला सरकारी अस्पताल में सभी का मुफ्त में इलाज होता है. इतने बड़े निर्णय लेने के पहले सरकार द्वारा स्वास्थ्य विभाग से जुड़े किसी भी संगठनों से चर्चा नहीं की है. यह प्रक्रिया पूरी तरह से गलत हो रही है, इसे सरकार को तत्काल रोकना चाहिए. सरकार एक तरफा गलत निर्णय लेकर काम नहीं कर सकती. सरकार को चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े संगठनों से इसको लेकर चर्चा करनी होगी, इसके बाद ही आगे कदम बढ़ाना होगा."

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'सरकार ने नहीं बताई वजह'

जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय सह संयोजक अमूल्य निधि ने कहा कि "सरकार द्वारा यह नहीं बताया गया कि आखिर सरकारी जिला अस्पतालों और सीएसई को प्राइवेट हाथों में क्यों सौंपा जा रहा है और इससे स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में क्या सुधार होगा. बता दें कि हाल ही में उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने मुख्य सचिव अनुराग जैन से मुलाकात की थी और इसमें स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े तमाम मुद्दों को लेकर चर्चा की गई थी."

भोपाल: मध्य प्रदेश के सभी सरकारी जिला अस्पताल उनसे जुड़े मेडिकल कॉलेज और 348 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को प्रदेश सरकार प्राइवेट हाथों में देने की तैयारी कर रही है. इन सभी स्वास्थ्य संस्थाओं का प्रबंधन, संचालन और मेंटेनेंस की जिम्मेदारी प्राइवेट हाथों में सौंपी जाएगी. इसको लेकर टेंडर प्रक्रिया शुरू हो गई है. स्वास्थ्य विभाग से जुडे तमाम संगठनों ने एक साथ मिलकर सरकार के इस कदम का विरोध जताया है. संगठनों ने आरोप लगाया है कि सरकार के इस फैसले से नुकसान सिर्फ आम मरीजों को होगा. सरकार द्वारा शुरू की गई टेंडर प्रक्रिया में प्रावधान किया जा रहा है कि इसमें 50 फीसदी मरीजों का ही मुफ्त में इलाज होगा.

संगठन ने बताई विरोध की वजह

यूनाइटेड ऑर्गेनाइजेशन फॉर एक्शन अगेंस्ट प्राइवेटाइजेशन ऑफ हेल्थ सर्विसेस के पदाधिकारी डॉ राकेश मालवीय के मुताबिक "सरकारी जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी हाथों में सौंपे जाने की प्रक्रिया पहले भी कई राज्यों में हो चुकी है और उन राज्यों में यह प्रक्रिया पूरी तरह से फेल हो चुकी है. सरकार पूरी तरह से इलाज देने की गारंटी की जवाबदारी से पीछे क्यों हट रही है. सरकार के पास फंड, मैनपॉवर या इच्छाशक्ति की कमी है. सरकार क्या किसी औद्योगिक घराने को फायदा देने जा रही है. सरकार के इस पीपीपी मोड से गरीब मरीजों का कोई फायदा नहीं होने वाला इससे फायदा सिर्फ उद्योगपति को ही फायदा होगा."

स्वास्थ्य संगठनों ने सरकार के फैसले पर जताया विरोध (ETV Bharat)

विरोध में उतरे डॉक्टर्स

पदाधिकारी डॉ राकेश मालवीय का कहना है कि "सरकार द्वारा जारी की गई टेंडर प्रक्रिया में प्रावधान किया गया है कि 50 फीसदी मरीजों को मुफ्त में जबकि 50 फीसदी मरीजों को इलाज के लिए पैसे देने होंगे. जबकि आज सभी जिला सरकारी अस्पताल में सभी का मुफ्त में इलाज होता है. इतने बड़े निर्णय लेने के पहले सरकार द्वारा स्वास्थ्य विभाग से जुड़े किसी भी संगठनों से चर्चा नहीं की है. यह प्रक्रिया पूरी तरह से गलत हो रही है, इसे सरकार को तत्काल रोकना चाहिए. सरकार एक तरफा गलत निर्णय लेकर काम नहीं कर सकती. सरकार को चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े संगठनों से इसको लेकर चर्चा करनी होगी, इसके बाद ही आगे कदम बढ़ाना होगा."

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'सरकार ने नहीं बताई वजह'

जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय सह संयोजक अमूल्य निधि ने कहा कि "सरकार द्वारा यह नहीं बताया गया कि आखिर सरकारी जिला अस्पतालों और सीएसई को प्राइवेट हाथों में क्यों सौंपा जा रहा है और इससे स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में क्या सुधार होगा. बता दें कि हाल ही में उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने मुख्य सचिव अनुराग जैन से मुलाकात की थी और इसमें स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े तमाम मुद्दों को लेकर चर्चा की गई थी."

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