जयपुर. प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों के संरक्षण को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए 11 मई को अंतरराष्ट्रीय प्रवासी पक्षी दिवस मनाया जाता है. इस मौके पर आज हम आपको लेकर चलते हैं सांभर झील के सफर पर, जो इन दिनों फ्लेमिंगो की गुलाबी आभा से आबाद है. सर्दियों में सुदूर ठंडे प्रदेशों से सांभर झील का रुख करने वाले इन विदेशी पावणों को अब सांभर की आबोहवा इतनी रास आने लगी है कि यह मई-जून की तपती गर्मी में भी ये यहीं बसेरा करते हैं और अपने कुनबे को आगे बढ़ाते हैं.
सांभर झील के खारे पानी में ब्लू-ग्रीन एल्गी (नील हरित शैवाल) प्रचुर मात्रा में होता है. जो इन फ्लेमिंगों का पसंदीदा और पौष्टिक आहार होता है. इसलिए सर्दी की शुरुआत में सुदूर ठंडे प्रदेशों से हजारों किलोमीटर का सफर तय कर फ्लेमिंगो राजस्थान की सबसे बड़ी खारे पानी की सांभर झील में बसेरा करते हैं. सांभर झील में आने वाले प्रवासी पक्षियों को अपने कैमरे में कैद करने वाले पक्षी प्रेमियों का कहना है कि इस बार सर्दियों में दो लाख से ज्यादा प्रवासी पक्षियों ने सांभर झील का रुख किया था, लेकिन यहां झील में पानी सूखने के कारण ज्यादातर फ्लेमिंगो ने जल्द ही नए ठिकाने की तलाश में यहां से जल्दी ही विदाई ले ली. अभी हजारों की संख्या में फ्लेमिंगो सांभर झील में हैं. इनमें से कई वयस्क फ्लेमिंगो यहीं पर नेस्टिंग कर अपने कुनबे को बढ़ाते हैं.
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जोड़े बनाने के लिए कोर्टशिप डिस्प्ले होता है खास : जूलॉजी की प्रोफेसर और पक्षी विज्ञानी डॉ. आशा शर्मा बताती हैं कि यह समय फ्लेमिंगों के प्रजनन का समय है और इससे पहले फ्लेमिंगों जोड़ा बनाने के लिए कोर्टशिप डिस्प्ले करते हैं. इसमें वयस्क फ्लेमिंगो गोला बनाकर एक खास पैटर्न में चलते हैं. जिसे देखकर अहसास होता है कि ये डांस कर रहे हैं. यह दृश्य काफी मनमोहक होता है, जिसे देखने और कैमरे में कैद करने के लिए पक्षी प्रेमी उत्सुक रहते हैं. वे खुद भी इस दृश्य को कैमरे में कैद करने सांभर झील पहुंची हैं.
बढ़ता मानव दखल चिंता का कारण : डॉ. आशा शर्मा का कहना है कि फ्लेमिंगो शर्मीला पक्षी होता है और इसे अपने ठिकानों पर मानव दखल पसंद नहीं है. सांभर झील में पानी के ज्यादातर ठिकाने सूखने से अब फ्लेमिंगो आबादी के पास गंदे पानी में बसेरा कर रहे हैं, जहां मानव दखल ज्यादा है. इसका असर इनकी दिनचर्या के साथ ही प्रजनन पर भी देखा जा सकता है. उन्होंने जोर देकर कहा कि फ्लेमिंगो के ठिकानों पर मानव दखल नियंत्रित करने की दरकार है, ताकि ये यहां सुरक्षित तरीके से रहकर अपना कुनबा बढ़ा सकें.
एल्गी में कैरेटिनॉइट्स देता है पंखों को गुलाबी आभा : डॉ. आशा शर्मा बताती हैं कि सांभर झील के खारे पानी में बनने वाली ब्लू ग्रीन एल्गी में एक खास तत्व होता है. इसे वैज्ञानिक भाषा में कैरेटिनॉइट्स कहते हैं. झील के नमकीन पानी (ब्राइन) में भी यह तत्व पाया जाता है. इसी के कारण फ्लेमिंगो के पंख गहरे गुलाबी रंग के होते हैं. वयस्क फ्लेमिंगो में प्रजजन के समय पंखों की गुलाबी आभा ज्यादा आकर्षक होती है.
बारिश की कमी और जलवायु परिवर्तन का असर : पक्षियों को अपने कैमरे में कैद करने वाले फोटोग्राफर गौरव दाधीच बताते हैं कि बीते कुछ सालों में सांभर झील और आसपास के इलाकों में बारिश कम होने से झील का बड़ा हिस्सा सूख रहा है. जहां पानी था, वहां भी जल्दी ही सूख गया. ऐसे में यहां आए फ्लेमिंगो जल्दी यहां से दूसरे ठिकाने की तलाश में चले गए. जहां सर्दियों में लाखों फ्लेमिंगो का यहां बसेरा था. अब कुछ हजार पक्षी ही यहां रह गए हैं. जलवायु परिवर्तन का भी इनके प्रवास पर गहरा असर पड़ा है. आमतौर पर प्रवासी पक्षी अक्टूबर नवंबर में आते हैं और मार्च तक वापस चले जाते हैं, लेकिन अब कुछ फ्लेमिंगो यहां सालभर देखे जा सकते हैं.
नमक का बढ़ता कारोबार, सिमटते ठिकाने : सांभर झील 90 वर्ग किलोमीटर में फैली है. अच्छी बारिश होने पर झील के ज्यादातर हिस्से में पानी भरा रहता है और फ्लेमिंगो का कई जगह बसेरा देखा जा सकता है, लेकिन नमक के लगातार बढ़ते कारोबार के कारण झील के पानी को क्यारियों में खींच लिया जाता है. इसके अलावा सांभर झील के भूमिगत खारे पानी का धड़ल्ले से अवैध दोहन भी किया जा रहा है. इसका असर यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों की तादाद पर भी पड़ा है.
300 से ज्यादा प्रजातियों के पक्षी आते हैं प्रवास पर : गौरव दाधीच बताते हैं कि सांभर झील में प्रवासी पक्षियों के प्रवास का अक्टूबर, नवंबर से फरवरी, मार्च के बीच सबसे ज्यादा होता है. अब तक यहां 300 से ज्यादा विदेशी पक्षियों का प्रवास रिकॉर्ड किया जा चुका है. इनमें सबसे ज्यादा फ्लेमिंगो होते हैं. लेजर और ग्रेटर प्रजाति के फ्लेमिंगो यहां प्रवास पर आते हैं, जिनमें से कुछ मई, जून में भी यहां विचरण करते देखे जा सकते हैं. सर्दियों में बतख और रेप्टर प्रजाति के कई पक्षी भी सांभर झील का रुख करते हैं.