पटना: लोकसभा चुनाव में एनडीए को बहुमत मिला है. इस बार भाजपा अपने दम पर सरकार नहीं बना सकती है. हर हाल में सहयोगियों का मदद लेना पड़ेगा. ऐसे में बीजेपी के सहयोगी की नजर केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपने हिस्सेदारी को लेकर है. 2019 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला था, तब जदयू के 16 सांसद होने के बाद भी केवल एक मंत्री पद दिया गया था. नीतीश कुमार दो से तीन मंत्री पद उस समय मांग रहे थे.
दो से तीन मंत्री पद की दावेदारीः राजनीतिक सूत्रों के अनुसार इस बार भी दो से तीन मंत्री पद की दावेदारी केंद्र में नीतीश कुमार के तरफ से हो सकती है. हालांकि, मंत्रिमंडल में शामिल होने और मंत्रियों की संख्या को लेकर जदयू के नेता कुछ भी बोलने से ही बच रहे हैं. उनका साफ कहना है फैसला नीतीश कुमार ही करेंगे और वह एनडीए की बैठक में होगी. नीतीश कुमार मंत्रिमंडल में जातीय और सामाजिक समीकरण का ध्यान रखते हैं. ऐसे में अगर तीन मंत्री पद मिलता है तो एक अति पिछड़ा या पिछड़ा वर्ग से बना सकते हैं.
इन नेताओं की खुल सकती है किस्मतः 2019 में ललन सिंह मंत्रिमंडल में शामिल होना चाहते थे लेकिन जदयू को एक मंत्री पद मिला था. उस पर जदयू के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष आरपी सिंह ने यह मौका लपक लिया. ललन सिंह का उस समय आरपी सिंह से इसको लेकर विवाद भी हुआ था. नीतीश कुमार के नजदीकी संजय झा का भी मंत्री बनना तय माना जा रहा है. 2019 लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान मंत्री नहीं बन पाए थे. उनके चाचा पशुपति पारस को मंत्री पद दिया गया था. इस बार चिराग पासवान का भी मंत्री बनना तय है. पूर्व सीएम जीतन राम मांझी हम से एकमात्र सांसद हैं. उनके भी मंत्री बनने की संभावना है.
मौका भुनाने की कोशिश करेंगे सहयोगी दलः राजनीतिक विशेषज्ञ रवि उपाध्याय का कहना है कि बीजेपी के सहयोगी दलों की ओर से केंद्रीय मंत्रिमंडल में इस बार बेहतर मंत्रालय की भी मांग होगी. क्योंकि पिछले 10 सालों से बीजेपी ने अपने सहयोगियों को मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए बहुत तबज्जो नहीं दिया है. उन्हें सांकेतिक तौर पर मंत्री पद बीजेपी दे रही थी. लेकिन इस बार सहयोगी दलों के सांसदों की संख्या के हिसाब से मंत्री पद देना मजबूरी है. सहयोगी दल इस मौके को भुनाने की पूरी कोशिश करेंगे. साथ ही सहयोगी दल अपनी मनपसंद विभाग की डिमांड भी करेंगे. उसमें से बहुत हद तक बीजेपी को मांग माननी पड़ सकती है.
बिहार भाजपा से कौन हो सकते हैं दावेदारः जहां तक बीजेपी की बात है, पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. पूर्व मंत्री अश्विनी चौबे इस बार चुनाव नहीं लड़े हैं. 2019 में बिहार से चार मंत्री बनाए गए थे. उसमें गिरिराज सिंह और नित्यानंद शामिल थे. इस बार संख्या घट सकती है. पुराने मंत्रियों को इस बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में मौका नहीं मिले इसकी भी संभावना है. बीजेपी नया चेहरा को मौका दे सकती है. उत्तर बिहार से इस बार बीजेपी का बेहतर प्रदर्शन रहा है ऐसे में वहां से किसी को मंत्री पद मिल सकता है. संजय जयसवाल बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, उन्हें भी इस बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में मौका मिल सकता है.
नये चेहरे का प्रयोग कर सकती है बीजेपीः राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का कहना है बीजेपी इस बार अपने मंत्रियों की संख्या कम करेगी यह तय है. सहयोगी दलों को उसके स्थान पर मौका देगी, यह मजबूरी भी है. जिन राज्यों में चुनाव होने वाला है मंत्रिमंडल में वहां के सांसदों को जगह मिलेगा. बिहार में भी अगले साल चुनाव है तो इस बार मंत्रिमंडल में बिहार से संख्या अधिक होगी. जहां तक चेहरे की बात है तो जदयू से संजय झा और ललन सिंह का नाम चर्चा में है. चिराग पासवान प्रबल दावेदार हैं. जीतन राम मांझी को भी मंत्रिमंडल में जगह दी जाएगी. बिहार बीजेपी से इस बार गिरिराज सिंह, नित्यानंद राय चुनाव जीते हैं, अब देखना है उन्हें फिर से मौका मिलता है या नहीं. बीजेपी कुछ नया चेहरा का प्रयोग कर सकती है.
मंत्रिमंडल में इन नेताओं को मिल सकता है मौकाः
- जदयू से संजय झा और ललन सिंह.
- लोजपा रामविलास से चिराग पासवान.
- हम से जीतन राम मांझी.
भाजपा को सहयोगी दलों की लेनी होगी मदद: लोकसभा चुनाव के परिणामों में भाजपा को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को बहुमत मिलना भाजपा के लिए राहत की बात है, लेकिन इस स्थिति में भाजपा को सरकार बनाने के लिए अपने सहयोगी दलों की मदद लेनी होगी. इस संदर्भ में, भाजपा को सहयोगी दलों के साथ तालमेल बैठाकर और उन्हें महत्वपूर्ण मंत्रालयों में शामिल करके एक स्थिर सरकार बनाने की दिशा में कदम उठाने होंगे. गठबंधन के प्रमुख दलों की उम्मीदें और मांगें पूरी करना आवश्यक होगा ताकि एनडीए के भीतर आपसी सहमति और सहयोग बना रहे.
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