मंदसौर. जिले की शामगढ़ तहसील में ग्राम धमनार स्थित बौद्ध गुफाएं (Dhamnar buddhist caves) ऐतिहासिक महत्व से काफी महत्वपूर्ण हैं. धमनार के पहाड़ी इलाके में 51 बड़ी गुफाएं हैं, जो मध्य भारत के प्राचीन बौद्ध धर्म के इतिहास को दर्शाती हैं. इन गुफाओं की खोज गुलामी के दौर में अंग्रेजों के पॉलीटिकल एजेंट कर्नल जेम्सटॉड ने 1821 में की थी. कर्नल जेम्सटॉड राजस्थान के बूंदी में एक विवाद का निपटारा करने के लिए जा रहे थे और जाते वक्त उन्हें यह गुफाएं दिखाई दीं. बाद में इन गुफाओं के इतिहास की, उन्होंने जब खोज की तो उस वक्त इन्हें जैन सम्प्रदाय की गुफाएं माना गया. लेकिन इतिहासकारों और पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की जांच के बाद बौद्ध गुफाएं होने की पुष्टि हुई.
आजादी के बाद हुई थी इस गुफा पर रिसर्च
आजादी के बाद सन 1962-63 में जब यहां रिसर्च हुई तो गुफाओं में बौद्ध प्रतिमाएं और चैत्य स्तूप होने के कारण इन्हें बौद्ध गुफाएं ही माना गया. खास बात यह है कि मंदसौर निवासी पद्मश्री वीएस वतनकर जो तत्कालीन पुरातत्व अधिकारी थे, उन्होंने उस वक्त रिसर्च की कमान संभाली और उस समय यहां एक शिलालेख मिला. शिलालेख में इन गुफाओं के शहर को चंदन गिरी का महाविहार कहा जाने का उल्लेख मिला. इसके बाद यहां गुफाओं की रिसर्च पूरी हुई तो यह छठी और सातवीं सदी की बौद्ध गुफाएं मानी गईं.
हीनयान और महायान संप्रदाय का मिलता है उल्लेख
इन गुफाओं में भगवान बुद्ध के दोनों संप्रदाय यानी हीनयान और महायान संप्रदाय के लोगों द्वारा पूजने का उल्लेख भी मिला है. दरअसल, हीनयान संप्रदाय के लोग चैत्य स्तूपों की पूजा करते हैं, जबकि महायान भगवान बुद्ध की मूर्तियों की आराधना करते हैं. लिहाजा बौद्ध धर्म के दोनों अनुयाई इन गुफाओं की आज भी पूजा अर्चना और आराधना करते हैं. पुरातात्विक दृष्टि के मुताबिक इन गुफाओं को दशपुर के राजा प्रभाकर द्वारा छठी शताब्दी में बनाए जाने का भी उल्लेख मिलता है.
माना जाता है बौद्ध भिक्षुओं के ठहरने का स्थान
मंदसौर जिले के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर कैलाश चंद्र पांडे ने बताया कि गुलामी को दौर में यह इलाका मध्य भारत के नाम से जाना जाता था. इस इलाके में नौ स्थानों पर बौद्ध गुफाएं स्थित हैं. मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में यह धमनार की गुफाएं के साथ-साथ खेजडिया भूप और पोला डूंगर की श्रृंखलाबद्ध गुफाओं के नाम से प्रसिद्ध हैं. जबकि पास में ही लगे राजस्थान के झालावाड़ में भी हथिया गौड, विनायक और कोलवी में इसी तरह की गुफाएं मिलती है. डॉक्टर पांडे ने बताया कि यह गुफाएं प्राचीन भारत में बौद्ध भिक्षुओं के ठहरने का स्थान माना जाता है. बताया जाता है कि जब बौद्ध भिक्षु उत्तर भारत से दक्षिण भारत में जाते थे तब वर्षा काल की ऋतु हो जाती थी. लिहाजा वे लंबे समय तक इन्हीं गुफाओं में रुकते थे और अपने आराध्य देव भगवान बुद्ध की पूजा अर्चना करते थे.