कुचामनसिटी. नागौर लोकसभा सीट पर इस बार चुनाव के दौरान ईवीएम से कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा गायब रहेगा. 2019 में यहां पर ईवीएम से भाजपा का चुनाव चिह्न गायब था. 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने कभी इस सीट पर कीर्तिमान रचा था. आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के खिलाफ लोगों का गुस्सा चरम पर था. इसी कारण इंदिरा गांधी समेत सभी दिग्गज चुनाव हार गए थे, लेकिन उस दौर में भी एक ऐसे नेता थे नाथूराम मिर्धा, जो तमाम चुनावी समीकरणों को धराशाई करते हुए और कांग्रेस विरोधी लहर के बावजूद राजस्थान से कांग्रेस के एकमात्र सांसद जीते थे.
1977 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में कांग्रेस एक भी सीट पर नहीं जीत सकी थी. राजस्थान में केवल नागौर से नाथूराम मिर्धा ने कांग्रेस के सिंबल से चुनाव लड़ा और लोकदल के किशन लाल शाह को 20 हजार 154 वोटों से करारी शिकस्त दी थी. आज कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाली इस सीट पर कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है. आरएलपी से गठबंधन के कारण ये सीट कांग्रेस ने आरएलपी को दी है.
आरएलपी के समर्थन में कांग्रेस : नागौर लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने आज तक सभी लोकसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारें हैं. कांग्रेस पार्टी ने देश की सत्ता पर सालों तक राज किया है. नागौर सीट से भी कांग्रेस प्रत्याशी या तो जीतते रहे, या फिर दूसरे नंबर पर रहते रहे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा. नागौर सीट पर कांग्रेस ने इस बार आरएलपी को अपना समर्थन दिया है. इसी तरह सीकर में भी कांग्रेस ने माकपा को अपना समर्थन दिया है.