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'नंगे पांव आए हैं, नंगे पांव जाएंगे', 45 सालों से नहीं पहने जूते-चप्पल, एक नेताजी ऐसे हैं जो कभी नहीं किये समझौता - Fakir Chand Das

Fakir Chand Das : अक्सर कहा जाता है कि खाली हाथ आए हैं, खाली हाथ जाएंगे. लेकिन फकीरचंद दास को तो देखकर यही कहा जा सकता है कि नंगे पांव आए हैं और नंगे पांव ही जाएंगे. जी हां, नेता फकीरचंद दास ने पिछले 45 साल से जूते-चप्पल नहीं पहने हैं और आजीवन नंगे पैर रहने का प्रण किया है. यहां तक कि विधानसभा के टिकट के लिए भी अपना प्रण नहीं तोड़ा, आखिर कौन हैं फकीरचंद दास, पढ़िये पूरी खबर,

फकीरचंद दास
फकीरचंद दास
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 14, 2024, 6:21 AM IST

Updated : Mar 14, 2024, 6:45 AM IST

फकीरचंद दास से बातचीत.

गया: तवे के समान तपती जमीन हो या फिर पैर को सुन्न कर देनेवाली कड़कड़ाती ठंड, वे खाली पैर ही चलते हैं. वो भी पूरे 45 साल से या यूं कहिए कि होश संभाला और उतार दिए जूते-चप्पल. जीवन भर जूते-चप्पल नहीं पहनने का संकल्प ही ले लिया. यहां तक कि विधानसभा टिकट के लिए भी फकीरचंद दास ने समझौता नहीं किया और अपने प्रण पर कायम रहे.

याद नहीं कि कब पहने थे जूते-चप्पल: गया जिले के बांके बाजार के जलालपुर गांव के रहनेवाले फकीरचंद दास हमेशा नंगे पैर ही रहते हैं. सर्दी हो या गर्मी हो, जंगली रास्ता हो या फिर पथरीला उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है. वो पिछले 45 सालों से नंगे पैर ही चलते आ रहे हैं. फकीरचंद दास का कहना है कि "जब से होश संभाला है, जूते या चप्पल नहीं पहने हैं. बचपन में मां-बाप ने पहना दिया होगा तो याद नहीं है".

"8 से 10 साल की उम्र में होश संभालने के बाद जूते या चप्पल नहीं पहने हैं. मेरी उम्र 55 साल के करीब की हो गई है, लेकिन अपने संकल्प पर अड़ा हुआ हूं. वाहन में भी बैठता हैं तो बगैर जूते-चप्पल के, इसके अलावा कहीं भी जाता हूं, चाहे वह राजनीतिक पार्टी की गतिविधियों या अन्य कोई गतिविधि हो, हर जगह नंगे पांव ही जाता हूं."- फकीरचंद दास, बिना जूता-चप्पल वाले नेता

45 सालों से नहीं पहनी चप्पल
45 सालों से नहीं पहनी चप्पल

विधानसभा टिकट के लिए भी नहीं तोड़ा प्रणः कई दशकों से राजनीति से जुड़े फकीरचंद दास कई बार विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं. एक बार उनके सामने बड़ी असमंजस की स्थिति पैदा हो गयी थी जब कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर ने उन्हें टिकट देने के लिए जूते-चप्पल पहनने की शर्त रख दी थी. दरअसल 2000 के विधानसभा उपचुनाव में बोधगया से फकीरचंद कांग्रेस के टिकट के दावेदार थे, लेकिन टाइटलर की शर्त थी कि जूते-चप्पल पहनने होंगे, तब भी फकीरचंद दास ने अपना प्रण नहीं तोड़ा. फकीरचंद की ऐसी दृढ़ता से टाइटलर खुश हो गये और टिकट दे दिया.

"मेरा जवाब सुनने के बाद जगदीश टाइटलर ने मेरी पीठ थपथपाई और गले से लगा लिया. वह मुझसे काफी प्रभावित हुए. मेरे सिद्धांत पर अड़े रहने को लेकर खुश हुए. इसके बाद मुझे ही बोधगया विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस का टिकट दिया गया और मैंने चुनाव लड़ा."- फकीरचंद दास, बिना जूता-चप्पल वाले नेता

'भगवान राम भी नंगे पांव गये थे जंगल": फकीरचंद दास बताते हैं कि "वे धार्मिक प्रवृत्ति के हैं और धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण ही जूते या चप्पल नहीं पहनते हैं. " वे कहते हैं कि "धर्म की दृष्टि से इसके कई लाभ है. जैसे भगवान राम भी वनवास गए तो नंगे पांव गए. ऋषि- मुनि भी नंगे पांव ही चलते थे. ऐसे ही मेरा भी संकल्प है कि जीवन भर जूते-चप्पल नहीं पहनूंगा. यदि विधायक-सांसद भी बन गया तो भी ये संकल्प जारी रहेगा."

गया संसदीय क्षेत्र से लड़ना चाहते हैं चुनावः सालों तक कांग्रेस में रहे फकीरचंद दास कई दलों से होते हुए अब आरजेडी में आ गये हैं. कांग्रेस के टिकट पर बोधगया विधानसभा चुनाव लड़ने के अलावा वो इमामगंज से दो बार निर्दलीय और 2020 में जाप कैंडिडेट के तौर पर चुनाव लड़ चुके हैं. फिलहाल फकीरचंद आरजेडी में हैं और गया लोकसभी सीट से आरजेडी का टिकट पाने की कोशिश कर रहे हैं. फकीरचंद दास 2001 में जिला पार्षद रह चुके हैं.

सियासत में नहीं तोड़े सिद्धांतः आज की सियासत में ऐसे नेताओं की भरमार है जो टिकट या सत्ता के लिए पल-पल पार्टी और सिद्धांत बदलते रहते हैं. लेकिन कई दशकों से सक्रिय सियासत से जुड़े फकीरचंद दास थोड़ा अलहदा हैं. उनके लिए उनके सिद्धांत ही सर्वस्व हैं और उनसे कभी समझौता नहीं करते. तभी तो टिकट दांव पर लगा दिया लेकिन जूते-चप्पल नहीं पहने.

ये भी पढ़ेंःगया: नामांकन दाखिल करने के बाद इमामगंज पहुंचे फकीरचंद दास

फकीरचंद दास से बातचीत.

गया: तवे के समान तपती जमीन हो या फिर पैर को सुन्न कर देनेवाली कड़कड़ाती ठंड, वे खाली पैर ही चलते हैं. वो भी पूरे 45 साल से या यूं कहिए कि होश संभाला और उतार दिए जूते-चप्पल. जीवन भर जूते-चप्पल नहीं पहनने का संकल्प ही ले लिया. यहां तक कि विधानसभा टिकट के लिए भी फकीरचंद दास ने समझौता नहीं किया और अपने प्रण पर कायम रहे.

याद नहीं कि कब पहने थे जूते-चप्पल: गया जिले के बांके बाजार के जलालपुर गांव के रहनेवाले फकीरचंद दास हमेशा नंगे पैर ही रहते हैं. सर्दी हो या गर्मी हो, जंगली रास्ता हो या फिर पथरीला उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है. वो पिछले 45 सालों से नंगे पैर ही चलते आ रहे हैं. फकीरचंद दास का कहना है कि "जब से होश संभाला है, जूते या चप्पल नहीं पहने हैं. बचपन में मां-बाप ने पहना दिया होगा तो याद नहीं है".

"8 से 10 साल की उम्र में होश संभालने के बाद जूते या चप्पल नहीं पहने हैं. मेरी उम्र 55 साल के करीब की हो गई है, लेकिन अपने संकल्प पर अड़ा हुआ हूं. वाहन में भी बैठता हैं तो बगैर जूते-चप्पल के, इसके अलावा कहीं भी जाता हूं, चाहे वह राजनीतिक पार्टी की गतिविधियों या अन्य कोई गतिविधि हो, हर जगह नंगे पांव ही जाता हूं."- फकीरचंद दास, बिना जूता-चप्पल वाले नेता

45 सालों से नहीं पहनी चप्पल
45 सालों से नहीं पहनी चप्पल

विधानसभा टिकट के लिए भी नहीं तोड़ा प्रणः कई दशकों से राजनीति से जुड़े फकीरचंद दास कई बार विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं. एक बार उनके सामने बड़ी असमंजस की स्थिति पैदा हो गयी थी जब कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर ने उन्हें टिकट देने के लिए जूते-चप्पल पहनने की शर्त रख दी थी. दरअसल 2000 के विधानसभा उपचुनाव में बोधगया से फकीरचंद कांग्रेस के टिकट के दावेदार थे, लेकिन टाइटलर की शर्त थी कि जूते-चप्पल पहनने होंगे, तब भी फकीरचंद दास ने अपना प्रण नहीं तोड़ा. फकीरचंद की ऐसी दृढ़ता से टाइटलर खुश हो गये और टिकट दे दिया.

"मेरा जवाब सुनने के बाद जगदीश टाइटलर ने मेरी पीठ थपथपाई और गले से लगा लिया. वह मुझसे काफी प्रभावित हुए. मेरे सिद्धांत पर अड़े रहने को लेकर खुश हुए. इसके बाद मुझे ही बोधगया विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस का टिकट दिया गया और मैंने चुनाव लड़ा."- फकीरचंद दास, बिना जूता-चप्पल वाले नेता

'भगवान राम भी नंगे पांव गये थे जंगल": फकीरचंद दास बताते हैं कि "वे धार्मिक प्रवृत्ति के हैं और धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण ही जूते या चप्पल नहीं पहनते हैं. " वे कहते हैं कि "धर्म की दृष्टि से इसके कई लाभ है. जैसे भगवान राम भी वनवास गए तो नंगे पांव गए. ऋषि- मुनि भी नंगे पांव ही चलते थे. ऐसे ही मेरा भी संकल्प है कि जीवन भर जूते-चप्पल नहीं पहनूंगा. यदि विधायक-सांसद भी बन गया तो भी ये संकल्प जारी रहेगा."

गया संसदीय क्षेत्र से लड़ना चाहते हैं चुनावः सालों तक कांग्रेस में रहे फकीरचंद दास कई दलों से होते हुए अब आरजेडी में आ गये हैं. कांग्रेस के टिकट पर बोधगया विधानसभा चुनाव लड़ने के अलावा वो इमामगंज से दो बार निर्दलीय और 2020 में जाप कैंडिडेट के तौर पर चुनाव लड़ चुके हैं. फिलहाल फकीरचंद आरजेडी में हैं और गया लोकसभी सीट से आरजेडी का टिकट पाने की कोशिश कर रहे हैं. फकीरचंद दास 2001 में जिला पार्षद रह चुके हैं.

सियासत में नहीं तोड़े सिद्धांतः आज की सियासत में ऐसे नेताओं की भरमार है जो टिकट या सत्ता के लिए पल-पल पार्टी और सिद्धांत बदलते रहते हैं. लेकिन कई दशकों से सक्रिय सियासत से जुड़े फकीरचंद दास थोड़ा अलहदा हैं. उनके लिए उनके सिद्धांत ही सर्वस्व हैं और उनसे कभी समझौता नहीं करते. तभी तो टिकट दांव पर लगा दिया लेकिन जूते-चप्पल नहीं पहने.

ये भी पढ़ेंःगया: नामांकन दाखिल करने के बाद इमामगंज पहुंचे फकीरचंद दास

Last Updated : Mar 14, 2024, 6:45 AM IST
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