नई दिल्ली: हाथी को इंसानों का बहुत करीबी जानवर माना जाता है और वे भावनात्मक तरीके से इंसानों से जुड़े हुए होते हैं. हाथी भारत सहित पूरे एशिया में सांस्कृतिक प्रतीक हैं. हाथियों के संरक्षण और उनके महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष 12 अगस्त को 'विश्व हाथी दिवस' मनाया जाता है. दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क में मौजूद तीन हाथी, यहां की शान हैं. इनमें एक अफ्रीकन हाथी, जबकि दो एशियाई हाथी (नर-मादा) हैं.
यहां रोजाना हजारों पर्यटक व पशु-पक्षी प्रेमियों का आना जाना होता है. 176 एकड़ में फैले नेशनल जूलॉजिकल पार्क में 80 प्रजाति के 1200 से अधिक पशु पक्षी हैं. लेकिन यहां में आने वाले बच्चे-बड़े सभी की प्राथमिकता, यहां के हाथियों को देखने की होती है. यहां मौजूद अफ्रीकी हाथी का नाम शंकर है, जबकि एशियाई हाथी में से नर हाथी का नाम हीरगज और मादा हाथी का नाम राजलक्ष्मी है.
ऐसे रखा गया गया नाम 'शंकर': दिल्ली जू के अधिकारियों के मुताबिक, वर्ष 1998 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को अफ्रीकी देश जिंबाब्वे से दो हाथी के बच्चे उपहार में मिले थे. तब दोनों हाथियों की उम्र दो वर्ष थी. इसमें एक नर और दूसरी मादा थी. नर हाथी का नाम, राष्ट्रपति के नाम पर ही 'शंकर' रखा गया था. वहीं मादा हाथी का नाम बिंबई रखा गया था. बाद में बिंबई की बीमारी से मौत हो गई थी. अभी तक उसके लिए कोई साथी नहीं मिला है. हालांकि सेंट्रल जू अथॉरिटी का नियम है कि किसी जू में जानवर को अकेला न रखा जाए. अकेले रहने के कारण शंकर अक्सर बीमार हो जाता है. गर्मियों के समय उसे बांधकर रखा जाता है.
कभी हाथी की सवारी करते थे लोग: दिल्ली जू में हीरागज और राजलक्ष्मी भारतीय हाथी है. दोनों को वर्ष 1980 में कानपुर के चिड़ियाघर से लाया गया था. जू कीपर विनोद ने बताया कि, वर्ष 1997 से 1999 के बीच, दिल्ली जू में लोगों को हाथी की सवारी कराई जाती थी. हीरागज बहुत ही अच्छे से पर्यटकों को अपनी पीठ पर बैठाकर घुमाता था, लेकिन राजलक्ष्मी को पीठ पर सवारी कराना पसंद नहीं था. ट्रेनिंग के दौरान, जब भी उसकी पीठ पर कोई बैठता था या बैठने का सामान रखा जाता था, तब वह उसे नीचे गिरा देती थी. ऐसे में राजलक्ष्मी हाथी को सवारी कराने के लिए उपयोग नहीं किया जाता था. वहीं जानवरों की कुछ संस्थाओं ने इसका विरोध भी किया था, जिसपर दिल्ली जू में हाथी की सवारी बंद कर दी गई थी.
हाथी को मारी गई थी गोली: वर्तमान में हीरागज और राजलक्ष्मी भारतीय हाथी दिल्ली जू में हैं. इनसे पहले गोपाल-राजलक्ष्मी और मोहिनी-भोली की जोड़ी यहां थी. वर्ष 1981 में गोपाल ने राजलक्ष्मी पर हमला कर दिया था. जू के अधिकारियों के मुताबिक, गोपाल ने मानसिक संतुलन खो दिया था. ऐसे में उसे गोली मार दी गई थी, जिससे अन्य जानवरों को बचाया जा सके. वहीं वर्ष 2002 के आसपास मोहिनी और भोली को जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क को दे दिया गया था.
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इसलिए जू में नहीं बढ़ती हाथियों की संख्या: दिल्ली जू के अधिकारियों के अनुसार, देश-दुनिया के जू में हाथियों का प्रजनन बहुत कम होता है. जंगलों में झुंड में हाथी रहते हैं. ऐसे में जंगलों में हाथियों का प्रजनन ठीक होता है.
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