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सपा के गढ़ कन्नौज में लालू के दामाद की दहाड़ को क्या शांत कर पाएगी बीजेपी? - Lok Sabha Election 2024

Kannauj Lok Sabha Seat Voting Date : कन्नोज लोकसभा सीट पर लोकसभा चुनाव 2024 के दूसरे चरण यानी 26 अप्रैल को मतदान है. जिसमें भाजपा ने सुब्रत पाठक को तो सपा ने तेज प्रताप यादव को मैदान में उतारा है. तेज प्रताप सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के भतीजे और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के दामाद हैं. इस सीट पर मुख्य मुकाबला सपा और भाजपा में ही रहता है. जीत का अंतर भी मामूली होता है. आईए देखते हैं 4 जून को होने वाली मतगणना में किसका पलड़ा भारी रहने वाला है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 23, 2024, 10:01 AM IST

लखनऊ: Kannauj Lok Sabha Seat Result Date: समाजवादी पार्टी का गढ़ मानी जाने वाली प्रदेश की हाई प्रोफाइल कन्नौज संसदीय सीट पर तीसरी बार भाजपा का परचम लहराने की चुनौती एक बार फिर पार्टी प्रत्याशी सुब्रत पाठक पर होगी.

मोदी लहर में भी सपा को मिली थी जीतः इस सीट पर भाजपा को 2014 में नरेंद्र मोदी की लहर में भी हार का सामना करना पड़ा था. 2019 में सुब्रत पाठक की जीत से पहले मात्र एक बार यहां से भाजपा की जीत हुई थी. यह वर्ष था 1996, तब भाजपा के चंद्र भूषण सिंह ने यहां विजय हासिल की थी.

कन्नौज से अखिलेश यादव खुद लड़ने वाले थे चुनावः इसके बाद 1998 से लेकर 2014 तक इस सीट पर सपा का ही दबदबा रहा है. इस चुनाव में उम्मीद की जा रही थी कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव यहां से खुद चुनाव लड़ेंगे, लेकिन ऐसा न करके उन्होंने अपने ताऊ रतन सिंह के पोते और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के दामाद तेज प्रताप यादव को मैदान में उतारा है. वहीं बहुजन समाज पार्टी ने कन्नौज सीट से इमरान बिन जफर को अपना प्रत्याशी घोषित किया है.

चुनाव 2024 में अखिलेश के खानदान से 5 उम्मीदवारः लोकसभा चुनाव 2024 में सपा द्वारा घोषित कुल उम्मीदवारों में तेज प्रताप पांचवें यादव प्रत्याशी हैं. ये सभी अखिलेश यादव के रिश्तेदार हैं. सपा अध्यक्ष की पत्नी डिंपल यादव मैनपुरी से चुनाव मैदान में हैं, तो वहीं अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव आजमगढ़ से सपा के उम्मीदवार बनाए गए हैं.

शिवपाल यादव के कहने पर बदायूं में अखिलेश को बदलना पड़ा टिकटः मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव के पुत्र आदित्य यादव को पार्टी ने बदायूं से अपना प्रत्याशी बनाया है. अखिलेश यादव ने पहले इस सीट से शिवपाल यादव के नाम की ही घोषणा की थी, किंतु शिवपाल के आग्रह ने बाद यह टिकट पार्टी को बदलना पड़ा.

रामगोपाल यादव का बेटा भी चुनावी मैदान मेंः अखिलेश यादव के ताऊ रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव फिरोजाबाद संसदीय सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार घोषित किए गए हैं. अब मुलायम सिंह यादव के बड़े भाई रतन सिंह के पोते तेज प्रताप सिंह को कन्नौज से उतार कर अखिलेश यादव ने सबको चौंका दिया है.

तेज प्रताप सैफई महोत्सव की संभालते आए हैं जिम्मेदारीः अब तक कयास लगाए जा रहे थे कि अखिलेश खुद इस सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. तेज प्रताप की मां मृदुला यादव सैफई से ब्लॉक प्रमुख चुनी गई थीं, जबकि इनके पिता रणवीर सिंह यादव का 2002 में निधन हो चुका है. तेज प्रताप सैफई महोत्सव की पूरी जिम्मेदारी संभालते हैं, जबकि इससे पहले इनके पिता यह दायित्व देखते थे.

सपा के गढ़ में पहली बार सुब्रत पाठक ने ही लगवाई भाजपा की सेंधः भाजपा उम्मीदवार सुब्रत पाठक की बात करें, तो वह भारतीय जनता पार्टी में काफी वर्षों से सक्रिय रहे हैं. वह पार्टी के युवा मोर्चे के अध्यक्ष भी रहे हैं. 2019 में इन्होंने अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को कन्नौज से पराजित किया था. वह प्रदेश भाजपा इकाई के महासचिव भी हैं.

बसपा ने ऐन मौके पर अकील अहमद का टिकट काटा इमरान बिन जफर को दियाः वहीं बहुजन समाज पार्टी ने इस सीट पर इमरान बिन जफर को अपना उम्मीदवार बनाया है. इससे पहले बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी के पुराने कार्यकर्ता अकील अहमद को टिकट दिया था, लेकिन ऐन मौके पर उनका टिकट काट कर इमरान बिन जफर को मैदान में उतारा.

इमरान आप छोड़कर बसपा में हुए हैं शामिलः इमरान बिन जफर के बारे में बताया जाता है कि यह कानपुर स्थित जाजमऊ के रहने वाले हैं और 2014 में आम आदमी पार्टी के टिकट पर कन्नौज सीट से ही चुनाव लड़ चुके हैं. वह व्यवसाई हैं. बताया जाता है कि जिला स्तर पर बसपा नेताओं को इस विषय में खास जानकारी नहीं है.

कन्नौज लोकसभा सीट का क्या रहा है इतिहासः यदि पिछले चुनावों की बात करें, तो 1967 में पहली बार जब इस सीट पर चुनाव हुआ, तो यहां से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया को अपना प्रत्याशी बनाया और उन्होंने जीत हासिल की.

कन्नौज में किसने कब जीता चुनावः 1971 में कांग्रेस नेता सत्य नारायण मिश्रा, 1977 में जनता पार्टी उम्मीदवार रामप्रकाश त्रिपाठी, 1980 में जनता पार्टी के ही छोटे सिंह यादव, 1984 में कांग्रेस नेता शीला दीक्षित ने लोकसभा चुनाव जीता था. वहीं 1989 और 1991 में छोटे सिंह यादव ने क्रमश: जनता दल और जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता.

इसके बाद 1996 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा उम्मीदवार चंद्रभूषण सिंह विजयी रहे. 1998 में सपा की जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह 2014 तक जारी रहा. 1998 में सपा के प्रदीप यादव, 1999 में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव, 2004 और 2009 में अखिलेश यादव और 2014 में डिंपल यादव यहां से जीतकर संसद पहुंचीं. संसदीय सीट में पड़ने वाली पांच विधानसभा सीटों में चार पर भाजपा और एक पर सपा का कब्जा है.

सपा-भाजपा में रही हमेशा कांटे की टक्करः 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें, तो इस चुनाव में सपा और भाजपा में नजदीकी मुकाबला हुआ, जिसमें सपा उम्मीदवार डिंपल यादव को विजय हासिल हुई. उन्हें कुल 4,89,164 मत प्राप्त हुए, जो कुल मतदान के 43.89 प्रतिशत थे. उनकी जीत का अंतर महज 19,907 वोट था.

वहीं दूसरे स्थान पर रहे भाजपा के सुब्रत पाठक को 4,69,256 मत प्राप्त हुए थे, जो कुल मतदान के 42.11 प्रतिशत थे. बसपा की निर्मला तिवारी को 1,27,785 मत मिले और वह तीसरे स्थान पर रही थीं.

वहीं 2019 के चुनाव में विजयी रहे भाजपा उम्मीदवार सुब्रत पाठक को 5,63,087 मत मिले थे, जो कुल मतदान के 49.37 प्रतिशत थे. दूसरे स्थान पर रहीं सपा की डिंपल यादव को 5,50,734 वोट मिले, जो कुल मतदान के 48.29 प्रतिशत थे.

इस चुनाव में जीत का अंतर सिर्फ 12,353 वोट था. यह चुनाव सपा और बसपा ने साथ मिलकर लड़ा था. यह आंकड़े और जीत का अंतर बताते हैं कि किसी भी पार्टी और नेता के लिए यह चुनाव आसान नहीं रहने वाला और यहां कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है.

ये भी पढ़ेंः अखिलेश नहीं लड़ेंगे लोकसभा चुनाव; कन्नौज से भतीजे तेज प्रताप यादव को दिया टिकट, बलिया से सनातन पांडेय सपा प्रत्याशी घोषित

लखनऊ: Kannauj Lok Sabha Seat Result Date: समाजवादी पार्टी का गढ़ मानी जाने वाली प्रदेश की हाई प्रोफाइल कन्नौज संसदीय सीट पर तीसरी बार भाजपा का परचम लहराने की चुनौती एक बार फिर पार्टी प्रत्याशी सुब्रत पाठक पर होगी.

मोदी लहर में भी सपा को मिली थी जीतः इस सीट पर भाजपा को 2014 में नरेंद्र मोदी की लहर में भी हार का सामना करना पड़ा था. 2019 में सुब्रत पाठक की जीत से पहले मात्र एक बार यहां से भाजपा की जीत हुई थी. यह वर्ष था 1996, तब भाजपा के चंद्र भूषण सिंह ने यहां विजय हासिल की थी.

कन्नौज से अखिलेश यादव खुद लड़ने वाले थे चुनावः इसके बाद 1998 से लेकर 2014 तक इस सीट पर सपा का ही दबदबा रहा है. इस चुनाव में उम्मीद की जा रही थी कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव यहां से खुद चुनाव लड़ेंगे, लेकिन ऐसा न करके उन्होंने अपने ताऊ रतन सिंह के पोते और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के दामाद तेज प्रताप यादव को मैदान में उतारा है. वहीं बहुजन समाज पार्टी ने कन्नौज सीट से इमरान बिन जफर को अपना प्रत्याशी घोषित किया है.

चुनाव 2024 में अखिलेश के खानदान से 5 उम्मीदवारः लोकसभा चुनाव 2024 में सपा द्वारा घोषित कुल उम्मीदवारों में तेज प्रताप पांचवें यादव प्रत्याशी हैं. ये सभी अखिलेश यादव के रिश्तेदार हैं. सपा अध्यक्ष की पत्नी डिंपल यादव मैनपुरी से चुनाव मैदान में हैं, तो वहीं अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव आजमगढ़ से सपा के उम्मीदवार बनाए गए हैं.

शिवपाल यादव के कहने पर बदायूं में अखिलेश को बदलना पड़ा टिकटः मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव के पुत्र आदित्य यादव को पार्टी ने बदायूं से अपना प्रत्याशी बनाया है. अखिलेश यादव ने पहले इस सीट से शिवपाल यादव के नाम की ही घोषणा की थी, किंतु शिवपाल के आग्रह ने बाद यह टिकट पार्टी को बदलना पड़ा.

रामगोपाल यादव का बेटा भी चुनावी मैदान मेंः अखिलेश यादव के ताऊ रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव फिरोजाबाद संसदीय सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार घोषित किए गए हैं. अब मुलायम सिंह यादव के बड़े भाई रतन सिंह के पोते तेज प्रताप सिंह को कन्नौज से उतार कर अखिलेश यादव ने सबको चौंका दिया है.

तेज प्रताप सैफई महोत्सव की संभालते आए हैं जिम्मेदारीः अब तक कयास लगाए जा रहे थे कि अखिलेश खुद इस सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. तेज प्रताप की मां मृदुला यादव सैफई से ब्लॉक प्रमुख चुनी गई थीं, जबकि इनके पिता रणवीर सिंह यादव का 2002 में निधन हो चुका है. तेज प्रताप सैफई महोत्सव की पूरी जिम्मेदारी संभालते हैं, जबकि इससे पहले इनके पिता यह दायित्व देखते थे.

सपा के गढ़ में पहली बार सुब्रत पाठक ने ही लगवाई भाजपा की सेंधः भाजपा उम्मीदवार सुब्रत पाठक की बात करें, तो वह भारतीय जनता पार्टी में काफी वर्षों से सक्रिय रहे हैं. वह पार्टी के युवा मोर्चे के अध्यक्ष भी रहे हैं. 2019 में इन्होंने अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को कन्नौज से पराजित किया था. वह प्रदेश भाजपा इकाई के महासचिव भी हैं.

बसपा ने ऐन मौके पर अकील अहमद का टिकट काटा इमरान बिन जफर को दियाः वहीं बहुजन समाज पार्टी ने इस सीट पर इमरान बिन जफर को अपना उम्मीदवार बनाया है. इससे पहले बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी के पुराने कार्यकर्ता अकील अहमद को टिकट दिया था, लेकिन ऐन मौके पर उनका टिकट काट कर इमरान बिन जफर को मैदान में उतारा.

इमरान आप छोड़कर बसपा में हुए हैं शामिलः इमरान बिन जफर के बारे में बताया जाता है कि यह कानपुर स्थित जाजमऊ के रहने वाले हैं और 2014 में आम आदमी पार्टी के टिकट पर कन्नौज सीट से ही चुनाव लड़ चुके हैं. वह व्यवसाई हैं. बताया जाता है कि जिला स्तर पर बसपा नेताओं को इस विषय में खास जानकारी नहीं है.

कन्नौज लोकसभा सीट का क्या रहा है इतिहासः यदि पिछले चुनावों की बात करें, तो 1967 में पहली बार जब इस सीट पर चुनाव हुआ, तो यहां से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया को अपना प्रत्याशी बनाया और उन्होंने जीत हासिल की.

कन्नौज में किसने कब जीता चुनावः 1971 में कांग्रेस नेता सत्य नारायण मिश्रा, 1977 में जनता पार्टी उम्मीदवार रामप्रकाश त्रिपाठी, 1980 में जनता पार्टी के ही छोटे सिंह यादव, 1984 में कांग्रेस नेता शीला दीक्षित ने लोकसभा चुनाव जीता था. वहीं 1989 और 1991 में छोटे सिंह यादव ने क्रमश: जनता दल और जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता.

इसके बाद 1996 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा उम्मीदवार चंद्रभूषण सिंह विजयी रहे. 1998 में सपा की जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह 2014 तक जारी रहा. 1998 में सपा के प्रदीप यादव, 1999 में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव, 2004 और 2009 में अखिलेश यादव और 2014 में डिंपल यादव यहां से जीतकर संसद पहुंचीं. संसदीय सीट में पड़ने वाली पांच विधानसभा सीटों में चार पर भाजपा और एक पर सपा का कब्जा है.

सपा-भाजपा में रही हमेशा कांटे की टक्करः 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें, तो इस चुनाव में सपा और भाजपा में नजदीकी मुकाबला हुआ, जिसमें सपा उम्मीदवार डिंपल यादव को विजय हासिल हुई. उन्हें कुल 4,89,164 मत प्राप्त हुए, जो कुल मतदान के 43.89 प्रतिशत थे. उनकी जीत का अंतर महज 19,907 वोट था.

वहीं दूसरे स्थान पर रहे भाजपा के सुब्रत पाठक को 4,69,256 मत प्राप्त हुए थे, जो कुल मतदान के 42.11 प्रतिशत थे. बसपा की निर्मला तिवारी को 1,27,785 मत मिले और वह तीसरे स्थान पर रही थीं.

वहीं 2019 के चुनाव में विजयी रहे भाजपा उम्मीदवार सुब्रत पाठक को 5,63,087 मत मिले थे, जो कुल मतदान के 49.37 प्रतिशत थे. दूसरे स्थान पर रहीं सपा की डिंपल यादव को 5,50,734 वोट मिले, जो कुल मतदान के 48.29 प्रतिशत थे.

इस चुनाव में जीत का अंतर सिर्फ 12,353 वोट था. यह चुनाव सपा और बसपा ने साथ मिलकर लड़ा था. यह आंकड़े और जीत का अंतर बताते हैं कि किसी भी पार्टी और नेता के लिए यह चुनाव आसान नहीं रहने वाला और यहां कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है.

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