जबलपुर: मध्य प्रदेश सरकार द्वारा साल 2013 में बने नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत मुआवजा नहीं दिये जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इस मामले में सुनवाई चल रही है. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने सरकार को लिखित में पक्ष प्रस्तुत करने अंतिम मोहलत प्रदान की है. युगलपीठ ने अपने आदेश में चेतावनी दी है कि अगर अगली सुनवाई के दौरान सरकार लिखित में पक्ष प्रस्तुत नहीं करती है तो 15 हजार रूपये की कॉस्ट जमा करना होगी.
नए भूमि अधिनियम के तहत मुआवजा दिए जाने की याचिका
नर्मदा बचाओ आन्दोलन और सुनंदा सरोडे की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि भूमि अधिग्रहण के लिए साल 2013 में नया भूमि अधिग्रहण अधिनियम लागू किया गया है. जिसके अनुसार भूमि अधिग्रहण में अधिग्रहित की गयी भूमि के एवज में 1 से 2 फैक्टर के बीच मुआवजा दिया जाए. यह फैक्टर अधिग्रहित की गई भूमि के अनुरूप प्रभावी होगा.
याचिका में कहा गया था कि प्रदेश सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी किया है जिसमें कहा गया है कि अधिग्रहित भूमि का मुआवजा का फैक्टर 1 निर्धारित कर दिया है. याचिका में सरकार के द्वारा जारी नोटिफिकेशन को अवैधानिक तथा एक्ट के विपरीत करार दिया गया है. याचिका में कहा गया है कि नए एक्ट के अनुसार फैक्टर 1 से 2 के बीच मुआवजा दिये जाने का प्रावधान है.
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जवाब पेश करने सरकार के पास अंतिम अवसर
याचिका की सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने पाया कि पूर्व में सरकार की तरफ से लिखित पक्ष प्रस्तुत करने समय मांगा गया था. लिखित पक्ष प्रस्तुत करने के लिए सरकार को कई अवसर प्रदान किये जा चुके हैं. सरकार की तरफ से पुनः एक सप्ताह का समय मांगा जा रहा है.
हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने सरकार को लिखित में पक्ष प्रस्तुत करने अंतिम मोहलत प्रदान की है. युगलपीठ ने अपने आदेश में चेतावनी दी है कि अगर अगली सुनवाई के दौरान सरकार लिखित में पक्ष प्रस्तुत नहीं करती है तो 15 हजार रूपये की कॉस्ट जमा करना होगी. याचिकाकर्ताओं की तरफ से एडवोकेट श्रेयस पंडित और राहुल दिवाकर ने पैरवी की.