जयपुर : विश्वभर में 23 सितंबर अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन सभी बधिर लोगों और अन्य सांकेतिक भाषा उपयोगकर्ताओं की भाषाई पहचान और सांस्कृतिक विविधता का समर्थन और सुरक्षा करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है. इस खास दिन बधिर जन की समस्याओं, समानता और सांकेतिक भाषा के अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार पर बात की जाती है. आवश्यक रोजमर्रा के कार्यों के लिए आज भी सांकेतिक भाषा के इंटरप्रेटर नहीं होने के चलते बधिर जन को जनरल कम्युनिकेशन में समस्या आ रही है. इस समस्या से राहत देने के लिए नूपुर संस्था ने एक सॉफ्टवेयर तैयार किया है, जिसके क्यूआर कोड को स्कैन पर नि:शुल्क इंटरप्रेटर सुविधा दी जा रही है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हिमाचल सहित कई राज्यों में पुलिस सहयोग के साथ नूपुर संस्था इस क्यूआर कोड से बधिर जन को लाभ पहुंचा रही है.
लिखने की शिक्षा दी जानी चाहिए: नूपुर संस्था के संस्थापक और सांकेतिक भाषा के एक्सपर्ट मनोज भारद्वाज बताते हैं कि डिजिटल क्रांति के दौर में बधिर जन के लिए कई तरह की टेक्नोलॉजी वरदान के रूप में सामने आई है, लेकिन सरकार के स्तर पर जो इन बच्चों के साथ में शिक्षा के क्षेत्र में खिलवाड़ हो रहा है, वह चिंताजनक है. बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा के दौरान सांकेतिक भाषा का ज्ञान तो दिया जाता है, लेकिन उन्हें लिखने की शिक्षा नहीं दी जा रही. हालत यह है कि बच्चों को पास करने के लिए उन रास्तों को अपने की सलाह दी जाती है, जिन्हें बच्चों के लिए गलत माना जाता है. मनोज बताते हैं कि कई जगह पर सांकेतिक भाषा को समझाने वाले नहीं होते हैं, इस स्थिति में कई बधिर जन परेशान होते हैं, क्योंकि वह अपनी बात लिखकर नहीं बता पाते. लिखने की शिक्षा उन्हें प्रारंभिक स्कूली शिक्षा में दी जानी चाहिए थी, लेकिन वह उन्हें नहीं दी जाती है.
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इंटरप्रेटर मिलना बड़ी समस्या : मनोज भारद्वाज ने बताया कि आमतौर पर बधिर व्यक्तियों को बेहद महत्वपूर्ण स्थानों पर कम्युनिकेशन करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. लगातार प्रयास के बाद भी राजस्थान में सांकेतिक भाषा को आम जनता तक नहीं पहुंचा जा सका है, जिसकी वजह से यह दिक्कत खड़ी हो रही है. उन्होंने कहा कि सरकार के स्तर पर कई बार कोशिश करी गई की सांकेतिक भाषा की बेसिक जानकारी अलग-अलग कार्यक्रमों के जरिए आम जनता तक पहुंचाई जाए, लेकिन आम जन तो दूर सरकारी सिस्टम तक भी सांकेतिक भाषा की जानकारी नहीं पहुंची है. खास करके आपातकालीन सेवाओ में आज भी बधिर जन को अपनी समस्याओं को बताने के लिए इंटरप्रेटर की जरूरत पड़ती है, जो आसानी से नहीं मिल पाते हैं.
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इन्हीं समस्याओं को देखते हुए नूपुर संस्था ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार किया है, जिसके क्यूआर कोड को स्कैन करने पर वीडियो कॉल के जरिए बधिर आशार्थियों को इंटरप्रेटर मिल सकेगा. मनोज भारद्वाज ने बताया कि अब तक बधिर जन की समस्याओं के समाधान या कम्युनिकेशन के लिए फिजिकल इंटरप्रेटर की आवश्यकता होती है, लेकिन इस क्यूआर कोड स्कैनर का उन्हें आसानी से इंटरप्रेटर मिल रहा है. इसके लिए किसी तरह का कोई चार्ज भी नहीं देना पड़ेगा और न ही कोई एप डाउनलोड करना होगा.
इस तरह से करेगा काम : मनोज भारद्वाज ने बताया कि बढ़ते हुए साइबर अपराधों पर बधिर समाज मे जनचेतना लाने के अनेक प्रयास करने के बाद भी कोई न कोई बधिर व्यक्ति साइबर फ्रॉर्ड/ स्कैम का शिकार हो जाता है, उसके लिए अलग-अलग रीयल टाइम अपराधों के माध्यम से जनचेतना लाने के प्रयास किया जा रहा है. इसके तहत बिना किसी एप डाउनलोड किए, बिना कोई फीस दिए सिर्फ क्यूआर कोड स्कैन करने पर वीडियो कॉल कनेक्ट हो जाएगी. क्यूआर कोड स्कैन करने पर एक लिंक जनरेट होगा. जैसे ही उस लिंक पर क्लिक करेंगे तो संस्था की ओर से उपलब्ध कराए गए सांकेतिक भाषा के विशेषज्ञ के पास वीडियो कॉल पहुंच जाएगी.
मनोज भरद्वाज ने Etv भारत के सामने इस क्यूआर के उपयोग कर लाइव डेमो दिया, जिसमें मनोज नाम के बधिर ने इस टेक्नोलॉजी के लिए अपनी परेशानी बताई. मनोज को 7 साल से उसका डेफ सर्टिफिकेट सही मूल्यांकन के साथ नहीं मिला है. कभी 40 फीसदी तो कभी 100 फीसदी का सर्टिफिकेट दिया जा रहा है. इसकी वजह से मनोज किसी तरह की योजना का लाभ नहीं ले पा रहा है.